सेक्स फीवर..
जीवन साथी के साथ सेक्स का भरपूर आनन्द लेना कोई गलत काम नहीं है, मगर
बर्बरतापूर्ण संबंध बनाना साथी के सेक्स एडिक्ट होने को दर्शाता है। यौन
विकृ तियों और सेक्स एडिक्ट व्यक्तियों की संख्या दिनोंदिन बढती जा रही है।
सेक्स के प्रति आकर्षित होना एक सामान्य बात है लेकिन जब यह आकर्षण पागलपन
की हद तक बढ जाए तो उसे सेक्स फीवर का नाम दिया जाता है और इस कामवासना से
ग्रस्त व्यक्ति को सैक्स एडिक्ट के नाम से पुकारा जाता है। सैक्स एडिक्ट
महिला या पुरूष किसी भी तबके का, शिक्षित, अशिक्षित कोई भी हो सकता है।
सैक्स एडिक्ट आमतौर पर सामान्य जीवन व्यतीत करते हैं।
किसी को देख कर सहज ही यह अंदाजा नहीं लगाया जा सकता है कि वह व्यक्ति सैक्स एडिक्ट है या नहीं, मगर समय विशष पर लाल आंखें, अस्वाभाविक तरीकों से ताकना, जबरन विपरीत लिंगी के संपर्क में रहने की कोशिश करना, अपने अंग को जबरन किसी महिला, युवती या बच्ची छुआना, कहीं भी किसी भी स्थान पर मौका मिलते ही उम्र का लिहाज न करते हुए स्त्री को अश्लील इशारे करना, किसी भी विपरीत लिंगी के अंग को जबरन छेडना, छूना, मौका मिलते ही अपने अंग की नुमाइश करना, शराब पीने-पिलाने की कुचेष्टा करना, अश्लील डायलौगबाजी करके किसी भी साधारण बात के अर्थ को अनर्थ में बदलना आदि कुछ ऎसी अस्वाभाविक हरकतें हैं, जिन से पता चल सकता है कि अमुक महिला या पुुरू सैक्स एडिक्ट है।
ज्वलंत कामवासना-
ये विपरीत लिंगी की उम्र, इच्छा, समय तथा परिस्थिति का भी ध्यान नहीं रखते, इन्हें तो केवल अपनी ही कामवासना को ही शान्त करने का ध्यान रहता है। कभी-कभी तो ऎसे व्यक्ति का शिकार पागल, कम उम्र की बçच्चायां, रिश्तेदार महिलाएं, यहां तक कि बहनें और भाभियां भी बन जातीं हैं कई लोगों को चोरी छिपे सभोगरत जोडों को देखने में मजा आता है। ये ब्लू फिल्में, अश्लील तस्वीरें इत्यादि देखने के शौकीन होते हैं और अपने इसी शौक को पूरा करने के लिए पानी की तरह धन लुटाते हैं । सैक्स एडिक्ट की शिकार स्त्री को भी कभी-कभी इस रतिसुख में मजा आने लगता है। तब और भी जटिल परिस्थितियां निर्मित हो जाती हैं, क्योंकि इस तरह से एक नए सैक्स एडिक्ट का जन्म होता है।
कुछ çस्त्रयां पैसों के लालच में, तो कु छ बदनामी के डर से कई वर्षो तक ऎसे पुरूषों का सहयोग करती रहती हैं। कम उम्र की लडकियां तो कभी-कभी स्वयं ही कामी पुरूषों के जाल में फंस जाती हैं और अपनी कामवासना की सतुष्टि करवाती हैं। कई बार घर की अन्य महिलाएं भी घर की बात बाहर न चली जाए, इस डर के कारण अंजान बनी रहती हैं। इतना ही नही कई बार तो सैक्स एडिक्ट परिवार के सदस्य की मदद करती भी देखी गई हैं। खासकर उन पुरूषों की पत्नियां, जो पति से भय खाती हैं या जो स्वयं पथभ्रष्ट होती हैं। वे स्वयं तो कुमार्ग पर चल कर भटकती ही है, साथ ही समाज व परिवार में भेद न खुल जाए, इस भय से पति को घूस में अन्य çस्त्रयों से यौनाचार की स्वतन्त्रता भी दे देती हैं कभी-कभी तो ऎसे दंपत्ति ग्रुप सैक्स से भी परहेज नहीं करते हैं। कई बार देखा गया है कि इन मनोरोगियों ने पिता-पुत्री, गुरूशिष्या जैसे रिश्तों को भी कलंकित कर दिया है। हमारे समाज में अभी पुरूषों की अपेक्षा स्त्री सैक्स एडिक्टों की संख्या बेहद कम है, मगर वर्तमान परिस्थितियों को देख कर तो यही लगता है कि वह दिन दूर नहीं जब सैक्स फीवर एक संक्रामक रोग की तरह सभी को अपनी चपेट में ले लेगा ।
इस की खास वजह है अधिक उम्र में शादी, युवतियों एवं महिलाओं का दूसरे शहरों में जाकर नौकरी करना और शीघ्र तरक्की के लालच में व्याभिचारी व्यक्तियों का सहयोग करना, प्रतिशोध की भावना से पुरूषों से होड के लिए स्वयं सैक्स करना और खुशी महसूस करना, व्याभिचार की शिकार हो जाने पर विरोध न करना, अपनी झूठी तारीफ पाने के लिए स्वयं ही पुरूषों किसी तरह आकर्षित करना, रूपए- पैसो की चाह में स्वयं को बेच देना आदि।
सैक्स एडिक्ट गर्भनिरोधकों के स्वच्छंद प्रचार-प्रसार व जानकारी का फायदा उठा कर उन के इस्तेमाल से बिना किसी भय के यौनाचार कर लेते हैं। अधिक उम्र की बहुत सी विधवाएं किसी दूसरे मर्द से शादी तो नहीं करतीं, ऎसे में वे पति के मित्रों, देवर, जेठ, ससुर आदि से नाजायज संबंध बना लेती हैं।
सैक्स की चाह-
कच्ची उम्र में किसी विशष परिवेश में उत्तेजित होकर और महज उत्सुकतावश की गई शुरूआत भी आगे चल कर इस हसीन अनुभव को पेशे में बदल देती है। जिन लडकियो को इन क्रियाओ में मजा आने लगता है, वे स्वयं ही इस गलती को आदत में बदल देती हैं चाहे जो भी हो, कामपिपासा की अधिकता, हर समय सैक्स की चाह सैक्स एडिक्ट की दशा ही दर्शाती है, जिसे हम मनोरोग मान बैठते हैं। अधिकांश मामलों में बचपन में सैक्स के बारे में गलत जानकारी मनमस्तिष्क पर गहरा प्रभाव डाल जाती है। दूçष्ात माहौल में रहना, बडे शहरों में एक ही कमरे मे अनेक स्त्री-पुरूषों का एकसाथ सोना, सैक्स क्रिया में रत किसी जोडे को देख लेने के बाद स्वयं भी सैैक्सरत होने की इच्छा पालना आदि सैक्स कुंठाओं को बढा देता है।
सैक्सोलॉजिस्ट की सलाह-
1-यदि आपके आसपास कोई व्यक्ति यौन विकृतियों का शिकार है, तो उसे फौरन किसी सैक्सोलॉजिस्ट के पास ले जा कर सलाह मशविरा करना चाहिए अन्यथा ऎसे व्यक्ति आगे चल कर डिपे्रशन के शिकार हो जाते हैं
2- कभी-कभी इन के अंदर इतनी विक्षिप्तता घर कर जाती है कि ये स्वयं के लिए ही खतरनाक साबित हो सकते है। ऎसे लोगों द्वारा किसी का खून भी हो सकता है।
3- सैक्स एडिक्ट व्यक्ति सारा दिन अपने शिकार की खोज में या फिर कैसे कामवासना शांत करे, इसी उधेडबुन में लगा रहता है, लेकिन काउसलिंग द्वारा ऎसे व्यक्ति को ठीक किया जा सकता है। उस की सैक्स इच्छा को बहुत हद तक शांत कर उसे सामान्य बनाया जा सकता है।
4-ऎसे लोगौं का तिरस्कार न करें इन्हें भी सामान्य मनोरोगी मानते हुए इन के साथ अच्छा व्यवहार करने की जरूरत होती है । सामान्य अवस्था में इन के साथ वार्तालाप करके, सैक्स पर चर्चा करके, असामान्य सैक्स व्यवहार से होने वाले दुष्परिणामों की जानकारी दे कर भी समय-समय पर इन्हें सचेत करके कुमार्ग पर चलने से बचाया जा सकता है।
5- सैक्स एडिक्ट के बारे में मालूम हो जाने के बाद अधिक समय तक उसे अकेले न रहने दिया जाए। ज्ञानवर्धक साहित्य पढने की आदत डाली जाए । गलत संगति से बचाने की हर संभव कोशिश की जाए।
6-उसमें कोई ऎसा शौक जगाया जाए जो आदत में शुमार हो सके और फुरसत के समय वह उस मे अपना मन लगा कर अपनी कुत्सित भावनाओं को स्वयं ही भूल सके व सही-गलत में फर्क कर सकें
किसी को देख कर सहज ही यह अंदाजा नहीं लगाया जा सकता है कि वह व्यक्ति सैक्स एडिक्ट है या नहीं, मगर समय विशष पर लाल आंखें, अस्वाभाविक तरीकों से ताकना, जबरन विपरीत लिंगी के संपर्क में रहने की कोशिश करना, अपने अंग को जबरन किसी महिला, युवती या बच्ची छुआना, कहीं भी किसी भी स्थान पर मौका मिलते ही उम्र का लिहाज न करते हुए स्त्री को अश्लील इशारे करना, किसी भी विपरीत लिंगी के अंग को जबरन छेडना, छूना, मौका मिलते ही अपने अंग की नुमाइश करना, शराब पीने-पिलाने की कुचेष्टा करना, अश्लील डायलौगबाजी करके किसी भी साधारण बात के अर्थ को अनर्थ में बदलना आदि कुछ ऎसी अस्वाभाविक हरकतें हैं, जिन से पता चल सकता है कि अमुक महिला या पुुरू सैक्स एडिक्ट है।
ज्वलंत कामवासना-
ये विपरीत लिंगी की उम्र, इच्छा, समय तथा परिस्थिति का भी ध्यान नहीं रखते, इन्हें तो केवल अपनी ही कामवासना को ही शान्त करने का ध्यान रहता है। कभी-कभी तो ऎसे व्यक्ति का शिकार पागल, कम उम्र की बçच्चायां, रिश्तेदार महिलाएं, यहां तक कि बहनें और भाभियां भी बन जातीं हैं कई लोगों को चोरी छिपे सभोगरत जोडों को देखने में मजा आता है। ये ब्लू फिल्में, अश्लील तस्वीरें इत्यादि देखने के शौकीन होते हैं और अपने इसी शौक को पूरा करने के लिए पानी की तरह धन लुटाते हैं । सैक्स एडिक्ट की शिकार स्त्री को भी कभी-कभी इस रतिसुख में मजा आने लगता है। तब और भी जटिल परिस्थितियां निर्मित हो जाती हैं, क्योंकि इस तरह से एक नए सैक्स एडिक्ट का जन्म होता है।
कुछ çस्त्रयां पैसों के लालच में, तो कु छ बदनामी के डर से कई वर्षो तक ऎसे पुरूषों का सहयोग करती रहती हैं। कम उम्र की लडकियां तो कभी-कभी स्वयं ही कामी पुरूषों के जाल में फंस जाती हैं और अपनी कामवासना की सतुष्टि करवाती हैं। कई बार घर की अन्य महिलाएं भी घर की बात बाहर न चली जाए, इस डर के कारण अंजान बनी रहती हैं। इतना ही नही कई बार तो सैक्स एडिक्ट परिवार के सदस्य की मदद करती भी देखी गई हैं। खासकर उन पुरूषों की पत्नियां, जो पति से भय खाती हैं या जो स्वयं पथभ्रष्ट होती हैं। वे स्वयं तो कुमार्ग पर चल कर भटकती ही है, साथ ही समाज व परिवार में भेद न खुल जाए, इस भय से पति को घूस में अन्य çस्त्रयों से यौनाचार की स्वतन्त्रता भी दे देती हैं कभी-कभी तो ऎसे दंपत्ति ग्रुप सैक्स से भी परहेज नहीं करते हैं। कई बार देखा गया है कि इन मनोरोगियों ने पिता-पुत्री, गुरूशिष्या जैसे रिश्तों को भी कलंकित कर दिया है। हमारे समाज में अभी पुरूषों की अपेक्षा स्त्री सैक्स एडिक्टों की संख्या बेहद कम है, मगर वर्तमान परिस्थितियों को देख कर तो यही लगता है कि वह दिन दूर नहीं जब सैक्स फीवर एक संक्रामक रोग की तरह सभी को अपनी चपेट में ले लेगा ।
इस की खास वजह है अधिक उम्र में शादी, युवतियों एवं महिलाओं का दूसरे शहरों में जाकर नौकरी करना और शीघ्र तरक्की के लालच में व्याभिचारी व्यक्तियों का सहयोग करना, प्रतिशोध की भावना से पुरूषों से होड के लिए स्वयं सैक्स करना और खुशी महसूस करना, व्याभिचार की शिकार हो जाने पर विरोध न करना, अपनी झूठी तारीफ पाने के लिए स्वयं ही पुरूषों किसी तरह आकर्षित करना, रूपए- पैसो की चाह में स्वयं को बेच देना आदि।
सैक्स एडिक्ट गर्भनिरोधकों के स्वच्छंद प्रचार-प्रसार व जानकारी का फायदा उठा कर उन के इस्तेमाल से बिना किसी भय के यौनाचार कर लेते हैं। अधिक उम्र की बहुत सी विधवाएं किसी दूसरे मर्द से शादी तो नहीं करतीं, ऎसे में वे पति के मित्रों, देवर, जेठ, ससुर आदि से नाजायज संबंध बना लेती हैं।
सैक्स की चाह-
कच्ची उम्र में किसी विशष परिवेश में उत्तेजित होकर और महज उत्सुकतावश की गई शुरूआत भी आगे चल कर इस हसीन अनुभव को पेशे में बदल देती है। जिन लडकियो को इन क्रियाओ में मजा आने लगता है, वे स्वयं ही इस गलती को आदत में बदल देती हैं चाहे जो भी हो, कामपिपासा की अधिकता, हर समय सैक्स की चाह सैक्स एडिक्ट की दशा ही दर्शाती है, जिसे हम मनोरोग मान बैठते हैं। अधिकांश मामलों में बचपन में सैक्स के बारे में गलत जानकारी मनमस्तिष्क पर गहरा प्रभाव डाल जाती है। दूçष्ात माहौल में रहना, बडे शहरों में एक ही कमरे मे अनेक स्त्री-पुरूषों का एकसाथ सोना, सैक्स क्रिया में रत किसी जोडे को देख लेने के बाद स्वयं भी सैैक्सरत होने की इच्छा पालना आदि सैक्स कुंठाओं को बढा देता है।
सैक्सोलॉजिस्ट की सलाह-
1-यदि आपके आसपास कोई व्यक्ति यौन विकृतियों का शिकार है, तो उसे फौरन किसी सैक्सोलॉजिस्ट के पास ले जा कर सलाह मशविरा करना चाहिए अन्यथा ऎसे व्यक्ति आगे चल कर डिपे्रशन के शिकार हो जाते हैं
2- कभी-कभी इन के अंदर इतनी विक्षिप्तता घर कर जाती है कि ये स्वयं के लिए ही खतरनाक साबित हो सकते है। ऎसे लोगों द्वारा किसी का खून भी हो सकता है।
3- सैक्स एडिक्ट व्यक्ति सारा दिन अपने शिकार की खोज में या फिर कैसे कामवासना शांत करे, इसी उधेडबुन में लगा रहता है, लेकिन काउसलिंग द्वारा ऎसे व्यक्ति को ठीक किया जा सकता है। उस की सैक्स इच्छा को बहुत हद तक शांत कर उसे सामान्य बनाया जा सकता है।
4-ऎसे लोगौं का तिरस्कार न करें इन्हें भी सामान्य मनोरोगी मानते हुए इन के साथ अच्छा व्यवहार करने की जरूरत होती है । सामान्य अवस्था में इन के साथ वार्तालाप करके, सैक्स पर चर्चा करके, असामान्य सैक्स व्यवहार से होने वाले दुष्परिणामों की जानकारी दे कर भी समय-समय पर इन्हें सचेत करके कुमार्ग पर चलने से बचाया जा सकता है।
5- सैक्स एडिक्ट के बारे में मालूम हो जाने के बाद अधिक समय तक उसे अकेले न रहने दिया जाए। ज्ञानवर्धक साहित्य पढने की आदत डाली जाए । गलत संगति से बचाने की हर संभव कोशिश की जाए।
6-उसमें कोई ऎसा शौक जगाया जाए जो आदत में शुमार हो सके और फुरसत के समय वह उस मे अपना मन लगा कर अपनी कुत्सित भावनाओं को स्वयं ही भूल सके व सही-गलत में फर्क कर सकें
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