सेक्स और महिलाओं की बदलती सोच
आज की नारी के लिए विवाह की परिभाषा बदल गई है। पहले जहां एक शादी को ही जिंदगीभर का साथ माना जाता था, वहीं आज एक शादी करके स्त्री,पुरूष को जानना चाहती है। पति को परमेश्वर का दर्जा देने वाले रूप से वह अब बाहर आ गई है। आज तुम नहीं तो कोई और सही का चलन जोर-शोर से चल रहा है।
आज कई शादीशुदा औरतों को अपनी जिंदगी में एक और पुरूष की चाहत होती है,जो उसकी जिंदगी में रोमांस और सेक्स की स्थिति को पूरा करता हो। कल तक जहां सिर्फ पुरूष को अपनी पत्नी के अलावा दूसरी औरत से विवाहेतर संबंध बनाते थे, वहीं आज अगर स्त्री की भावनाओं की कद्र नहीं की जाए तो वह भी पर पुरूष के कंधे को तलाशने में संकोच नहीं करती। जब पुरूष स्त्री की जरूरतों को नहीं समझता है और उसे नजरअंदाज करता है,तब ऎसे संबंध जन्म लेते हैं। स्वंतत्र रूप से जीने की चाहत रखने वाली इच्छा सिर्फ स्त्री की नहीं,बल्कि पुरूष की भी है। एक-दूसरे को स्पेस देते-देते वो इतना आगे निकल जाते हैं कि घर में स्पेस होता है और बाहर नजदीकियां बन जाती है। आनंद की प्राप्ति और स्वछंद रूप से जिंदगी जीने की चाह ने महिलाओं को इतना स्वतंत्र कर दिया है कि जन्म-जन्म का साथ निभाने का वचन चंद सेकेंड में चकनाचूर हो जाता है। पहले भी ऎसे संबंध बनते थे, पर खुले रूप से नहीं। पर सोच को बदल दिया है।
आज रिश्तों की परिभाषा बदल गई है। आज की नारी यौन सुख की चाहत में इतनी फंस चुकी है कि गलत सही की बात पहले दिमाग में नहीं आती और अगर आती भी है तो उसे बखूबी तरीके से संभाल भी लेती है। अब रिश्ते सिर्फ नाममात्र के रह गए हैं। रिश्तों में रह गया है सिर्फ ग्लैमर लाइफ व अपनी जरूरतें, जिसके चलते पर पुरूष की बनने में देर नहीं लगती। आज स्त्री-पुरूष की एक-दूसरे से इतनी अपेक्षाओं को क हीं पूरी न होने पर वह इन अपेक्षाओं को कहीं और जाहिर करती हैं।
ऎसा नहीं समझना चाहिए कि सिर्फ खराब विवाह में ही दूसरे मर्द की जरूरत होती है, बल्कि यह एक आकर्षण है, जिससे कोई भी जीवनभर नही बच सकता, क्योंकि आज चाहे çस्त्रयां अपने पति के प्रति दैहिक स्तर पर जितनी भी वफादार क्यों ना हे, पर सेक्स के दौरान अन्य पुरूष की फैंटेसी रहती है। आज की नारी आधुनिकता की चादर में लिफ्टी हुई इतनी आगे निकल आई है कि वह हर चीज में खुद की खुशी ढूंढती है। अपने अंतर्मन और जज्बातीं जरूरतों को टटोलने में जुटी स्त्री की जब ये चीजें पूरी नहीं होती तो वह दूसरे का दामन थामने और पहल करने में भी पीछे नहीं रहती। संक्षेप में यही कह सकते हैं कि आज की बदलती हुई नारी अपने लिए वो सारी चीजें चाहती है जिन पर उसका हक है। मतलब आज यौन संबंधों का इस्तेमाल चाय की चुस्की की तरह सहज हो गया है।
नहीं है कोई शर्म
आधुनिकता से पूर्णत:व्याप्त आज स्त्री के मन में प्यार और सेक्स को लेकर पहले की अपेक्षा वो संकोच व झिझक नहीं रही है, जो कुछ सालों पहले थी। वह अपनी संतुष्टि और अभिव्यक्ति को अपना अधिकार मानती है,जिसका परिणाम यह है कि आज वह खुले दिमाग के साथ सेक्स के बारे में बातें करती है। आज çस्त्रयों के विचार और ख्यालात बहुत बदल गए हैं। वह अपनी इच्छाओं को सामाजिक दबाव के कारण दमन नहीं करती, बल्कि बिना संकोच के सेक्स की पहल करती है, ताकि उनकी जरूरतों की पूर्ति हो सके । दांपत्य जीवन में सेक्स की भूमिका बहुत अहम होती है। इसलिए अगर इसमे जरा सी भी उदासीनता आती है तो दांपत्य की गाडी लडखडाने लगती है। इसमे ताजगी बनाए रखने के लिए आज हर स्त्री आजादी चाहती है ताकि वह शर्म झिझक को किनारे रख के सेक्स में क्या चाहती है साथी को बता सके।
बीते दौर की और आज की महिलाओं में फर्क
यह बात सही है कि समय के साथ हर चीज बदल जाती है और महिलाओं की बदलती सोच का यह परिणाम है कि एक समय था जब स्त्री को कोई अधिकार नहीं था, जीवनसाथी चुनने व सेक्स मे संतुष्ट होने का। पर आज स्थिति इसके बिल्कुल विपरीत क्योंकि आज स्त्री ने मुखर होकर अपनी पसंद जाहिर करनी शुरू कर दी है कि उनके लिए भी सेक्स उतना ही जरूरी है जितना कि पुरूषों के लिए।
आज की लडकियां ज्यादा सक्रिय हैं। आज की 26 फीसदी लडकियों के साथ भावनात्मक झझंट नही है। अब 23 फीसदी लडकियां सेक्स में पहल करने लगी हैं। आज की आधुनिक नारी के लिए अब सेक्स ना तो गोपनीयता है ओर ना ही संतानोत्पति का माध्यम। आधुनिक विचारों ने स्त्री की ख्वाहिशों को भी एक नई उडान दी है और बात अब चाहे विवाहेतर संबंध की हो या फिर दांपत्य जीवन में सेक्सुअल संतुष्टि की, वह अब लडकियां पहल करने में पीछे नही रह गई हैं।
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