विभिन्न प्रदेशों की नारियां और उनका यौन जीवन
आचार्य वात्स्यायन ने कामसूत्र में विभिन्न प्रदेशों की नारियों के यौन जीवन और व्यवहार की चर्चा की है ताकि पुरुष जब स्त्री को प्रेम करे तो उसे यह पहले से पता हो कि वह जिस स्त्री से प्रेम कर रहा है उसे प्रेम में आखिर क्या पसंद है। इससे प्रेम का माधुर्य बढ़ जाता है। प्रेम और संभोग में एक-दूसरे की पसंद का ख्याल रखने वाले प्रेमी-प्रेमिका या पति-पत्नी एक-दूसरे का न केवल होकर रह जाते हैं, बल्कि एक-दूसरे का बेहद सम्मान भी करते हैं।
वात्स्यायन लिखते हैं, पुरुष को आलिंगन, चुंबन, नखक्षत और दंतक्षत करते समय हमेशा यह विचार कर लेना चाहिए कि उसकी प्रेयसी किस प्रांत की है। उस प्रांत में प्रेम के लिए जैसा व्यवहार प्रचलित हो वैसा ही व्यवहार पुरुष को करना चाहिए। यही बात नारी को भी अपने पुरुष प्रेमी के बारे में पता होनी चाहिए ताकि दोनों के बीच प्रेम की प्रगाढ़ता बनी रहे।
आधुनिक मनोविज्ञान भी मानता है कि स्त्री पुरुष जब सेक्स में एक-दूसरे की भावनाओं व इच्छाओं का पूरा ख्याल रखते हैं तो किसी भी तरह की मानसिक परेशानियां उनके दांपत्य जीवन में नहीं आती है। पति द्वारा पत्नियों के व्यवहार के विपरीत शारीरिक संबंध बनाने, उनके साथ जबरदस्ती करने, उनकी इच्छाओं को न समझने, उन्हें अतृप्त रखने और उन पर अपने विचार थोपने के कारण ही पत्नियां अक्सर साफ-सफाई, धर्म आदि की ओर मुड़ जाती हैं। दांपत्य जीवन से उनका मोह भंग हो जाता है और वह उससे जुड़ी भी रहती हैं तो केवल संतान के कारण।
वर्तमान में तलाक दर में वृद्वि का बड़ा कारण भी यही है। इसलिए आचार्य वात्स्यायन के इस विश्लेषण की प्रासंगिकता आज भी उतनी ही है, जिनकी की आदि काल में थी।
* हिमालय और विंध्य पर्वत के बीच के भाग की नारियां संभोग में पवित्र आचार वाली होती है। उन्हें चुंबन, नखक्षत और दंतक्षत से घृणा करती हैं।
* हिमालय की तलहटी एवं उसके आसपास के प्रदेशों की नारियों को संभोग में नयापन पसंद होता है, लेकिन चुंबन, नखक्षत व दंतक्षत को वह पसंद नहीं करती हैं।
* मालव व आभीर प्रदेश की नारियां आलिंगन, चुंबन, नखक्षत और दंतक्षत को तो पसंद करती हैं, लेकिन अपने शरीर पर किसी भी तरह का निशान नहीं चाहती हैं। इस प्रदेश की नारियां मुख मैथुन को बहुत अधिक पसंद करती हैं। वह मुख मैथुन के बाद चाहती हैं कि पुरुष साथी अपने लिंग से उनकी योनि पर प्रहार करे और ऐसा करने से ये शीघ्र उत्तेजित हो जाती हैं।
* सिंध व पंजाब की नारियां बहुत अधिक वासनामयी होती हैं। ये चाहती हैं कि उनका पुरुष साथी सीधे संभोग न कर उनके साथ पहले मुख मैथुन करें। इन्हें अपनी योनि से छेड़छाड़, उसमें जिहवा का प्रवेश और स्तनों का मर्दन बेहद पसंद हैं।
* भारत के पश्चिमी भाग में समुद्र से सटे प्रदेशों जैसे गुजरात, दमन, दादर, पणजी, गोवा और महाराष्ट्र के समुद्री हिस्सों की नारियां बहुत अधिक वासनामयी होती हैं। संभोग के समय इनके मुख से मंद सीत्कार से ध्वनि निकलती रहती है तो उनके चर्मोत्कर्ष पर पहुंचने की निशानी है। इन्हें संभोग में वह वह चीज पसंद है, जिससे आनंद मिलता है।
* बंगाल से पश्चिम दिशा का भाग एवं कोशल प्रांत की नारियां तीव्र आवेग वाला आलिंगन और चुंबन चाहती हैं। संभोग में तृप्त नहीं होने पर यह हस्तमैथुन के द्वारा खुद को तृप्त कर लेती हैं। कई बार शरीर के वासनामयी होने पर यह कृत्रिम तरीके से भी खुद को शांत करने की कोशिश करती हैं।
* गौड़ प्रांत व बंगाल की नारियां मृदुभाषिणी एवं संभोग के प्रति लगाव रखने वाली होती हैं।
* आंध्र प्रदेश की नारियां स्वभाव से कोमल और पुरुष का साथ चाहने वाली होती हैं। पुरुष द्वारा सेक्स के लिए अपनाए गए हर तरीके को यह पसंद करती हैं।
* महाराष्ट्र की नारियां 64 प्रयोगों को चाहने वाली होती हैं। अश्लील व कठोर वचन बोलने और सहन करने वाली होती हैं। संभोग के क्षण में यह शीघ्र पुरुष से चिपट जाती है और उनसे इसके लिए शीघ्रता चाहती हैं।
* वर्तमान बिहार और उससे सटे उत्तर प्रदेश की नारियां अंधेरे और नितांत एकांत में संभोग पसंद करती हैं।
* द्रविड़ प्रदेश-कर्नाटक और उसके दक्षिण दिशा की नारियां संभोग से पूर्व आलिंगन, चुंबन और स्तनों का मर्दन पसंद करती हैं और इनके द्वारा संभोग से पहले ही स्खलित हो जाती हैं।
* कोंकण से पूर्व दिशा की नारियों में वासना न तो कम होता है और न ज्यादा। वह आलिंगन, चुंबन को पसंद करती है, लेकिन नहीं चाहती कि उसका पुरुष साथी उसके पूरे शरीर को देखे। इस प्रदेश की नारियां पूर्ण रूप से वस्त्र विहीन होकर संभोग पसंद नहीं करती। ये अपने शरीर के दोषों को छिपाना चाहती हैं, लेकिन दूसरे के शरीर के दोषों का हंसी भी उड़ाती हैं। इस प्रदेश की महिलाएं कुरुष व अश्लील आचरण वाले पुरुष से किसी कीमत पर संबंध नहीं बनाना चाहती हैं।
आचार्य वात्स्यायन और उनके बाद के सभी काम शास्त्रज्ञाताओ का मत है कि समय के साथ रीति-रिवाज, वेशभूषा, खानपान और प्रेम व्यवहार एक प्रदेश से दूसरे प्रदेश में चली जाती हैं। इसलिए प्रेमीजनों को अपने साथी के स्वभाव का ज्ञान होना चाहिए और उसे समझ कर उसी अनुरूप प्रेम प्रदर्शित करना चाहिए।
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