यौनांगों को लेकर अजब-गजब मान्यताएं


यदि वर्तमान संदर्भ में देखें तो यह कल्पना की पराकाष्ठा है, लेकिन ऐसी मान्यता है कि पुराने समय में बैगा जनजाति में लोगों का लिंग हाथी की सूंड के समान होता था और उसका उपयोग जंगल की साफ-सफाई के लिए किया जाता था।
आखिर लिंग छोटा कैसे हो गया? इस संबंध में मान्यता है कि चूंकि सरकार ने बैगाओं की झूम खेती पर रोक लगा दी अत: लिंग सिकुड़कर छोटा हो गया।
इतना लंबा लिंग कि….
गडाबा आदिवासियों की लिंग के बारे में एक अलग ही कहानी है। इस समुदाय में मान्यता है कि पुराने जमाने में लिंग इतना लंबा होता कि लोग उसे कमर में लपेटकर रखते थे। अधिक लंबाई के कारण वह महिलाओं को जल्द ही थका डालता था और वे वयस्क होने पर जल्दी ही मर जाती थीं।
एक औरत के मरने के बाद एक व्यक्ति नई पत्नी ले आया। एक दिन जब वह खूब शराब पीकर आया, उस समय उसकी पत्नी चाकू से आम काट रही थी। वह उसी जगह उसके साथ शारीरिक संबंध बनाना चाहता था। चूंकि उस समय उसका बेटा वहीं बैठा था अत: उसकी इस बात से स्त्री नाराज हो गई और उसने चाकू से आदमी के लिंग को काट दिया। ऐसा माना जाता है कि तभी से लिंग सामान्य लंबाई में आ गया।
क्या ऐसा भी होता है? माथे पर लिंग, छाती पर योनि, पढ़े अगले पन्ने पर…
माथे पर लिंग, छाती पर योनि
सुनकर ही आश्चर्य होता है कि किसी व्यक्ति के माथे पर लिंग हो सकता है और वह भी तीन हाथ का। …लेकिन मंडला के गोंड आदिवासियों में जो कहानी प्रचलित है उसके अनुसार पुराने जमाने में आदमी के माथे पर लिंग होता था और वह भी तीन हाथ का। वह हाथी की सूंड की तरह लटका रहता था। इसी तरह औरतों को योनि भी छाती के बीचोबीच हुआ करती थी।
भैरोंपाल नामक व्यक्ति एक बार किसी गांव में शादी में गया। वहां पर उसने अपनी सूंड से कुछ लड़कियों का पीछा किया। इससे एक औरत को गुस्सा आ गया और उसने चाकू से भैरोंपाल के लिंग को काट दिया। वह मुश्किल से चार अंगुल का हिस्सा ही बचा पाया।
माथे पर यह हिस्सा अच्छा नहीं लग रहा था। दुखी होकर वह महादेव के पास पहुंचा और उसे किसी अन्य स्थान पर लगाने की विनती की। तब महादेव ने उसे जांघों के बीच लगा दिया।
आदमी को लगा मुर्गे का लिंग
गंजाम के लांझिया सेओरा समुदाय की मान्यता कुछ अलग ही है। इस कहानी के अनुसार कोर्नजा सेओरा और उसकी पत्नी दोनों ही बूढ़े थे। उनके पास एक लड़की और एक मुर्गा-मुर्गी थे। घर की हालत ठीक रखने के उद्देश्य से वे किन्नरसिंह नाम के लड़के को दमाद बनाने के लिए ले आए।
किन्नर और मुर्गे में जल्द ही दोस्ती हो गई। उस जमाने में मुर्गे का लिंग बड़ा होता था जबकि आदमी का छोटा।
एक शाम पास के गांव में लड़के वाद्य यंत्रों के साथ नाचने के लिए इकट्ठे हुए। इसी बीच किन्नरसिंह ने संभोग की संभावना को ध्यान को रखकर मुर्गे से अपना लिंग बदल लिया। नाच शुरू हुआ तो दूसरे दिन दोपहर चढ़ने तक चलता रहा। सूरज की रोशनी में मुर्गे का लिंग किन्नरसिंह के शरीर से और किन्नरसिंह का लिंग मुर्गे से चिपक गया। उसी दिन से मुर्गे का लिंग छोटा हो गया।
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