Sunday 11 November 2012

sunday special- पैगाम

                           पैगाम

मेरा नाम लहरी बाई है, उम्र अभी 29 वर्ष, जिस्म मांसल और गदराया हुआ है। मेरा जिस्म थोड़ा भारी है पर मैं मोटी नहीं हूँ। पुरुषों में मैं एक आकर्षण का केन्द्र हमेशा से रही हूँ। मैं एक पतिव्रता स्त्री हूँ, रोज सवेरे जब मेरे पति हरि प्रसाद पूजा करके उठते हैं तो मैं उनकी पूजा करती हूँ। मेरे पति राज्य सरकार में अधिशासी अभियन्ता है। घर से पूजा पाठ करके कार्यालय में रिश्वत लेना, कमीशन लेना, सभी कार्य वे कुशलतापूर्वक करते हैं। हमारे घर में लक्ष्मी पांव पसारे जमी हुई है। मेरे पड़ोसी जो मेरे देवर के ही समान हैं, गंगा प्रसाद एक जाने माने डॉक्टर हैं, उनकी भी ऊपरी कमाई बहुत है, बस मुझसे कोई तीन साल छोटे हैं। गुलाबी, मेरी नाईन है, मेरे गांव की ही है, मुझसे पांच सात साल बड़ी है, मेरी मालिश करती है और मेरी हमराज भी है।

 मैं इन्हें देवर ही कहती हूँ। मेरे देवर गंगा की निगाहें मुझ पर जमी रहती थी, शायद मेरे सेक्सी रूप का वो दीवाना था। उसकी निगाहें मेरे वक्ष की तरफ़ अधिक रहती थी। यूँ तो मेरी गाण्ड भी खासी आकर्षक उसे लगती थी, पर बेचारा वो मजबूर था, कि कैसे कुछ करे।

गुलाबी मेरे जिस्म की मालिश करने अभी अभी आई थी,"लहरी, उतार थारा कपड़ा, अब तन्ने घिस दूं !"
"क्या खबर है गुलाबी... ?" मैंने अपनी बड़ी बड़ी कजरारी आंखें उठा कर उससे पूछा।
"गंगा तो थारे पे मरा जा रिया है !"
"हुंह, मुआ... तो जैसे मेरे बोबे दबा कर ही छोड़ेगा... कुछ कह रहा था क्या ?"
"ये पांच सौ का नोट दिया है ... और एक पैगाम है थारे वास्ते... "
मेरा दिल जोर से धड़क उठा। उसकी हिम्मत तो देखो... । मैंने गुलाबी की ओर देखा...
वो मतलब से हंसी।

"अरे मसखरी करे है ... फेर थारे कैइ फ़रक पड़ जाये है ... गंगा से दबवा ले, साली तू भी मस्त हो जायेगी !"
"फिर वो तो चोदने को भी कहेगा ?" मैं हंस कर बोली।
"तो कांई फ़रक पड़े है, थारी भोसड़ी तो कंवारी ही तो है... यूँ तो जंग लग जावेगा ... "
"तो मैं क्या करूँ, हरि प्रसाद को तो बस मेरी गाण्ड ही नजर आवे ... साला गाण्ड के पीछे मरा जावे है।"
मैंने अपने कपड़े उतार दिये और नीचे दरी बिछा कर लेट गई। वो मेरी पीठ घिसने लगी। गुलाबी के हाथो में ताकत थी, बड़ी मस्त मसलती थी। मेरी चड्डी उतार कर उसने एक तरफ़ रख दी और मेरे चूतड़ों के गोले गोलाई में मसलने लगी। बस मेरे शरीर में तरंगें छूटने लगी। साली जादू कर देती थी। मेरे चूतड़ों को खोल कर उसने मेरी गाण्ड के छेद में तेल भर दिया।
"ये देख तो, साली को चोद चोद के पोली कर दी है... ये देख, तीन तीन अंगुली अन्दर बैठ जावै है।"

उसने अपनी तीनों अंगुलियाँ मेरी गाण्ड में घुसेड़ दी और अन्दर चलाने लगी, घुमाने लगी। मुझे गुदगुदी सी भरने लगी। काफ़ी देर तक वो मुझे मस्ती दिलाती रही। फिर उसने मुझे सीधा कर दिया और मेरा पेट और चूचियाँ घुमा घुमा कर तेल मलने लगी, मेरे चुचूकों को तेल लगा कर मसलने लगी। मेरी चूत में बार बार करण्ट लगने लगा था। फिर वो चूत की भी मालिश करने लगी।
"देख लहरी, तेरा भोसड़ा तो सड़ गया है, ऐसा तो किसी बच्चे का भी नहीं होवै है... अरे इसकी पिलाई करा दे रे ... गंगा से चुदवा ले ... तेरा भोसड़ा खुल जावेगा।"

"अरे नहीं रे गुलाबी, देवर लगता है, शरम आवे है ... सच बताऊँ तो मेरी हिम्मत ही नहीं है।"
"पर वो लाईन तो मारे है ना, और देख, उसका लण्ड मस्त है रे ... मोटा है... एक बार ले लेगी तो मस्त जावेगी।"
"मन तो बहुत करे है ... पर हरि से बेवफ़ाई नहीं करूंगी... "
"तो हरि तो बस गाण्ड ही बजावे ना... थन्ने लागे नहीं भोसड़ो चुदवाने को?"
"लागे... लागे ... बहुत जोर से लागे ... पर क्या करूँ, पर वो तो बस गाण्ड चोद कर सो जावे ना !"
"देख मन्ने तो गंगा ने ये पांच सौ रुपिया दिया है, थारे तक पैगाम पहुंचाने के वास्ते, तू चाहे लहरी, तो लाईन क्लीयर करवा दूँ ... सीधी बात करवा दूँ ... तू चाहे तो ना... "

उसने अपनी थैली में से एक चिकना चमकदार स्टील का छः इन्च का एक पाईप सा निकाला। मेरे पांव फ़ैला कर वो उसने मेरी चूत में डाल दिया। मेरी तो जान ही निकल गई। उसे अन्दर घुमाना और अन्दर बाहर करने लगी।
"क्या बिल्कुल नहीं चोदा है ? बड़ा निष्ठुर है रे जीजू तो ... "
"नही... नहीं चोदा तो है पर बस आठ दस बार ... उसे चूत मारने में मजा ही नहीं आता है... "
"तो गंगा को कल बुलाती हूँ ... सोच लेना... " गुलाबी ने फिर से कहा।
मैंने अपनी आंखें शरम से बन्द कर ली, उसकी हाथों की रफ़्तार बढ़ती जा रही थी।
गंगा का लण्ड दिमाग में छाने लगा था। लगा गंगा ही चोद रहा है ... और मेरे मन में गंगा ही बस गया था।
मुझे शान्त करके गुलाबी चली गई।

दूसरे दिन दोपहर को गुलाबी आई और मुझे देख कर मुस्कराने लगी। मेरी आंखों में काजल गजब ढा रहे थे। मेरी काली जुल्फ़ें चेहरे पर लटक रही थी। मेरे मन में हलचल मची हुई थी। जाने गंगा क्या सोचेगा ? मन में मिठास सी भरी जा रही थी। पहली बार किसी गैर मर्द के पास जा रही थी और वह भी और कोई नहीं बल्कि मेरा देवर जैसा ही था !!!
"लहरी, गंगा बाहर खड़ा चोदन के वास्ते ... बोलो तो... बुला लूँ?"
मेरी सांसें चढ़ गई ... पसीना सा आने लगा ... हाय अब मैं क्या करूँ ?
"देख, गुलाबी, तू यहीं रहना... कहीं मत जाना... "
"नहीं जाऊंगी... बस... बुला कर लाऊं ?"
गुलाबी ने मुझे मुस्करा कर तिरछी नजरों से देखा और दरवाजे की तरफ़ बढ़ गई।
मुझे फिर मुड़ कर देखा और दरवाजे से झांक कर उसने गंगा को आवाज लगाई।

शायद वो वहाँ नहीं था। मैं जल्दी से जा कर लहंगा उतार कर पेटीकोट और ब्लाऊज पहन आई। चड्डी मैंने जान कर नहीं पहनी। गंगा के आने की आवाज मुझे आ गई थी। मेरा दिल जैसे उछल कर हलक में अटक गया।
अगले ही क्षण गंगा मुस्कराता हुआ कमरे में आ गया।
"कैसी हो लहरी ?" वो जैसे विजेता स्वर में बोला।
"मेरी तबीयत ठीक नहीं थी, सो सोचा आप को बुला लूँ... " जाने एकदम से मेरे मुख से बहाना निकल आया।
गुलाबी हंस पड़ी,"गंगा जी सब ठीक कर देंगे, शरीर का सारा जहर उतार देंगे ... और सुई भी गड़ा देंगे।"
गंगा मेरे समीप आ गया। मेरे हाथों को अपने हाथ में ले कर नाड़ी देखने लगा।
"दिल तो जोरो से धड़क रहा है ... कहो, कहाँ से आरम्भ करूँ... तुम्हीं कहो गुलाबी !"
"अब मुझसे नहीं लहरी से पूछो... !" गुलाबी ने बड़े रस भरे अन्दाज से कहा।
"हटो गंगा ... मुझे शर्म आती है !" मेरी निगाहें शर्म से झुकी जा रही थी।
वो मेरे पास और आ गये और धीरे से मेरे सीने पर हाथ रख दिया। मेरे दिल की धड़कन जैसे थम गई हो।
"मैं जाती हूँ... गंगा जी, जरा जम कर इलाज करियो !"
"गुलाबी, मत जा ... सुन तो... !" पर गुलाबी हंसती हुई बाहर चली गई।
"अब कहो, भाभी क्या तकलीफ़ है, ये गुलाबो तो बस... ।" गंगा मुझे सामान्य करता हुआ बोला।

"मुझे ज्वर चढ़ा है, जरा देख लो... "मैंने तिरछी नजरों से उसे देखा।
गंगा ने सर पर हाथ लगा कर देखा, फिर मेरे हाथ पकड़ कर चेक किया। अपना स्टेथोस्कोप लिया और सीधे मेरी छाती पर रख दिया। मेरा दिल जोर जोर से धड़कने लगा। वह अपना हाथ धीरे धीरे मेरे स्तनों पर ले आया।
मैं सिमट सी गई,"देवर जी, यहाँ तो गुदगुदी लगती है... !"
वह अपने स्टेथोस्कोप को और मेरे स्तनों को हिला हिला कर देखने लगा, मेरे भारी स्तन जैसे कठोर हो उठे, फिर धीरे से बोला," मस्त है, मसल दू साले को?"
"जी क्या कहा... ?"
"पेट तो नहीं दुःख रहा है ना... ?"
"दुःखता है ... बहुत दुःखता है... !" मैंने जल्दी से कहा।
मुझे उसके हाथों से खेलने पर बहुत भला लग रहा था। उसका हाथ मेरे पेट पर आ गया था, उसे सहलाते हुये कहा,"कुछ हुआ क्या ?" गंगा ने मसखरी की।
मैं क्या कहती भला ? वो चाहे जहाँ भी हाथ लगाये, असर तो मेरी चूत पर हो रहा था। वासना के मारे मेरी आंखें बंद होती जा रही थी। उसका हाथ मेरे पेटीकोट में से होता हुआ मेरी चूत की ओर बढ़ गया। मेरा बदन सिहर उठा। यह पहली बार था जब किसी पराए मर्द का हाथ मेरी चूत के इतनी पास लगा था।

उसका हाथ चूत पर आते ही मैंने उसे जोर से पकड़ लिया,"नहीं देवर जी ... नहीं !"
पर तब तक वो मेरी चूत दबा चुका था। मेरे मुख से आह निकल गई और मैं सिमट कर बैठ गई।
"लहरी, शर्माओ मत, चलो इलाज शुरू करें ... " उसने मेरे उन्नत स्तनों को छूते हुये कहा।
"गंगा, यह तो आपके और मेरे बीच का मामला था... गुलाबी को बीच में क्यों... "
"ऐसे कैसे मामला पटता ... देवर भाभी का रिश्ता जो ठहरा... "
"अब उसे पता चल गया है ना ... कहीं बदनाम ना कर दे... "
"नहीं... वो ऐसा नहीं करेगी... पर आह... मेरी किस्मत, तुम्हारा यह गदराया हुआ मांसल बदन मेरे पास है, तुम्हारी ये जवानी, ये गोल गोल मांसल चूतड़ ... ये भारी भारी चूचियाँ... ये कजरारी, मस्ती भरी बड़ी बड़ी आंखें ... मुझे तो जन्नत मिल जायेगी तुम्हें चोद कर लहरी ... हाय रे मेरी जान !"

"ना रे गंगा, तू मुझे मिल गया, मुझे सब कुछ मिल गया... !"
"लहरी, मेरा यह कड़क लण्ड दबा दे ... मसल डाल इसको... " गंगा ने अपना लण्ड खींच कर बाहर निकाल लिया।
"राजा, मेरी छाती दबा दे... बहुत मचल रही है ... जोर से दाबना... मजा आ जाये मेरे राजा !" मेरा दिल मचल उठा।
मेरे स्तन उसके हाथों में कस गये थे। मेरे मुख से आह निकल गई। उसने मुझे अपनी बाहों में कस लिया और मेरे रसीले होंठ कस कर अपने होंठों से चिपका दिये। मैंने उसका कड़कता लण्ड अपने नर्म हाथों में थाम लिया और कस कर उसे ऊपर नीचे करने लगी। वो सिसक उठा। मुझे सब कुछ अजीब सा लग रहा था। पराये मर्द के हाथों में मेरा शरीर कसा हुआ था। मेरे बोबे जैसे कड़क उठे थे- आह्ह्ह्ह ... अरे गंगा ! जोर से मसक दे... ... मेरे चूचे बाहर निकाल कर खींच खींच कर नोच ले।

गंगा का एक हाथ मेरे चूतड़ों पर आ कर उससे खेलने लगा था। कभी मेरी गाण्ड के छेद को रगड़ मारता तो कभी गाण्ड को नोच डालता। तभी उसका बम्बू जैसा लण्ड मेरे कूल्हे पर थाप मारने लगा। मेरे दांत किटकिटाने लगे... लगा कि गंगा का मांस नोच कर खा जाऊं। काम-पीड़ा बढ़ने लगी थी। मुझे लग रहा था कि काश आज यह मेरी कंवारी चूत को कस कर चोद डाले। ऐसा चोद्दा मारे कि मेरी जान निकल जाये। मेरा पेटीकोट नीचे उतर गया था। मैंने चड्डी नहीं पहन रखी थी... चुदना जो था।
गंगा भी वासना में बह चला था। उसने झटपट अपने कपड़े उतार दिये और नंगा हो गया। आह ... बिल्कुल हरि प्रसाद जैसा गोरा चिट्टा लण्ड, वैसा ही मोटा, भारी सा ... मेरी चूत का उद्धार जो होने वाला था। मेरी चूत फ़ड़फ़ड़ा उठी। उसने मेरा ब्लाऊज जो आधा तो खुला ही था, पूरा उतार दिया और मुझे धक्का दे कर बिस्तर पर गिरा दिया।
हाय रे मेरी आदत... मैं बिस्तर पर गिरते ही घोड़ी बन गई और गंगा पीछे मेरी गाण्ड पर चढ़ गया। उसका तन्नाया हुआ लण्ड मेरी गाण्ड में सदा की तरह घुसता चला गया।
"धत्त साला ! जैसा वो, वैसा उसका भाई ...! इसको भी साले को गाण्ड ही फ़ाड़नी थी !"
 "क्या कहा लहरी बाई ... जो मस्त होता है पहली तो वो ही चुदेगी... पर तू बुरा ना मान !" उसने दो तीन मस्त धक्के गाण्ड में मारे और फिर मेरी बात मान कर वो बिस्तर पर धम्म से लेट गया। मैं उसके ऊपर आ गई और उससे लिपट गई। उसका लण्ड मेरी चूत पर ठोकरें मार रहा था। उसका टनटनाता हुआ लण्ड 120 डिग्री पर लहरा रहा था और फिर मेरी आंखें जैसे खुली की खुली रह गई। मेरी चूत में जैसे कोई मीठी सी छुरी उतर रही थी- "गंगा ... हाय रे... "
"मेरी लहरी ... उफ़्फ़्फ़्फ़ !"
"पूरो ही घुसेड़ मारो ... दैया री ... ईईईईई सीऽऽऽऽऽऽऽ"
गंगा कुछ नहीं बोला, बस अन्त में एक झटका दिया और बच्चेदानी पर ठोकर मार दी।
"गंगा... तुझे मेरी कसम ... आज मेरी फ़ाड़ डाल ... बिल्कुल शुद्ध फ़ुद्दी है मेरी !"
गंगा को जैसे कुछ सुनाई नहीं पड़ रहा था। उसकी रफ़्तार तेजी पकड़ रही थी, मेरी चूत अपने आप ही उसका साथ देने लगी। दोनों ही कस कस कर साथ दे रहे थे, लण्ड पूरा अन्दर तक जा रहा था।

उसने अचानक रुख पलटा और मुझे नीचे दबा लिया, खुद मेरे ऊपर चढ़ गया और जोर जोर से मेरी चूत को पीटने लगा।
मेरे शरीर के जैसे सारे तार बजने लगे थे ... शरीर मीठे रस में घुला जा रहा था। लग रहा था कि वो जिन्दगी भर बस यूँ ही चोदता रहे ... मैं चुदती रहूँ... चुदती रहूँ... चुदती रहूँ... आह्ह्ह्ह्ह्ह्... ... हाय रे ... मेरी मां... उईईईईईई... पर कहां !!!
मेरी चूत छलक उठी थी... कामरस छोड़ दिया था ... मेरे जबड़े कस गये थे ... गालों की हड्डियां तक उभर आई थी... मैं झड़ रही थी। कुछ ही पलों में गंगा ने अपना फ़ूला हुआ लण्ड मेरी चूत से निकाल लिया और लण्ड की तेज धार को हवा में लहरा दिया। वो मुठ में भर भर कर धार पर धार छोड़ रहा था। जाने कितना माल निकाला होगा उसने।
वो तुरन्त खड़ा हो गया।
तभी गुलाबी, अन्दर आ गई... हमारी हालत देख कर वो समझ गई थी कि मामला फ़िट हो चुका था और मैं चोदी जा चुकी हूँ।
"चलो गंगा जी अब बाहर ... लहरी को मैं ठीक कर दूंगी।" गुलाबी मुस्कराती हुई बोली।
मैंने शरम के मारे अपना चेहरा छुपा लिया,"गुलाबी, तेरा गंगा तो मस्त चोदा मारे है ... साले का मोटा भी है... !" मैंने गुलाबी को झिझकते हुये कहा।


"मैंने कहा था ना कि सर्विसिंग करा ले ... वर्ना जंग लग जावेगा।" वो शरारत से बोली और मेरे गुप्तांगों पर पड़ा वीर्य साफ़ करने लगी,"अच्छी ऑयलिंग हो गई है आज तो !"
"चल हट, शरीर कही की... !" मुझे गुलाबी के सामने बहुत ही शरम आ रही थी।
काफ़ी दिन तक गुलाबी पांच सौ रुपये कमाती रही फिर एक दिन अचानक गुलाबी बोल उठी, "लहरी, गंगा से जी नहीं भरा अब तक ?"क्या ? गंगा तो एक दम बढ़िया है ... कस कर चोदता है, गाण्ड भी बजा देता है और क्या?" मैंने हंस कर कहा।
 
"नहीं, राम रे एक पैगाम और आया है, दुर्गा प्रसाद का... वो डॉक्टर का दोस्त... गंगा का दोस्त !"
"अरे मरना है क्या, गंगा को पता चल गया तो मार ही डालेगा।"
"अरे गंगा ने ही तो कहलवाया है... फिर तुझे एक और लण्ड का मस्त स्वाद मिल जावेगा।"
"क्या कहलवाया है?"
"यही कि दुर्गा की बीवी बाहर गई है, लहरी से पूछ कर देखना... ये रहे पांच सौ और... !"
"अरे वो ... वो दुर्गा ... हाँ रे है तो मस्त ... तू क्या कहती है भला ?" मेरी आंखों के आगे दुर्गा के बलिष्ठ शरीर की छवि नजर आने लगी।
"चुदा ले ... तेरा क्या... एक और सही... अरे ये भोसड़ा है ... जितना इसे लौड़े खिलायेगी, उतनी ही चिकनी होती जावेगी।"
"गुलाबी, एक मन की कहूं... ?"
"शरमा मत, दिल की कह डाल... !"
"अगर गंगा और दुर्गा एक साथ... एक आगे और एक पीछे से ... हाय कितना मजा आयेगा ना... !"
"हाय रे लहरी, सच कहती हूँ, चुदा ले एक साथ ... थारी जिंदगी सफ़ल हो जावेगी।"
गुलाबी भी इस बार वासना में मरी जा रही थी।

"फिर कब ... बता ?" मेरे दिल में गुदगुदी सी भर गई।
"अरे कल दिन को ही ... साली मस्त लौड़े खा ... भचाभच ... हाय रे लहरी... मुझे भी साथ ही चुदा ले।"
"देख इस बार हजार लेना... चुदने का क्या है, मेरे साथ तू भी चुद लेना।"
गुलाबी मुझसे लिपट गई। मुझे दुआयें देने लगी।
दूसरे दिन गुलाबी अपने दोनों हीरो को साथ ले आई।
दुर्गा ने गुलाबी के चूतड़ मसलते हुये कहा,"गुलाब्बो ! मां कसम, तुझे भी एक दिन चोदना पड़ेगा, जान !"
"चल हट, बड़ा आया चोदन वास्ते... उधर देख, लहरी ने आंख भी झपका दी ना तो दोनों को बाहर का रस्ता दिखा दूंगी... हां... स्साला !"
"दुर्गा, प्लीज चुप हो जा ...!" गंगा ने दुर्गा कोहनी मारते हुये कहा।
मुझे झिझक सी हुई, मैंने गंगा को एक तरफ़ ले जाकर कहा,"गंगा, ये दुर्गा आदमी तो ठीक है ना... कुझे आगे सतायेगा तो नहीं ना?" मैंने अपनी शंका व्यक्त की।

"अरे नहीं रे, घरेलू आदमी है, बस लण्ड की आग बुझाना चाहता है ... फिर मैं हूं ना ...!"
"फिर ठीक है... दोनों मिल कर मेरा चेकअप कर लो, और इलाज शुरू कर दो।" मैंने वासना भरे लहजे में कहा।
"जी भाभी जी ... दुर्गा, तू पीछे से देख, मैं आगे से चक करता हूँ।" गंगा ने गाण्ड मारने का इशारा किया।
दुर्गा मेरे पीछे आ गया और मेरा लहंगा ऊपर उठा दिया,"गंगा, पिच्छू को चिक्कन है रे ... मेरा इंजेक्शन तो जोर का लगेगा।"
"और मेरा इंजेक्शन आगे से फ़िट हो जायेगा ... है ना भाभी... लो अपनी टांगे ऊंची कर लो।"
"धत्त, पहले अपने कपड़े तो उतारो ... अपना अपना हथियार तो दिखाओ।"
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"ये ले भाभी जान, है ना मस्त लौड़ा... " दुर्गा ने अपना लण्ड हिलाया। दोनों के गोरे मस्त तकतवर जिस्म थे। मैंने धीरे से अपना पेटीकोट और ब्लाऊज उतार दिया और नंगी हो गई। दोनों मेरा मांसल शरीर देख कर मतवाले से हो गये। वो दोनों मेरे बदन से एक साथ चिपक गये। दुर्गा तो अपना लण्ड मेरे चूतड़ों पर घिसने लगा। मेरे मन में जैसे फ़ुलझड़ियाँ फ़ूटने लगी ... दिल में कसक सी भर गई। दोनों का जिस्म मेरे जिस्म से रगड़ खाकर मुझे वासना की आग में जलाने लगा था।
मैंने अपनी एक टांग उठा कर पास के स्टूल पर रख दी, मेरी गाण्ड और चूत दोनों एक साथ खुल गई। दुर्गा का लण्ड मेरे चूतड़ों के बीच सरकता हुआ छेद तक आ गया। गंगा ने झुक कर अपना लण्ड मेरी चूत में रख कर कर धीरे से अन्दर ठेल दिया। तभी जैसे मेरी गाण्ड के फ़ूल को कुचलता हुआ दुर्गा का लण्ड मेरी गाण्ड में समा गया। आह ... दो तरफ़ा मार ... कितना सुखद लग रहा था।



दुर्गा ने मेरे भारी स्तन जोर से दबा दिये और मुझसे चिपक गया। गंगा ने मेरे अधर अपने अधरों के बीच धर लिये और चूसने लगा। दोनों के मस्त लण्ड मेरे जिस्म में अन्दर गहराई में उतराने लगे थे। कैसा सुन्दर सा अहसास हो रहा था। लण्ड की मस्त मोटाई महसूस होने लगी थी। मेरी कमर दोनों मर्दों के मध्य पिस गई थी। मेरे मुख से मीठी सिसकारी निकले जा रही थी। गुलाबी मेरे पास में नीचे बैठी हुई बहुत ही ध्यान से ये सब देख रही थी। दोनों के धक्के चालू हो चुके थे, मेरे मुख से सुख भरी चीखें निकल रही थी। दुर्गा का लण्ड ज्यादा मोटा था और लम्बा भी था। ज्यादा अन्दर तक पेल रहा था।

तभी वो स्टूल, जिस पर मेरा पैर रखा हुआ था, जोर के धक्कों के कारण एक तरफ़ गिर गया। तभी दुर्गा ने मेरी कमर पकड़ कर बिस्तर पर लेटा दिया। मुझे अब दुर्गा का लण्ड चाहिये था सो मैं उससे चिपट गई और अपनी एक टांग उसकी कमर में डाल दी, ताकि मेरी गाण्ड भी खुल जाये। गंगा लपक कर मेरी गाण्ड से चिपक गया और कुछ ही देर में फिर से मेरी दो तरफ़ा चुदाई होने लगी थी। दोनों तरफ़ की चुदाई ने मेरे जिस्म में इतना मीठा जहर घोल दिया था कि मेरा जिस्म कांपने लगा ... लगा कि मैं अब और नहीं झेल पाऊंगी। मेरे स्तनों को गंगा ऐसे निचोड़ रहा था जैसे कोई गीला कपड़ा हो।

तभी मेरे तन से काम रस निकलने लगा। मैं झड़ने लगी। मैं चिल्ला पड़ी,"अरे छोड़ दो जालिमो ... मैं तो गई ... बस करो ... हाय रे मेरी मां ... मेरा तो शरीर ही तोड़ डाला !"
दोनों ने मुझे छोड़ दिया और अपने लण्ड बाहर खींच लिये।
"हटो... मुझे उतरने दो ... " मैं बिस्तर से उतर आई। गंगा सीधा लेटा था, उसका लण्ड भी किसी डण्डे की तरह तना हुआ था। गुलाबी ने मेरी तरफ़ देखा और मैंने उसे आँख मार दी। गुलाबी नंगी तो थी ही... बिस्तर पर धीरे से चढ़ कर गंगा के ऊपर लेट गई।
"अरी गुलाबी ... चल आजा ... आजा ... "
गुलाबी ने कुछ नहीं कहा, बस मुस्कराती हुई उसने अपनी चूत का जोर लगा कर दुर्गा का लण्ड चूत में घुसा लिया और सिसक पड़ी। उसने अपने पांव समेट कर ऊपर कर लिये और अपनी गाण्ड ऊपर उठा थी। उसके दोनों चूतड़ के गोले खिल उठे और मध्य में उसकी गाण्ड का भूरा फ़ूल खिल कर सामने आ गया। दुर्गा ने अपना लण्ड उसकी गाण्ड में टिकाया और घुसा डाला। गुलाबी ने मस्ती में एक सीत्कार भरी और दुर्गा से चिपक ली।

"देखा गुलाब्बो रानी... चुद गई ना ... तू तो मस्त चीज़ निकली रे !" दुर्गा ने अपनी विशिष्ट शैली में उससे कहा।
"मादरचोद, जल जल्दी चोद, मजा आ रिया है ... लगा जोर दार ... मर्दों वाली चुदाई कर डाल !" गुलाबी तड़प उठी।
"गुलाबी, पहले क्यों नहीं बताया ... तुझे तो हम दोनों मस्त चोद देते... !"
"साले कंजूस ... 500 रुपिया में चोद्दा मारेगा ... हजार से कम नहीं लूं मैं तो... "
"गुलाबी... 1000 रुपिया पक्का ... इसका अलग से ... गाण्ड मरायेगी तो हजार और दूंगा !" दुर्गा ने बोली लगाई।
"मैं भी गुलाब्बो रानी ... आह मस्त राण्ड है रे... "
"ऐ तू होगा रण्डवा ... मैं तो अपने पति की रानी हूँ रे... "
दोनों दांत भींच कर उसे चोदने लगे। मैं बड़ी हसरत से उन्हें देखने लगी। कुछ ही देर में एक एक करके दोनों झड़ गये। दोनों ने अपनी जवानी का रस मुझे और गुलाबी को पिलाया। हम दोनों तृप्त हो गई। चुद कर गुलाबी भी खुश थी। उसे दो हजार रुपिये भी तो मिले थे। वो दोनों कपड़े ठीक करके चले गये।

गुलाबी मुझसे लिपट गई। उसकी आँखों में आंसू थे...
"लहरी बाई, इतने रुपिये तो मैंने जिन्दगी में भी कभी एक साथ नहीं देखे थे... तुझे ईश्वर खूब दौलत दे ... सुखी रखे"
मैंने उसे प्यार से चूम लिया,"देख गुलाबी, इतना सुख भी मैंने कभी नहीं पाया था ... तूने ही तो इन मर्दों से मुझे चुदवाया है ... "
"ना जी, वो तो आपकी किस्मत के थे ... देखो मैंने भी तो आज दो मर्दों का सुख पाया ... "
"अच्छा चल, इतना मत भावना में बह ... अभी और भी कोई पैगाम है... "
गुलाबी हंस दी और धीरे से एक पर्ची निकाली और हंस दी ...
"वो वरुण सेठ है ना, उसकी बीवी को बच्चा होने वाला है ... सो मैंने उससे पांच सौ रुपिया ले लिया है... "
"अरे वाह वो अरबपति वरुण ... !!!"

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