युवती हर युवक सदस्य की पत्नी होती है...
भारतीय आदिवासियों के जीवन में सेक्स का अपना महत्व है। वे आधुनिक सभ्यता से बहुत दूर संस्कृति परिवर्तन से अछूते हैं। दिन भर की थकान के बाद ये आदिवासी रात्रि होते ही रात्रि क्लबों में एकत्रा हो उत्सव मनाते हैं। इन रात्रि कलबों को युवा-गृह के नाम से सम्बोधित किया जाता है। केवल युवक-युवतियों को इन युवा-गृहों में आने दिया जाता है।
इनकी रंगीन रातें नाच-गाने से आरंभ होकर
शराब के दौर के साथ रेंगती हुई प्रणय-लीला की मादकता के साथ समाप्त हो जाती
है। सेक्स के इस व्यापार को पाप-पुण्य या नैतिकता के तराजू में नहीं तोला
जाता। इसके बावजूद इन युवा गृहों में यौन ज्ञान का प्रशिक्षण दिया जाता है।
युवक-युवतियां इन्हीं युवा-गृहों के माध्यम से मन-पसंद जीवनसाथी का चुनाव
करते हैं। हमारे देश के विभिन्न भागों में बसने वाले आदिवासियों के अलग-अलग
रीति रिवाज हैं।
बस्तर
जिले के आदिवासियों में युवा-गृहों के सदस्य केवल अविवाहित लोग ही हो सकते
हैं। विधुरों को भी सदस्य बनने का अधिकार प्राप्त है। दस वर्ष की आयु होने
पर प्रत्येक युवक-युवती को सदस्य न बनने पर समाज विरोधी कार्य मान कर दण्ड
देने की व्यवस्था है। छोटे लड़के-लड़कियों को यौन ज्ञान का प्रशिक्षण दिया
जाता है। सदस्य चाहे ऊंची या नीची जाति के हों अथवा अमीर हो या गरीब, सभी
को समान दृष्टि से देखा जाता है और उन्हें समान अधिकार होते हैं।
युवा-गृह में प्रत्येक युवती हर युवक
सदस्य की पत्नी होती है और एक ही युवक के साथ स्थायी संबंध रखना दोष-पूर्ण
माना जाता है। गर्भ धारण करना अशुभ माना जाता है और ऐसी अवस्था में युवा
गृह से बाहर निकाल कर उस व्यक्ति के साथ स्थायी रूप से विवाह करवा दिया
जाता है जिसके द्वारा गर्भ धारण हुआ हो।
मध्य-प्रदेश प्रान्त
के एक भाग में स्थित आदिवासी स्त्रिायां दुहरी नैतिकता अपनाती हैं। यहां की
स्त्रिायां अपने पीहर में रहते हुए अपनी इच्छानुसार चाहे जिस पुरूष के साथ
प्रणय कर सकती हैं। घर आये अतिथियों के सत्कार स्वरूप रात को वे उनकी
शैय्या की शोभा बढ़ाती हैं। इसके विपरीत अपने ससुराल में इन्हें अपने पति
के प्रति पूर्ण रूप से वफादार रहना पड़ता है। इन स्त्रिायों के पीहर चले
जाने के बाद इनके पति अन्य विवाहित स्त्रियों के साथ आनंद लेते
हैं।[/pullquote]
आसाम के आदिवासियों में दस वर्ष से बड़ी
युवतियां युवा-गृहों में रात के समय आकर एक साथ सोती हैं। उनके प्रेमी युवक
रात में वहीं पहंुच जाते हैं। बस्तर के आदिवासियों की तरह उनके रीति रिवाज
समान होते हैं।
मालाबार प्रांत के आदिवासी समूह में
लड़कियों का विवाह बहुत कम आयु में हो जाता है। उन्हें शीघ्र ही तलाक दिलवा
दिया जाता है। दुबारा इनका विवाह नहीं होता और वे अपने पीहर में रहती हैं।
समय समय पर मनपसन्द प्रेमी चुनकर वे उनके साथ यौन संबंध में जो औलाद जन्म
लेती है उस पर लड़की की मां का अधिकार माना जाता है इनके समाज में पिता का
कोई महत्व नहीं होता।
नीलगिरी की आदिवासियों की विवाहित
स्त्रिायां चाहे जितने भी पुरूषों से संबंध रख सकती हैं समाज उसे बुरा नहीं
मानता। विवाहित स्त्राी का कोई भी पुराना प्रेमी उसके पति से इजाजत लेकर
उसके पास सुविधा-अनुसार आ जा सकता है। इस अनुचित संबंध से पैदा हुई संतान
पर वास्तविक पति का अधिकार होता है।
अल्मोड़ा के आदिवासियों में इस प्रकार के
मुक्त यौन समागम की खुली छूट नहीं है। युवा-गृहों में युवा वर्ग के लोग
संगीत, नृत्य और मदिरा पान के बाद अपने जीवन साथी का चुनाव करते हैं। बाद
में विवाह की रस्म पूरी करके सह जीवन बिताते हैं। किसी पराये पुरूष को
मदिरा के नशे में यदि स्त्राी अपना शरीर गलती से सौंप देती है तो उसके पति
पर निर्भर होता है कि उसे क्षमा करे या नहीं। उस स्थिति में होने वाली
संतान पर पति का हक माना जाता है।
[pullquote]अब उड़ीसा प्रांत के
आदिवासियों को ही लीजिए। यहां के प्रणय गृहों में संध्या के समय सभी
अविवाहित युवतियां एकत्रा हो जाती हैं। दूर-दूर से नौजवान लड़के उपहार
प्रणय-संलाप करने इन गृहों में आते हैं। जहां युवतियां भुने हुए मांस और
शराब के साथ उनका स्वागत करती हैं। वे तमाम रात एक साथ बिताते हैं। बेदर्दी
से परस्पर छेड़-छोड़ और मजाक करते हैं। नाच-गाना चलता रहता है। चुम्बन की
प्रथा इनमें नहीं होती। कुछ दिनों के मेल-मिलाप के बाद जो युवक-युवतियां
परस्पर चाहने लगते हैं, वे पहली बार शारीरिक संभोग कर सगाई कर लेते हैं और
उनकी शादी पक्की मान ली जाती है।
आंध्र प्रदेश के बंजारे आदिवासी समूह में
पुरूषों की अपेक्षा स्त्रिायां अधिक कामुक होती हैं। गैर मर्दों से वे
संबंध बिल्कुल नहीं रखती। बारह वर्ष की आयु में उनका विवाह कर दिया जाता
है। विवाह से पूर्व अन्य युवकों के साथ संबंध रखने में उन्हें काई रूकावट
नहीं। यदि लड़की मां बन जाए तो उसके प्रेमी को उससे विवाह करना पड़ता है।
विवाह सामाजिक नियमानुसार होता है।
मैसूर की आदिम जातियों में रात्रि के युवा
गृहों में आकर युवक-युवतियां अपने प्रेमी-प्रेमिका के साथ रात बिताते हैं।
जिनकी कोई प्रेमिका नहीं होती वे युवक रात्रि के समय घर के बाहर निकल कर
घूमते है और लड़कियां ढूंढ़ते हैं जो रात के समय उन्हें शैय्या पर उन्हें
साथी बना सके। लड़कियां अपने निवास स्थान पर ऐसे लड़कों का स्वागत करती
हैं। इसके लिए दोनों पक्षों के घर वालों से पूरी छूट है। जब कोई लड़का
लगातार किसी लड़की के यहां आता रहता है तो वे शादी के लिए एक-दूसरे को
स्वीकार कर लेते हैं।
नीलगिरी की एक और जाति के आदिवासियों में
विवाह के बाद भी स्त्राी-पुरूष तीन वर्ष तक युवा-गृहों में आकर मनोरंजन
करते हैं जहां की स्त्रिायां यौन के मामले में अपने पति को धोखा देने में
आनंद का अनुभव करती हैं। यदि कोई स्त्राी गर्भवती हो जाए तो वह और उसका पति
युवा-गृहों में प्रवेश नहीं पा सकता।
आदिवासियों में युवा-गृहों का महत्वशाली
स्थान है और उनमें सेक्स का प्रसार व्यापक-रूप में है। आदिवासियों के जीवन
और सभ्यता में वे युवा-गृह एक महत्वपूर्ण अंग की तरह हैं जो उनमें नव-जीवन
का संचार करते हैं।
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