योनि की आत्मकथा
मैं प्रगति की योनि हूँ ! प्रगति एक 36 साल की मध्यम-वर्गीय, कार्यरत महिला है जिसकी शादी को 15 साल हो चुके हैं और उसके एक बेटा है जो अब 12 साल का है। उसके पति सरकारी कर्मचारी हैं और उनकी उम्र 40 साल है। मैं प्रगति का सबसे छुपा हुआ अंग हूँ... मुझे बहुत कम लोगों ने देखा है... प्रकृति ने मुझे ऐसी जगह स्थित किया है कि किसी भी के लिए मुझे ठीक से देखना लगभग नामुमकिन है... और यह सही भी है क्योंकि मैं प्रगति का सबसे अनमोल अंग हूँ और मुझे प्रगति की 'इज्ज़त' समझा जाता है।
बाकी लोगों की बात छोड़ो, मुझे तो प्रगति ने भी ठीक से नहीं देखा है ! जब प्रगति छोटी थी तब उसे मुझमें कोई दिलचस्पी ही नहीं थी... बस प्रगति की माँ उसे नहलाते समय मुझमें पानी डालकर अपनी उँगलियों से मुझे साफ़ कर देती थी ! मुझे बहुत अच्छा लगता था। मुझे तभी से अपने ऊपर पानी की बौछार और उँगलियों का स्पर्श अच्छा लगता चला आ रहा है।
जब प्रगति थोड़ी बड़ी हुई तो कभी-कभार अपनी उँगलियों से मुझे छूने लगी थी पर उसने कभी मुझे देखने की कोशिश नहीं की। शायद उसको मुझे देखना मुश्किल भी था क्योंकि बचपन में प्रगति थोड़ी मोटी थी तो अपने पेट के ऊपर से मुझे देख नहीं सकती थी... और बाद में, जब प्रगति ने जवानी की दहलीज़ पर कदम रखा, तो मैंने अपने आप को रेशमी बालों के घूँघट में छुपा लिया था...
जिससे मेरे दर्शन उसके लिए और भी दूभर हो गए थे।मुझे तो लगता है मुझे प्रगति से ज्यादा तो उसके पति और प्रगति के डॉक्टर ने देखा होगा। प्रगति इस मामले में अकेली नहीं है... बहुत सी लड़कियाँ और महिलाएँ अपनी योनि को ठीक से नहीं देखतीं या यूं कहिये कि देख नहीं पातीं।चलो मैं अपने बारे में खुद ही तुम्हें बता दूं क्योंकि प्रगति को मेरे बारे में तो कोई खास जानकारी है नहीं।
स्त्री यौनांगों का बाहरी रूप
मैं एक 3.5 से 4 इंच लंबी और करीब 3 इंच परिधि की एक पिचकी हुई ट्यूब-नुमा नाली हूँ जिसका एक सिरा प्रगति की जाँघों के बीच खुलता है और दूसरा सिरा प्रगति के गर्भाशय से जुड़ा हुआ है। यह अंदर वाला सिरा लगभग बंद है और सिर्फ बहुत सूक्ष्म तत्व या पदार्थ ही इसके पार गर्भाशय में जा सकता है।
मेरे आकार को तुम एक पिचके हुए कंडोम की तरह समझ सकते हो। मेरे अंदर की दीवारें लचीली होती हैं जिससे प्रगति की यौन उत्तेजना के समय मेरा आकार बढ़कर 5 से 6 इंच का हो जाता है। मेरी दीवारों में ऐसी ग्रंथियाँ होती हैं जो प्रगति की उत्तेजना के समय तरल द्रव्यों का प्रवाह करती हैं जिनसे मैं अंदर से नम या गीली हो जाती हूँ। ऐसा होने से मेरे अंदर पुरुष के लिंग का प्रवेश आसान हो जाता है और मुझे तकलीफ नहीं होती।
मेरे द्वार से लेकर करीब डेढ़ इंच अंदर तक मेरी दीवारों में अनेक तंत्रिकाएँ होती हैं जिनसे प्रगति को स्पर्श, घर्षण, दर्द या सुख की अनुभूति होती है। मेरे बाकी के अंदर के इलाके में ये तंत्रिकाएं नहीं होतीं हैं... अतः प्रगति को शुरू के डेढ़ इंच बाद अंदर कुछ महसूस नहीं होता। यह बात प्रगति के पति को पता नहीं है... वह फालतू में अपने 5 इंच के उत्तेजित लिंग को छोटा समझता है। सच में, मुझे तो केवल दो-तीन इंच का लिंग भी आनंद देने के लिए पर्याप्त है। सच पूछो तो 5-6 इंच से ज्यादा लंबे लिंग तो मेरे उत्तेजित आकार से बड़े होते हैं... सो मुझे तकलीफ दे सकते हैं और प्रगति के गर्भाशय को चोट भी पहुंचा सकते हैं।
लम्बाई से ज्यादा तो मुझे मोटे और कड़क लिंग ज्यादा पसंद हैं जो मेरी तंत्रिकाओं को प्रबलता से रगड़ पाते हैं और प्रगति को असीम आनंद देते हैं।
जब प्रगति पैदा हुई थी तो मेरा आकार करीब डेढ़ इंच लंबा था और मेरा मुंह काफी छोटा था। करीब पांच साल की उम्र तक मेरा आकार लगभग उतना ही रहा। उन दिनों जब प्रगति नंगी खड़ी होती थी तो कोई भी मुझे देख सकता था क्योंकि मैं सीधी और खड़ी दिशा में, लगभग लम्बवत, (vertical) थी ... सबके सामने... मुझे कोई शर्म नहीं थी... पर जबसे प्रगति ने यौवनावस्था में क़दम रखा है तबसे मेरे ठीक ऊपर स्थित शुक्र-टीला (Mound of Venus) धीरे-धीरे पनपने लगा और उसके उभार के कारण मैं नीचे की तरफ होने लगी।
प्रगति के सोलहवें साल के आस-पास तक मैं लगभग ज़मीन के समानांतर दिशा में, लगभग दंडवत (horizontal) हो गयी थी। इसी दौरान जब प्रगति बारह साल की हुई थी तब मेरे होठों के आस-पास बाल आने शुरू हो गए थे.... शुरू में बहुत ही मुलायम, काले रेशम जैसे इक्का-दुक्का बाल आये जो कि मेरे होंठों के इर्द-गिर्द उगे थे... धीरे-धीरे 3-4 साल में ये बाल घने होते चले गए और मेरे होटों को तथा मेरे आस-पास के इलाके को एक तिकोने आकार से ढक दिया।
कहने का मतलब यह कि जहाँ प्रगति के बचपन में मैं बड़ी शान से अपने आप को दिखा सकती थी, उसकी जवानी के आते-आते मैं ना केवल उसकी जाँघों के बीच, ज़मीन के समानांतर हो गई, मेरे ऊपर बालों का घूंघट सा भी आ गया। इसके फलस्वरूप औरों की बात तो दूर, खुद प्रगति भी नंगी होकर मुझे ठीक से देख नहीं सकती थी। उसे मेरे दर्शन करने के लिए किसी रोशन इलाके में आगे झुक कर, टांगें खोल कर, बालों का झुरमुट हटा कर एक दर्पण की ज़रूरत होती है। शायद इसीलिए उसने मुझे ठीक से देखा नहीं है। देखा जाये तो मैं प्रगति के जननांगों का बाहरी प्रारूप हूँ... जननांग मतलब प्रसव अथवा प्रसूति अंग या जन्म देने वाले अंग। मैं प्रगति के गर्भाशय तक मरदाना जीवाणु पहुँचाने का मार्ग हूँ... मेरी भूमिका इतनी महत्वपूर्ण है कि प्रकृति ने मेरी सुरक्षा के लिए दो-दो द्वार (double-door) लगाये हुए हैं... बड़े भगोष्ठ और छोटे भगोष्ठ। ये दोनों प्रायः बंद ही रहते है और बाहरी गंदगी और कीटाणुओं से मेरा बचाव करते हैं। इन दोनों होटों के बंद होने के बावजूद भी अंदर मैं पिचकी हुई ही रहती हूँ। मेरा यह पिचका रहना ना केवल बाहर के प्रदूषण से एक अतिरिक्त बचाव है बल्कि यौन संसर्ग के दौरान यह घर्षण पैदा करने का निराला तरीका है।
मेरे दो मुख्य कार्य हैं... प्रजनन तथा यौन-सुख का आदान-प्रदान। मैं यौन सुख देती भी हूँ और लेती भी हूँ। प्रगति समझती है कि उसके मूत्र का निर्गम भी मैं ही करती हूँ पर यह गलत है। मेरे समीप, ऊपरी भाग में और भगनासा के नीचे मूत्राशय का छेद है जहाँ से प्रगति पेशाब करती है।
जहाँ छोटे भगोष्ठ ऊपर को मिलते हैं वहाँ पर प्रगति के शरीर का सबसे संवेदनशील अंग है जिसे भगनासा (clitoris) कहते हैं। यह आकार में लगभग एक मटर के दाने के समान होती है। इसमें करीब 8000 से ज्यादा तंत्रिकाएं केंद्रित होती हैं जिस कारण यह बहुत ही मार्मिक अंग बन जाती है... इतनी तंत्रिकाएं तो पुरुष के लिंग के सुपाड़े में भी नहीं होतीं। यह इतनी मार्मिक होती है कि प्रकृति ने इसे एक घूंघट-नुमा टोपे में छुपाया होता है जिससे यह अप्रत्याशित घर्षण से बच जाये। इसे मैं पुरुष के लिंग के समरूप मानती हूँ... यह भी लिंग की ही तरह उत्तेजना पर उभर जाती है और अपने घूंघट से बाहर आ जाती है... और लिंग के सुपाड़े की ही तरह इसका स्पर्श प्रगति में ज़ोरदार रोमांच पैदा कर देता है। इसको छूने से या हल्के से सहलाने से प्रगति को मज़ा तो बहुत आता है पर इसके ऊपर ज्यादा दबाव या घर्षण प्रगति सह नहीं पाती, खास तौर से चरमोत्कर्ष के तुरंत बाद... इससे उसको पीड़ा भी हो सकती है।
नाम से तो लघु भगोष्ठ (Labia Minora) छोटे होने चाहियें पर अक्सर ये काफी बड़े होते हैं और कई बार ये भगोष्ठ (Labia Majora) के अंदर नहीं समा पाते और बाहर दिखाई देते हैं। मेरा आकार और रूप लघु भगोष्ठों के कारण ही भिन्न-भिन्न होता है। कुछ लोग समझते हैं कि मैं एक छेद हूँ जिसके पीछे कोई सुरंग या गुफा नुमा ट्यूब है जिसमें सम्भोग के समय पुरुष का लिंग जाता है। मैं कोई खोखली सुरंग नहीं हूँ... मैं हमेशा पिचकी हुई और बंद रहती हूँ। सम्भोग के दौरान लिंग का प्रवेश मुझे खोलता हुआ अंदर जाता है और जब वह बाहर आता है तो मैं अपने आप फिर से बंद हो जाती हूँ। इस कारण पुरुष को हर बार लिंग प्रवेश करने में घर्षण का आनंद मिलता है... मेरे अंदर की दीवारें लिंग की पूरी लम्बाई पर संपर्क बनाये रखती हैं जिससे पूरे लिंग को अंदर-बाहर होते समय घर्षण का अहसास होता है। अगर मैं ऐसी नहीं होती तो मर्दों को यौन सुख का मज़ा नहीं मिलता और शायद प्रगति भी मैथुन-सुख से वंचित रह जाती।
जैसा मैंने कहा, प्रगति के पैदा होने से लेकर उसकी पांचवीं सालगिरह तक मेरे रूप और आकार में ज्यादा बदलाव नहीं आया। फिर अगले दो-तीन साल तक मेरा आकार थोडा बड़ा हुआ। इसके बाद तो जब प्रगति ने यौवनावस्था में क़दम रखा (11-12 वर्ष की उम्र) तभी मेरे आकार और रूप में बदलाव आने शुरू हुए। ऊपर प्रगति के स्तनों का विकास शुरू हुआ और नीचे मेरे द्वार के इर्द-गिर्द बाल आने शुरू हो गए। मेरे ऊपर स्थित शुक्र-टीला (Mound of Venus) बढ़ने लगा... मेरे लघु भगोष्ठ बड़े होकर हल्के-हल्के बाहर प्रकट होने लगे...
उनका रंग गुलाबी से बदल कर कत्थई सा होने लगा और उनकी अंदरूनी दीवारों का गीलापन बढ़ने लगा। प्रगति के गर्भाशय (Uterus) और अंडाशय (Ovaries) के विकास के साथ-साथ उसके शरीर में और कई बदलाव आने लगे। उसके स्तनों, कमर, कूल्हों, जांघों, ऊपरी बाजू और जघन हिस्से (Pubic Area) में चर्बी की मात्रा बढ़ने लगी जिससे उसके अंगों में गोलाई बढ़ने लगी। अगले दो-तीन सालों तक यह उन्नति होती रही... प्रगति का शरीर सुडौल होता गया... उसके स्तन उभर आये तथा चूचक बड़े हो गए।
अब वह पहले की तरह फ्रॉक नहीं पहन सकती थी... उसे चोली और दुपट्टे की ज़रूरत होने लगी। उसके कूल्हे पीछे की ओर उभर कर अपना अस्तित्व दर्शाने लगे। उसके लघु भगोष्ठ और बड़े हो गए और भगनासा उभर कर दिखने लगी... प्रगति के चेहरे पर मुहांसे आने लगे और उसके पसीने की दुर्गन्ध वयस्क हो गई।अचानक एक दिन, जब प्रगति 13 साल की थी, तब उसको पहली बार माहवारी का रिसाव हुआ। मुझे याद है प्रगति कितना डर गई थी और रोती-रोती अपनी माँ के पास गई थी जिसने उसको इस बारे में समझाया और दिलासा दिया था।माहवारी शुरू होना प्रगति के प्रजनन-योग्य होने का प्रतीक था। हालांकि, अभी 4-5 वर्ष तक उसके प्रजनन के बाकी अंग परिपक्व नहीं होंगे और तब तक उसके लिए प्रसव जोखिम दायक हो सकता है।
यहाँ मैं माहवारी चक्र के बारे में बता दूँ। मेरा माहवारी चक्र सामान्यतः 28 दिन का होता है। क्योंकि प्रकृति ने गर्भाशय को प्रजनन के लिए बनाया है, हर 28 दिन के क्रम में, दोनों अंडाशयों में से एक अंडाशय, एक अंडा गर्भाशय में भेजता है। यह अंडा ग्रीवा के समीप पुरुष के शुक्राणु से मिलने का इंतज़ार करता रहता है। साथ ही गर्भाशय की अंदरूनी परत गर्भधारण की तैयारी में लग जाती है। अगर इस अंडे का पुरुष के वीर्योपात के करोड़ों में से किसी एक भी शुक्राणु से सफल मिलन हो जाता है तो गर्भ बैठ जाता है और गर्भाशय में अगले 9 महीनों तक भ्रूण पनपता है और फिर शिशु का जन्म होता है।
अगर किसी कारण अंडे और शुक्राणु का मिलन नहीं होता तो गर्भाशय हर 28 दिन अपनी अंदरूनी परत को त्याग देता है। यह परत मेरे मार्ग से होती हुई बाहर आती है जिसे माहवारी कहते हैं। माहवारी में रिसने वाले तरल पदार्थ मात्रा में करीब दो से ढाई चम्मच के होते हैं। प्रगति समझती है कि यह केवल रक्त होता है पर ऐसा नहीं है। इसमें गर्भाशय की अंदरूनी परत के अंश, मेरे रिसाव वाले तरल पदार्थ तथा परत के छूटने से निकले रक्त के अंश होते हैं। इसका रंग गहरा कत्थई-लाल होता है और यह आम खून की तरह जल्दी से जमता नहीं है। ना ही इसके रिसाव से रक्त में लोहे की मात्रा (Hb) कम होती है। इतना ज़रूर है कि माहवारी का प्रजनन क्रिया और गर्भधारण से गहरा सम्बन्ध है। इस सम्बन्ध का गर्भधारण के लिए तथा गर्भ-निरोधन, दोनों के लिए उपयोग किया जा सकता है।
माहवारी चक्र सामान्यतः 28 दिन का होता है पर यह 2-4 दिन इधर-उधर हो सकता है। माहवारी का बंद हो जाना गर्भ-धारण का सबसे ठोस सबूत माना जाता है। यह चक्र गर्भ-धारण से लेकर शिशु-जन्म तथा उसके उपरान्त शिशु के स्तन-सेवन की अवधि तक बंद रहता है। जब तक यह चक्र दोबारा शुरू नहीं हो जाता आगामी गर्भधारण नहीं हो सकता। प्रगति के शारीरिक उत्थान का क्रम करीब 3-4 साल तक और चला ... जिसमें उसके स्तन और यौनांगों के विकास के अलावा उसके जघन बाल काफी घने हो गए और उन्होंने मुझे तो मानो आँखों से ओझल ही कर दिया। तब से लेकर अब तक इतने साल हो गए हैं ... परन्तु मेरे आकार और रूप में और कोई बदलाव नहीं आया है।
जब प्रगति करीब दस साल की थी तब उसके मामा की शादी के सिलसिले में घर में बहुत रिश्तेदार आये हुए थे और कई दिनों तक वे घर में ही रहे थे। सब बच्चे एक साथ सोते थे। एक बार प्रगति के मौसेरे भाई ने उसके साथ सोते समय, रजाई के अंदर से ही उसके बदन पर हाथ फेरा था और धीरे-धीरे अपनी उँगलियाँ मेरे ऊपर चलाई थी। पहले तो प्रगति की चड्डी के ऊपर से ही मुझे छुआ था पर बाद में उसने चड्डी एक तरफ करके मुझे सीधा छुआ। प्रगति सोने का नाटक करती हुई पड़ी रही थी। यह पहला अवसर था जब किसी लड़के ने मुझे छुआ था। उस समय मुझ पर कोई खास असर नहीं हुआ था पर बाद में प्रगति कभी-कभी मुझे अकेले में मुझे छूने लगी थी।
जब मेरे आस-पास जघन बाल उगने लगे तब से प्रगति को मुझे छूने में मज़ा आने लगा। पहले तो वह सिर्फ अपनी उँगलियों को मेरे मुँह के ऊपर और बाहर चलाती थी पर बाद में, जब में अंदर से गीली होने लगी, तब वह अपनी ऊँगली का सिरा मेरे अंदर भी डालने लगी थी। मुझे बहुत अच्छा लगने लगा था।
जब प्रगति 18 साल की हो गई तब मैं पूर्ण-रूप से अपने दोनों निर्धारित दायित्व निभाने के लिए तैयार हो गई थी... ये दायित्व थे सम्भोग-सुख और प्रजनन ! प्रगति ने सर्व-प्रथम सम्भोग अपनी सुहागरात को ही किया था... शादी के बाद।
वह यौन के बारे में कुछ नहीं जानती थी और उसका पति भी इस मामले में अबोध सा ही था। उन्होंने जैसे-तैसे अपनी सुहागरात मनाई। प्रगति को कोई खास मज़ा नहीं आया था। मुझे भी दर्द हुआ था... खास तौर से उस समय जब प्रगति के पति ने अपने लिंग से मेरे अंदर की कौमार्य-झिल्ली को भेदा था। प्रगति सिहर सी गई थी और झिल्ली के पतन से जो खून बहा था उसे देख कर डर भी गई थी। पर उसका पति बहुत खुश था... उसने प्रगति को खूब प्यार किया था।
सुहागरात के बाद से तो समझो मेरा बुरा हाल हो गया था। प्रगति के पति पर तो जैसे मेरा भूत सवार हो गया था... उसे हर समय बस मेरा ख्याल ही रहता था। सुबह, दोपहर, शाम और रात जब भी उसे समय मिलता और प्रगति को अकेली पाता, बस मुझ में उसकी ऊँगली, जीभ या लिंग लगा रहता था।मैं भी बहुत खुश थी और जब भी उसका पति नजदीक होता था मैं अपने आप को सम्भोग के लिए तैयार कर लेती थी... इसके लिए मैं अपने आप को कामुक-रसों से ओत-प्रोत करके अपनी अंदरूनी दीवारों को चिकना कर लेती थी जिससे लिंग प्रवेश में आसानी हो...
मेरे भगोष्ठ सपाट होकर मेरे बंद कपाट को थोड़ा खोल देते जिससे मेरे लघु-भगोष्ठ प्रकट हो जाते और लिंग के स्वागत के लिए तत्पर हो जाते.... मेरी भगनासा अपने घूंघट-रूपी मुकुट से बाहर आ जाती ... मेरे भगोष्ठ की लालिमा गहरा जाती....
इसके अलावा, प्रगति के स्तन उभर जाते, चूचियाँ कड़क हो जाती, आँखों की पुतली बढ़ जाती और उसकी साँसें तेज होने लगती .... ये सब संकेत प्रगति की उत्तेजना दर्शाते थे और उसे सम्भोग के लिए तैयार करते थे।
उत्तेजित हालत में मेरा मुंह करीब 30% छोटा हो जाता है, भगोष्ठ सपाट होकर समतल हो जाते हैं, और लघु भगोष्ठ रक्त से भर कर करीब दो से छः गुना बड़े हो जाते हैं जिससे मेरा द्वार कुछ खुल सा जाता है। भगनासा उभर जाती है। मेरा मुँह छोटा हो जाने से सम्भोग क्रिया में घर्षण आनंद स्त्री-पुरुष, दोनों के लिए बढ़ जाता है। जब सम्भोग या हस्त-मैथुन के फलस्वरूप प्रगति चरमोत्कर्ष को प्राप्त होती है तो मेरी बाहरी दो-तिहाई (2/3) हिस्से में तथा गर्भाशय और गुदा में एक साथ तालबद्ध संकुचन शुरू होते हैं। शुरू में ये संकुचन तेज़ होते हैं ( हर 0.8 सेकंड में एक) और धीरे-धीरे इनकी रफ़्तार कम होती जाती है। ये संकुचन कभी तो एक-दो ही होते हैं तो कभी 15-20 तक हो सकते हैं.... इनकी तीव्रता एवं अवधि प्रगति की मनःस्थिति, उत्तेजना और संतुष्टि पर निर्भर होती है। इस दौरान भगनासा अत्यंत मर्मशील हो जाती है और उसको किसी तरह का स्पर्श वेदना दे सकता है इसलिए वह अपने घूंघट में दुबक जाती है। वह अभी भी सिकुड़ती नहीं, बस संकुचन क्रम समाप्त होने तक आश्रय में चली जाती है। अगर प्रगति की उत्तेजना कुछ ज्यादा अधिक हो तो चरमोत्कर्ष के समय मेरी स्कीन-ग्रंथि (Skene’s Glands) या मूत्राशय से तरल द्रव्य का फव्वारा-नुमा निष्कासन हो सकता है... जैसे मरदाना वीर्योत्पात होता है।
चरमोत्कर्ष के बाद अंगों में जो अतिरिक्त रक्त आ गया था वह धीरे-धीरे वापस चला जाता है। अगर प्रगति को चरमोत्कर्ष की प्राप्ति नहीं हुई हो तो रक्त की वापसी में ज्यादा समय लगता है मानो वह संतुष्ट नहीं है। भगोष्ठ, लघु भगोष्ठ और भगनासा अपने सामान्य आकार, रंग और रूप में आ जाते हैं। कुछ अंतराल के बाद भगनासा की मर्मशीलता कम हो जाती है और उसको स्पर्श दोबारा से आनंददायक लगने लगता है। जब ऐसा होता है तो एक बार फिर सम्भोग करने का सामर्थ्य मुझ में आ जाता है। किसी भी पुरुष के मुक़ाबले मुझ में यह सामर्थ्य काफी जल्दी आ जाता है।
जब प्रगति ने अपने पुत्र को जन्म दिया था तब मैंने अपने विराट-रूप का प्रदर्शन किया था। मेरा मार्ग और मुख इतने बड़े हो गए थे कि एक शिशु का सिर, जो कि करीब 10 cm (4 इंच) व्यास का होता है, इस मार्ग द्वारा दुनिया में आया था। हाँ, प्रगति को मेरे इस विराट-रूप धारण के दौरान बहुत ज्यादा पीड़ा हुई थी पर प्रसव के तुरंत बाद उसका दर्द अपने शिशु को देखकर बिलकुल काफ़ूर हो गया था। मैं भी कुछ समय बाद लगभग सामान्य आकार में आ गई थी। आँख की पुतली के अलावा शरीर को कोई और अंग इतना ज्यादा लोचदार नहीं होता।
प्रगति जब 50 साल के लगभग होगी तब मेरे में एक स्थायी परिवर्तन आएगा जिससे मेरी प्रजनन क्षमता बंद हो जायेगी। इसको रजोनिवृत्ति (Menopause) कहते हैं। यह भी प्रकृति की नेमत है जिससे वृद्धावस्था में गर्भ-धारण जैसे अत्यंत महत्वपूर्ण दायित्व से निजात मिल जाती है। जैसे–जैसे प्रगति की आयु बढ़ेगी मेरी प्रजनन और यौन-आनंद देने वाली प्राथमिक भूमिकाएं खत्म होने लगेंगी।
मैं प्रगति का एक बहुत ही महत्त्वपूर्ण अंग हूँ जो कि बहुत चमत्कारिक भूमिका निभाती हूँ। प्रकृति ने मुझे इतनी सुरक्षित जगह स्थान दिया है कि जीवन की आम चर्या से मुझे चोट या क्षति नहीं पहुँच सकती। आम दुर्घटनाओं से भी मैं बच जाती हूँ। मुझे शारीरिक नुकसान तभी होता है जब कोई जानबूझ कर मुझे तकलीफ देना चाहे। जैसे कि बलात्कार, प्रतिशोध या कोई असामान्य घटना।
हाँ, मुझे कई तरह की तकलीफें और रोग हो सकते हैं जो इतने महत्वपूर्ण हैं कि चिकित्सा विज्ञान ने मेरी सेवा-शुश्रुषा के लिए एक अलग ही विभाग बनाया है – प्रसूतिशास्त्र (Gynaecology)।
मुझे कुछ विकार हो सकते हैं जैसे असामान्य रिसाव, जलन, खुजली इत्यादि जो कि अक्सर साफ़-सफाई की कमी से होते हैं। वैसे अंदर से तो मैं अपने आप को स्वतः ही साफ़ रखती हूँ पर भगोष्ठ और जघन बालों में अगर मूत्र, मल, वीर्य या कोई बाहरी गंदगी रह जाये तो यह रोग पैदा कर सकती है। इसके अलावा, मुझे माहवारी सम्बंधित अनियमितताएँ या फिर यौन संचारित रोग हो सकते हैं। इनसे बचने के लिए सम्भोग का सुरक्षात्मक होना ज़रूरी है यानि या तो भरोसेमंद एवं स्वस्थ पुरुष के साथ सम्भोग या फिर मुझे रोग देने वाली प्रक्रियाओं से उपयुक्त बचाव। इसके लिए पुरुष का कंडोम इस्तेमाल करना मुझे बहुत संतोषजनक लगता है। प्रगति के बाकी अंगों की तरह सेहतमंद खुराक, पर्याप्त मात्रा में पानी और नियमित व्यायाम करने से मैं हमेशा भली-चंगी रहूंगी।
अब मुझे जाना है... लगता है प्रगति का पति आने वाला है ... मैं तैयार हो जाऊँ !!!
मैं प्रगति की योनि हूँ ! प्रगति एक 36 साल की मध्यम-वर्गीय, कार्यरत महिला है जिसकी शादी को 15 साल हो चुके हैं और उसके एक बेटा है जो अब 12 साल का है। उसके पति सरकारी कर्मचारी हैं और उनकी उम्र 40 साल है। मैं प्रगति का सबसे छुपा हुआ अंग हूँ... मुझे बहुत कम लोगों ने देखा है... प्रकृति ने मुझे ऐसी जगह स्थित किया है कि किसी भी के लिए मुझे ठीक से देखना लगभग नामुमकिन है... और यह सही भी है क्योंकि मैं प्रगति का सबसे अनमोल अंग हूँ और मुझे प्रगति की 'इज्ज़त' समझा जाता है।
बाकी लोगों की बात छोड़ो, मुझे तो प्रगति ने भी ठीक से नहीं देखा है ! जब प्रगति छोटी थी तब उसे मुझमें कोई दिलचस्पी ही नहीं थी... बस प्रगति की माँ उसे नहलाते समय मुझमें पानी डालकर अपनी उँगलियों से मुझे साफ़ कर देती थी ! मुझे बहुत अच्छा लगता था। मुझे तभी से अपने ऊपर पानी की बौछार और उँगलियों का स्पर्श अच्छा लगता चला आ रहा है।
जब प्रगति थोड़ी बड़ी हुई तो कभी-कभार अपनी उँगलियों से मुझे छूने लगी थी पर उसने कभी मुझे देखने की कोशिश नहीं की। शायद उसको मुझे देखना मुश्किल भी था क्योंकि बचपन में प्रगति थोड़ी मोटी थी तो अपने पेट के ऊपर से मुझे देख नहीं सकती थी... और बाद में, जब प्रगति ने जवानी की दहलीज़ पर कदम रखा, तो मैंने अपने आप को रेशमी बालों के घूँघट में छुपा लिया था...
जिससे मेरे दर्शन उसके लिए और भी दूभर हो गए थे।मुझे तो लगता है मुझे प्रगति से ज्यादा तो उसके पति और प्रगति के डॉक्टर ने देखा होगा। प्रगति इस मामले में अकेली नहीं है... बहुत सी लड़कियाँ और महिलाएँ अपनी योनि को ठीक से नहीं देखतीं या यूं कहिये कि देख नहीं पातीं।चलो मैं अपने बारे में खुद ही तुम्हें बता दूं क्योंकि प्रगति को मेरे बारे में तो कोई खास जानकारी है नहीं।
स्त्री यौनांगों का बाहरी रूप
मैं एक 3.5 से 4 इंच लंबी और करीब 3 इंच परिधि की एक पिचकी हुई ट्यूब-नुमा नाली हूँ जिसका एक सिरा प्रगति की जाँघों के बीच खुलता है और दूसरा सिरा प्रगति के गर्भाशय से जुड़ा हुआ है। यह अंदर वाला सिरा लगभग बंद है और सिर्फ बहुत सूक्ष्म तत्व या पदार्थ ही इसके पार गर्भाशय में जा सकता है।
मेरे आकार को तुम एक पिचके हुए कंडोम की तरह समझ सकते हो। मेरे अंदर की दीवारें लचीली होती हैं जिससे प्रगति की यौन उत्तेजना के समय मेरा आकार बढ़कर 5 से 6 इंच का हो जाता है। मेरी दीवारों में ऐसी ग्रंथियाँ होती हैं जो प्रगति की उत्तेजना के समय तरल द्रव्यों का प्रवाह करती हैं जिनसे मैं अंदर से नम या गीली हो जाती हूँ। ऐसा होने से मेरे अंदर पुरुष के लिंग का प्रवेश आसान हो जाता है और मुझे तकलीफ नहीं होती।
मेरे द्वार से लेकर करीब डेढ़ इंच अंदर तक मेरी दीवारों में अनेक तंत्रिकाएँ होती हैं जिनसे प्रगति को स्पर्श, घर्षण, दर्द या सुख की अनुभूति होती है। मेरे बाकी के अंदर के इलाके में ये तंत्रिकाएं नहीं होतीं हैं... अतः प्रगति को शुरू के डेढ़ इंच बाद अंदर कुछ महसूस नहीं होता। यह बात प्रगति के पति को पता नहीं है... वह फालतू में अपने 5 इंच के उत्तेजित लिंग को छोटा समझता है। सच में, मुझे तो केवल दो-तीन इंच का लिंग भी आनंद देने के लिए पर्याप्त है। सच पूछो तो 5-6 इंच से ज्यादा लंबे लिंग तो मेरे उत्तेजित आकार से बड़े होते हैं... सो मुझे तकलीफ दे सकते हैं और प्रगति के गर्भाशय को चोट भी पहुंचा सकते हैं।
लम्बाई से ज्यादा तो मुझे मोटे और कड़क लिंग ज्यादा पसंद हैं जो मेरी तंत्रिकाओं को प्रबलता से रगड़ पाते हैं और प्रगति को असीम आनंद देते हैं।
जब प्रगति पैदा हुई थी तो मेरा आकार करीब डेढ़ इंच लंबा था और मेरा मुंह काफी छोटा था। करीब पांच साल की उम्र तक मेरा आकार लगभग उतना ही रहा। उन दिनों जब प्रगति नंगी खड़ी होती थी तो कोई भी मुझे देख सकता था क्योंकि मैं सीधी और खड़ी दिशा में, लगभग लम्बवत, (vertical) थी ... सबके सामने... मुझे कोई शर्म नहीं थी... पर जबसे प्रगति ने यौवनावस्था में क़दम रखा है तबसे मेरे ठीक ऊपर स्थित शुक्र-टीला (Mound of Venus) धीरे-धीरे पनपने लगा और उसके उभार के कारण मैं नीचे की तरफ होने लगी।
प्रगति के सोलहवें साल के आस-पास तक मैं लगभग ज़मीन के समानांतर दिशा में, लगभग दंडवत (horizontal) हो गयी थी। इसी दौरान जब प्रगति बारह साल की हुई थी तब मेरे होठों के आस-पास बाल आने शुरू हो गए थे.... शुरू में बहुत ही मुलायम, काले रेशम जैसे इक्का-दुक्का बाल आये जो कि मेरे होंठों के इर्द-गिर्द उगे थे... धीरे-धीरे 3-4 साल में ये बाल घने होते चले गए और मेरे होटों को तथा मेरे आस-पास के इलाके को एक तिकोने आकार से ढक दिया।
कहने का मतलब यह कि जहाँ प्रगति के बचपन में मैं बड़ी शान से अपने आप को दिखा सकती थी, उसकी जवानी के आते-आते मैं ना केवल उसकी जाँघों के बीच, ज़मीन के समानांतर हो गई, मेरे ऊपर बालों का घूंघट सा भी आ गया। इसके फलस्वरूप औरों की बात तो दूर, खुद प्रगति भी नंगी होकर मुझे ठीक से देख नहीं सकती थी। उसे मेरे दर्शन करने के लिए किसी रोशन इलाके में आगे झुक कर, टांगें खोल कर, बालों का झुरमुट हटा कर एक दर्पण की ज़रूरत होती है। शायद इसीलिए उसने मुझे ठीक से देखा नहीं है। देखा जाये तो मैं प्रगति के जननांगों का बाहरी प्रारूप हूँ... जननांग मतलब प्रसव अथवा प्रसूति अंग या जन्म देने वाले अंग। मैं प्रगति के गर्भाशय तक मरदाना जीवाणु पहुँचाने का मार्ग हूँ... मेरी भूमिका इतनी महत्वपूर्ण है कि प्रकृति ने मेरी सुरक्षा के लिए दो-दो द्वार (double-door) लगाये हुए हैं... बड़े भगोष्ठ और छोटे भगोष्ठ। ये दोनों प्रायः बंद ही रहते है और बाहरी गंदगी और कीटाणुओं से मेरा बचाव करते हैं। इन दोनों होटों के बंद होने के बावजूद भी अंदर मैं पिचकी हुई ही रहती हूँ। मेरा यह पिचका रहना ना केवल बाहर के प्रदूषण से एक अतिरिक्त बचाव है बल्कि यौन संसर्ग के दौरान यह घर्षण पैदा करने का निराला तरीका है।
मेरे दो मुख्य कार्य हैं... प्रजनन तथा यौन-सुख का आदान-प्रदान। मैं यौन सुख देती भी हूँ और लेती भी हूँ। प्रगति समझती है कि उसके मूत्र का निर्गम भी मैं ही करती हूँ पर यह गलत है। मेरे समीप, ऊपरी भाग में और भगनासा के नीचे मूत्राशय का छेद है जहाँ से प्रगति पेशाब करती है।
जहाँ छोटे भगोष्ठ ऊपर को मिलते हैं वहाँ पर प्रगति के शरीर का सबसे संवेदनशील अंग है जिसे भगनासा (clitoris) कहते हैं। यह आकार में लगभग एक मटर के दाने के समान होती है। इसमें करीब 8000 से ज्यादा तंत्रिकाएं केंद्रित होती हैं जिस कारण यह बहुत ही मार्मिक अंग बन जाती है... इतनी तंत्रिकाएं तो पुरुष के लिंग के सुपाड़े में भी नहीं होतीं। यह इतनी मार्मिक होती है कि प्रकृति ने इसे एक घूंघट-नुमा टोपे में छुपाया होता है जिससे यह अप्रत्याशित घर्षण से बच जाये। इसे मैं पुरुष के लिंग के समरूप मानती हूँ... यह भी लिंग की ही तरह उत्तेजना पर उभर जाती है और अपने घूंघट से बाहर आ जाती है... और लिंग के सुपाड़े की ही तरह इसका स्पर्श प्रगति में ज़ोरदार रोमांच पैदा कर देता है। इसको छूने से या हल्के से सहलाने से प्रगति को मज़ा तो बहुत आता है पर इसके ऊपर ज्यादा दबाव या घर्षण प्रगति सह नहीं पाती, खास तौर से चरमोत्कर्ष के तुरंत बाद... इससे उसको पीड़ा भी हो सकती है।
नाम से तो लघु भगोष्ठ (Labia Minora) छोटे होने चाहियें पर अक्सर ये काफी बड़े होते हैं और कई बार ये भगोष्ठ (Labia Majora) के अंदर नहीं समा पाते और बाहर दिखाई देते हैं। मेरा आकार और रूप लघु भगोष्ठों के कारण ही भिन्न-भिन्न होता है। कुछ लोग समझते हैं कि मैं एक छेद हूँ जिसके पीछे कोई सुरंग या गुफा नुमा ट्यूब है जिसमें सम्भोग के समय पुरुष का लिंग जाता है। मैं कोई खोखली सुरंग नहीं हूँ... मैं हमेशा पिचकी हुई और बंद रहती हूँ। सम्भोग के दौरान लिंग का प्रवेश मुझे खोलता हुआ अंदर जाता है और जब वह बाहर आता है तो मैं अपने आप फिर से बंद हो जाती हूँ। इस कारण पुरुष को हर बार लिंग प्रवेश करने में घर्षण का आनंद मिलता है... मेरे अंदर की दीवारें लिंग की पूरी लम्बाई पर संपर्क बनाये रखती हैं जिससे पूरे लिंग को अंदर-बाहर होते समय घर्षण का अहसास होता है। अगर मैं ऐसी नहीं होती तो मर्दों को यौन सुख का मज़ा नहीं मिलता और शायद प्रगति भी मैथुन-सुख से वंचित रह जाती।
जैसा मैंने कहा, प्रगति के पैदा होने से लेकर उसकी पांचवीं सालगिरह तक मेरे रूप और आकार में ज्यादा बदलाव नहीं आया। फिर अगले दो-तीन साल तक मेरा आकार थोडा बड़ा हुआ। इसके बाद तो जब प्रगति ने यौवनावस्था में क़दम रखा (11-12 वर्ष की उम्र) तभी मेरे आकार और रूप में बदलाव आने शुरू हुए। ऊपर प्रगति के स्तनों का विकास शुरू हुआ और नीचे मेरे द्वार के इर्द-गिर्द बाल आने शुरू हो गए। मेरे ऊपर स्थित शुक्र-टीला (Mound of Venus) बढ़ने लगा... मेरे लघु भगोष्ठ बड़े होकर हल्के-हल्के बाहर प्रकट होने लगे...
उनका रंग गुलाबी से बदल कर कत्थई सा होने लगा और उनकी अंदरूनी दीवारों का गीलापन बढ़ने लगा। प्रगति के गर्भाशय (Uterus) और अंडाशय (Ovaries) के विकास के साथ-साथ उसके शरीर में और कई बदलाव आने लगे। उसके स्तनों, कमर, कूल्हों, जांघों, ऊपरी बाजू और जघन हिस्से (Pubic Area) में चर्बी की मात्रा बढ़ने लगी जिससे उसके अंगों में गोलाई बढ़ने लगी। अगले दो-तीन सालों तक यह उन्नति होती रही... प्रगति का शरीर सुडौल होता गया... उसके स्तन उभर आये तथा चूचक बड़े हो गए।
अब वह पहले की तरह फ्रॉक नहीं पहन सकती थी... उसे चोली और दुपट्टे की ज़रूरत होने लगी। उसके कूल्हे पीछे की ओर उभर कर अपना अस्तित्व दर्शाने लगे। उसके लघु भगोष्ठ और बड़े हो गए और भगनासा उभर कर दिखने लगी... प्रगति के चेहरे पर मुहांसे आने लगे और उसके पसीने की दुर्गन्ध वयस्क हो गई।अचानक एक दिन, जब प्रगति 13 साल की थी, तब उसको पहली बार माहवारी का रिसाव हुआ। मुझे याद है प्रगति कितना डर गई थी और रोती-रोती अपनी माँ के पास गई थी जिसने उसको इस बारे में समझाया और दिलासा दिया था।माहवारी शुरू होना प्रगति के प्रजनन-योग्य होने का प्रतीक था। हालांकि, अभी 4-5 वर्ष तक उसके प्रजनन के बाकी अंग परिपक्व नहीं होंगे और तब तक उसके लिए प्रसव जोखिम दायक हो सकता है।
यहाँ मैं माहवारी चक्र के बारे में बता दूँ। मेरा माहवारी चक्र सामान्यतः 28 दिन का होता है। क्योंकि प्रकृति ने गर्भाशय को प्रजनन के लिए बनाया है, हर 28 दिन के क्रम में, दोनों अंडाशयों में से एक अंडाशय, एक अंडा गर्भाशय में भेजता है। यह अंडा ग्रीवा के समीप पुरुष के शुक्राणु से मिलने का इंतज़ार करता रहता है। साथ ही गर्भाशय की अंदरूनी परत गर्भधारण की तैयारी में लग जाती है। अगर इस अंडे का पुरुष के वीर्योपात के करोड़ों में से किसी एक भी शुक्राणु से सफल मिलन हो जाता है तो गर्भ बैठ जाता है और गर्भाशय में अगले 9 महीनों तक भ्रूण पनपता है और फिर शिशु का जन्म होता है।
अगर किसी कारण अंडे और शुक्राणु का मिलन नहीं होता तो गर्भाशय हर 28 दिन अपनी अंदरूनी परत को त्याग देता है। यह परत मेरे मार्ग से होती हुई बाहर आती है जिसे माहवारी कहते हैं। माहवारी में रिसने वाले तरल पदार्थ मात्रा में करीब दो से ढाई चम्मच के होते हैं। प्रगति समझती है कि यह केवल रक्त होता है पर ऐसा नहीं है। इसमें गर्भाशय की अंदरूनी परत के अंश, मेरे रिसाव वाले तरल पदार्थ तथा परत के छूटने से निकले रक्त के अंश होते हैं। इसका रंग गहरा कत्थई-लाल होता है और यह आम खून की तरह जल्दी से जमता नहीं है। ना ही इसके रिसाव से रक्त में लोहे की मात्रा (Hb) कम होती है। इतना ज़रूर है कि माहवारी का प्रजनन क्रिया और गर्भधारण से गहरा सम्बन्ध है। इस सम्बन्ध का गर्भधारण के लिए तथा गर्भ-निरोधन, दोनों के लिए उपयोग किया जा सकता है।
माहवारी चक्र सामान्यतः 28 दिन का होता है पर यह 2-4 दिन इधर-उधर हो सकता है। माहवारी का बंद हो जाना गर्भ-धारण का सबसे ठोस सबूत माना जाता है। यह चक्र गर्भ-धारण से लेकर शिशु-जन्म तथा उसके उपरान्त शिशु के स्तन-सेवन की अवधि तक बंद रहता है। जब तक यह चक्र दोबारा शुरू नहीं हो जाता आगामी गर्भधारण नहीं हो सकता। प्रगति के शारीरिक उत्थान का क्रम करीब 3-4 साल तक और चला ... जिसमें उसके स्तन और यौनांगों के विकास के अलावा उसके जघन बाल काफी घने हो गए और उन्होंने मुझे तो मानो आँखों से ओझल ही कर दिया। तब से लेकर अब तक इतने साल हो गए हैं ... परन्तु मेरे आकार और रूप में और कोई बदलाव नहीं आया है।
जब प्रगति करीब दस साल की थी तब उसके मामा की शादी के सिलसिले में घर में बहुत रिश्तेदार आये हुए थे और कई दिनों तक वे घर में ही रहे थे। सब बच्चे एक साथ सोते थे। एक बार प्रगति के मौसेरे भाई ने उसके साथ सोते समय, रजाई के अंदर से ही उसके बदन पर हाथ फेरा था और धीरे-धीरे अपनी उँगलियाँ मेरे ऊपर चलाई थी। पहले तो प्रगति की चड्डी के ऊपर से ही मुझे छुआ था पर बाद में उसने चड्डी एक तरफ करके मुझे सीधा छुआ। प्रगति सोने का नाटक करती हुई पड़ी रही थी। यह पहला अवसर था जब किसी लड़के ने मुझे छुआ था। उस समय मुझ पर कोई खास असर नहीं हुआ था पर बाद में प्रगति कभी-कभी मुझे अकेले में मुझे छूने लगी थी।
जब मेरे आस-पास जघन बाल उगने लगे तब से प्रगति को मुझे छूने में मज़ा आने लगा। पहले तो वह सिर्फ अपनी उँगलियों को मेरे मुँह के ऊपर और बाहर चलाती थी पर बाद में, जब में अंदर से गीली होने लगी, तब वह अपनी ऊँगली का सिरा मेरे अंदर भी डालने लगी थी। मुझे बहुत अच्छा लगने लगा था।
जब प्रगति 18 साल की हो गई तब मैं पूर्ण-रूप से अपने दोनों निर्धारित दायित्व निभाने के लिए तैयार हो गई थी... ये दायित्व थे सम्भोग-सुख और प्रजनन ! प्रगति ने सर्व-प्रथम सम्भोग अपनी सुहागरात को ही किया था... शादी के बाद।
वह यौन के बारे में कुछ नहीं जानती थी और उसका पति भी इस मामले में अबोध सा ही था। उन्होंने जैसे-तैसे अपनी सुहागरात मनाई। प्रगति को कोई खास मज़ा नहीं आया था। मुझे भी दर्द हुआ था... खास तौर से उस समय जब प्रगति के पति ने अपने लिंग से मेरे अंदर की कौमार्य-झिल्ली को भेदा था। प्रगति सिहर सी गई थी और झिल्ली के पतन से जो खून बहा था उसे देख कर डर भी गई थी। पर उसका पति बहुत खुश था... उसने प्रगति को खूब प्यार किया था।
सुहागरात के बाद से तो समझो मेरा बुरा हाल हो गया था। प्रगति के पति पर तो जैसे मेरा भूत सवार हो गया था... उसे हर समय बस मेरा ख्याल ही रहता था। सुबह, दोपहर, शाम और रात जब भी उसे समय मिलता और प्रगति को अकेली पाता, बस मुझ में उसकी ऊँगली, जीभ या लिंग लगा रहता था।मैं भी बहुत खुश थी और जब भी उसका पति नजदीक होता था मैं अपने आप को सम्भोग के लिए तैयार कर लेती थी... इसके लिए मैं अपने आप को कामुक-रसों से ओत-प्रोत करके अपनी अंदरूनी दीवारों को चिकना कर लेती थी जिससे लिंग प्रवेश में आसानी हो...
मेरे भगोष्ठ सपाट होकर मेरे बंद कपाट को थोड़ा खोल देते जिससे मेरे लघु-भगोष्ठ प्रकट हो जाते और लिंग के स्वागत के लिए तत्पर हो जाते.... मेरी भगनासा अपने घूंघट-रूपी मुकुट से बाहर आ जाती ... मेरे भगोष्ठ की लालिमा गहरा जाती....
इसके अलावा, प्रगति के स्तन उभर जाते, चूचियाँ कड़क हो जाती, आँखों की पुतली बढ़ जाती और उसकी साँसें तेज होने लगती .... ये सब संकेत प्रगति की उत्तेजना दर्शाते थे और उसे सम्भोग के लिए तैयार करते थे।
उत्तेजित हालत में मेरा मुंह करीब 30% छोटा हो जाता है, भगोष्ठ सपाट होकर समतल हो जाते हैं, और लघु भगोष्ठ रक्त से भर कर करीब दो से छः गुना बड़े हो जाते हैं जिससे मेरा द्वार कुछ खुल सा जाता है। भगनासा उभर जाती है। मेरा मुँह छोटा हो जाने से सम्भोग क्रिया में घर्षण आनंद स्त्री-पुरुष, दोनों के लिए बढ़ जाता है। जब सम्भोग या हस्त-मैथुन के फलस्वरूप प्रगति चरमोत्कर्ष को प्राप्त होती है तो मेरी बाहरी दो-तिहाई (2/3) हिस्से में तथा गर्भाशय और गुदा में एक साथ तालबद्ध संकुचन शुरू होते हैं। शुरू में ये संकुचन तेज़ होते हैं ( हर 0.8 सेकंड में एक) और धीरे-धीरे इनकी रफ़्तार कम होती जाती है। ये संकुचन कभी तो एक-दो ही होते हैं तो कभी 15-20 तक हो सकते हैं.... इनकी तीव्रता एवं अवधि प्रगति की मनःस्थिति, उत्तेजना और संतुष्टि पर निर्भर होती है। इस दौरान भगनासा अत्यंत मर्मशील हो जाती है और उसको किसी तरह का स्पर्श वेदना दे सकता है इसलिए वह अपने घूंघट में दुबक जाती है। वह अभी भी सिकुड़ती नहीं, बस संकुचन क्रम समाप्त होने तक आश्रय में चली जाती है। अगर प्रगति की उत्तेजना कुछ ज्यादा अधिक हो तो चरमोत्कर्ष के समय मेरी स्कीन-ग्रंथि (Skene’s Glands) या मूत्राशय से तरल द्रव्य का फव्वारा-नुमा निष्कासन हो सकता है... जैसे मरदाना वीर्योत्पात होता है।
चरमोत्कर्ष के बाद अंगों में जो अतिरिक्त रक्त आ गया था वह धीरे-धीरे वापस चला जाता है। अगर प्रगति को चरमोत्कर्ष की प्राप्ति नहीं हुई हो तो रक्त की वापसी में ज्यादा समय लगता है मानो वह संतुष्ट नहीं है। भगोष्ठ, लघु भगोष्ठ और भगनासा अपने सामान्य आकार, रंग और रूप में आ जाते हैं। कुछ अंतराल के बाद भगनासा की मर्मशीलता कम हो जाती है और उसको स्पर्श दोबारा से आनंददायक लगने लगता है। जब ऐसा होता है तो एक बार फिर सम्भोग करने का सामर्थ्य मुझ में आ जाता है। किसी भी पुरुष के मुक़ाबले मुझ में यह सामर्थ्य काफी जल्दी आ जाता है।
जब प्रगति ने अपने पुत्र को जन्म दिया था तब मैंने अपने विराट-रूप का प्रदर्शन किया था। मेरा मार्ग और मुख इतने बड़े हो गए थे कि एक शिशु का सिर, जो कि करीब 10 cm (4 इंच) व्यास का होता है, इस मार्ग द्वारा दुनिया में आया था। हाँ, प्रगति को मेरे इस विराट-रूप धारण के दौरान बहुत ज्यादा पीड़ा हुई थी पर प्रसव के तुरंत बाद उसका दर्द अपने शिशु को देखकर बिलकुल काफ़ूर हो गया था। मैं भी कुछ समय बाद लगभग सामान्य आकार में आ गई थी। आँख की पुतली के अलावा शरीर को कोई और अंग इतना ज्यादा लोचदार नहीं होता।
प्रगति जब 50 साल के लगभग होगी तब मेरे में एक स्थायी परिवर्तन आएगा जिससे मेरी प्रजनन क्षमता बंद हो जायेगी। इसको रजोनिवृत्ति (Menopause) कहते हैं। यह भी प्रकृति की नेमत है जिससे वृद्धावस्था में गर्भ-धारण जैसे अत्यंत महत्वपूर्ण दायित्व से निजात मिल जाती है। जैसे–जैसे प्रगति की आयु बढ़ेगी मेरी प्रजनन और यौन-आनंद देने वाली प्राथमिक भूमिकाएं खत्म होने लगेंगी।
मैं प्रगति का एक बहुत ही महत्त्वपूर्ण अंग हूँ जो कि बहुत चमत्कारिक भूमिका निभाती हूँ। प्रकृति ने मुझे इतनी सुरक्षित जगह स्थान दिया है कि जीवन की आम चर्या से मुझे चोट या क्षति नहीं पहुँच सकती। आम दुर्घटनाओं से भी मैं बच जाती हूँ। मुझे शारीरिक नुकसान तभी होता है जब कोई जानबूझ कर मुझे तकलीफ देना चाहे। जैसे कि बलात्कार, प्रतिशोध या कोई असामान्य घटना।
हाँ, मुझे कई तरह की तकलीफें और रोग हो सकते हैं जो इतने महत्वपूर्ण हैं कि चिकित्सा विज्ञान ने मेरी सेवा-शुश्रुषा के लिए एक अलग ही विभाग बनाया है – प्रसूतिशास्त्र (Gynaecology)।
मुझे कुछ विकार हो सकते हैं जैसे असामान्य रिसाव, जलन, खुजली इत्यादि जो कि अक्सर साफ़-सफाई की कमी से होते हैं। वैसे अंदर से तो मैं अपने आप को स्वतः ही साफ़ रखती हूँ पर भगोष्ठ और जघन बालों में अगर मूत्र, मल, वीर्य या कोई बाहरी गंदगी रह जाये तो यह रोग पैदा कर सकती है। इसके अलावा, मुझे माहवारी सम्बंधित अनियमितताएँ या फिर यौन संचारित रोग हो सकते हैं। इनसे बचने के लिए सम्भोग का सुरक्षात्मक होना ज़रूरी है यानि या तो भरोसेमंद एवं स्वस्थ पुरुष के साथ सम्भोग या फिर मुझे रोग देने वाली प्रक्रियाओं से उपयुक्त बचाव। इसके लिए पुरुष का कंडोम इस्तेमाल करना मुझे बहुत संतोषजनक लगता है। प्रगति के बाकी अंगों की तरह सेहतमंद खुराक, पर्याप्त मात्रा में पानी और नियमित व्यायाम करने से मैं हमेशा भली-चंगी रहूंगी।
अब मुझे जाना है... लगता है प्रगति का पति आने वाला है ... मैं तैयार हो जाऊँ !!!
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