नारी-नितम्बों तक आ पहुँची सौन्दर्य यात्रा !
आज जीवित प्राइमेट (नरवानर) समुदाय) प्रजाति के
लगभग २०० सदस्यों में से केवल मानव प्रजाति को ही अभारयुक्त गोलाकार
नितम्बो की सौगात मिली है। नितम्बों का विकास तभी से आरम्भ हुआ जब मानव दो
पाया बना और सीधे खड़े होकर चलने लगा। नितम्बों के साथ सबसे दिलचस्प बात यह
है कि वे मानव शरीर के ``जोक रीजन´´ का प्रतिनिधित्व करते हैं। यानि हंसी
ठट्ठे का केन्द्र हैं वे !
फिर भी नारी नितम्बों का सौन्दर्य पक्ष
अनदेखा नहीं किया जा सकता। नितम्बों का आकार एक सशक्त कामोद्दीपक नारी अंग
की भूमिका निभाता है और हमारे उस पशु अतीत की ध्यान दिलाता रहता है, जब
कामोन्मत्त नर कपि रति क्रीड़ाओ हेतु मादा के पृष्ठ भाग पर आरोही हो रहे थे।
पुरुष की तुलना में नारी के नितम्ब भारी और अधिक उभार वाले होते हैं।
इतना
ही नही नारी कूल्हों के ``मटकाने´´ के गुणधर्म के चलते नारी-नितम्बों का
यौनाकर्षण बढ़ जाता है। इस तरह नारी नितम्ब की तीन प्रमुख विशेषताए¡-अधिक
चर्बी , उभार और मटकाने (अनडुलेशन) की स्टाइल उसे पुरुष के लिए एक अत्यन्त
प्रभावशाली यौनाकर्षण का केन्द्र बिन्दु बना देती हैं।
प्रख्यात
व्यवहार शास्त्री डिज्माण्ड मोरिस तो यहाँ तक कहते हैं कि अतीत की नारी के
नितम्ब यौनाकर्षण की अपनी भूमिका में इतने बड़े और भारी होते गये कि रति
क्रीडा का मूल उद्देश्य ही बाधित होने लगा । लिहाजा मानव को सामने से यौन
संसर्ग (फ्रान्टल कापुलेशन) का विकल्प चुनना पड़ा।
कालान्तर में नारी स्तनों
ने नितम्बो के `सेक्स सिग्नल´ की वैकल्पिक भूमिका अपना ली और तब कहीं जाकर
नारी नितम्बो के बढ़ते आकार पर अंकुश लग सका।
किन्तु आज भी एक जैवीय
स्मृति शेष के रूप में विश्व की कई आदिवासी संस्कृतियों में नारी नितम्बों
को बहुत उभार कर दिखाने की प्रथा है। अफ्रीका की ``वुशमेन´´ आदिवासी´´
औरतें अपने नितम्बों को एक विशेष पहनावे के जरिये बहुत उभार कर
``डिस्प्ले´´ करती हैं।
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