दोस्ती का धागा बहुत ही नाजुक होता है। खासकर तब, जब दोस्ती एक लड़के और
लड़की की हो। लेकिन, अक्सर यह सवाल उठता है कि क्या एक लड़का और लड़की केवल
दोस्त हो सकते हैं? अक्सर कहा तो यही जाता है कि लड़के और लड़की में
दोस्ती नहीं हो सकती। हालांकि इस राय से असहमत होने वालों की तादाद लगातार
बढ़ रही है, लेकिन फिर भी सवाल पूरी तरह से खत्म हो गया ऐसा नहीं है।
लड़का और लड़की सिर्फ दोस्त हो सकते हैं-
आजकल लोग हर रिश्ते को बड़ी आसानी से अपनी सोच और जरूरत के अनुसार बदल लेते हैं। हम बात कर रहे हैं दोस्ती की जो एक बेहद खूबसूरत रिश्ता है, जिसकी गरमाहट हर किसी को भाती है। और जो रिश्ता हमें किसी वंश या परंपरा के तहत नहीं मिलता, बल्कि हम खुद बनाते हैं। दोस्ती का रिश्ता हर तरह के भेदभाव से परे होता है। सबसे साफ, सबसे पाक, हर बनावट से दूर, जाति-धर्म से जिसका कोई सरोकार नहीं होता, अमीरी-गरीबी जिसे कभी छू नहीं पाई। फिर इस हमेशा रिश्ते को लैंगिक भेदभाव ने क्यों जोड़ा जाता है? दोस्त सिर्फ दोस्त होता है। उसके समक्ष यह सवाल कहीं नहीं ठहरता कि दोस्त लड़का है या लड़की।
सोच का फर्क-
लोगों की सोच में समय के साथ परिवर्तन हुआ है। बात चाहे दोस्ती की हो या रिश्तों की, लोग अब खुलकर सोचते है। मगर आज भी ज्यादातर लोग, बल्कि पढ़े-लिखे युवा भी कई बार दोस्ती में इस फर्क को जाहिर करते हैं। एक लड़का और लड़की सिर्फ दोस्त नहीं हो सकते, यह बात अब पुरानी हो चुकी है। फिर भी अगर दोस्ती लड़का-लड़की के बीच है तो उस पर नजर सदा पैनी ही रखी जाती है। अगर एक लड़की किसी लड़के दोस्त के साथ दोस्ती करे तो न सिर्फ उस पर शक कि सुई घुमा दी जाती है, बल्कि उसे दोषी ही मान लिया जाता है।
दोस्ती में साकारात्मक सोच रखें-
दोस्ती का रिश्ता भी उतना ही सच्चा और पवित्र होता है जितना और कोई रिश्ता। लेकिन फिर भी इसे सदा शक के घेरे में रखा जाता है। अगर दोस्त पर प्यार आए तो भी जाहिर न करो, उसे गले लगाने का दिल करे तो भी मत लगाओ, क्योंकि वह विपरीत लिंगी है। अगर किसी ने ऐसा किया तो गजब हो जाएगा। सवाल है कि भला दोस्ती के रिश्ते में ये कैसे बंधन हैं और यह कैसे गलत है। क्या सिर्फ इसलिए कि यह लड़की और लड़के के बीच है?
हर रिश्ते की अपनी जगह होती है, अपना वजूद होता है। जो दोस्ती को समझते हैं, वे संकीर्णताओं से परे होते हैं और उनकी भावनाएं पाक होती हैं। खासतौर पर इस तरह की भावनाएं अपने सबसे अच्छे दोस्त के लिए जाहिर की जाती हैं।
लड़का और लड़की सिर्फ दोस्त हो सकते हैं-
आजकल लोग हर रिश्ते को बड़ी आसानी से अपनी सोच और जरूरत के अनुसार बदल लेते हैं। हम बात कर रहे हैं दोस्ती की जो एक बेहद खूबसूरत रिश्ता है, जिसकी गरमाहट हर किसी को भाती है। और जो रिश्ता हमें किसी वंश या परंपरा के तहत नहीं मिलता, बल्कि हम खुद बनाते हैं। दोस्ती का रिश्ता हर तरह के भेदभाव से परे होता है। सबसे साफ, सबसे पाक, हर बनावट से दूर, जाति-धर्म से जिसका कोई सरोकार नहीं होता, अमीरी-गरीबी जिसे कभी छू नहीं पाई। फिर इस हमेशा रिश्ते को लैंगिक भेदभाव ने क्यों जोड़ा जाता है? दोस्त सिर्फ दोस्त होता है। उसके समक्ष यह सवाल कहीं नहीं ठहरता कि दोस्त लड़का है या लड़की।
सोच का फर्क-
लोगों की सोच में समय के साथ परिवर्तन हुआ है। बात चाहे दोस्ती की हो या रिश्तों की, लोग अब खुलकर सोचते है। मगर आज भी ज्यादातर लोग, बल्कि पढ़े-लिखे युवा भी कई बार दोस्ती में इस फर्क को जाहिर करते हैं। एक लड़का और लड़की सिर्फ दोस्त नहीं हो सकते, यह बात अब पुरानी हो चुकी है। फिर भी अगर दोस्ती लड़का-लड़की के बीच है तो उस पर नजर सदा पैनी ही रखी जाती है। अगर एक लड़की किसी लड़के दोस्त के साथ दोस्ती करे तो न सिर्फ उस पर शक कि सुई घुमा दी जाती है, बल्कि उसे दोषी ही मान लिया जाता है।
दोस्ती में साकारात्मक सोच रखें-
दोस्ती का रिश्ता भी उतना ही सच्चा और पवित्र होता है जितना और कोई रिश्ता। लेकिन फिर भी इसे सदा शक के घेरे में रखा जाता है। अगर दोस्त पर प्यार आए तो भी जाहिर न करो, उसे गले लगाने का दिल करे तो भी मत लगाओ, क्योंकि वह विपरीत लिंगी है। अगर किसी ने ऐसा किया तो गजब हो जाएगा। सवाल है कि भला दोस्ती के रिश्ते में ये कैसे बंधन हैं और यह कैसे गलत है। क्या सिर्फ इसलिए कि यह लड़की और लड़के के बीच है?
हर रिश्ते की अपनी जगह होती है, अपना वजूद होता है। जो दोस्ती को समझते हैं, वे संकीर्णताओं से परे होते हैं और उनकी भावनाएं पाक होती हैं। खासतौर पर इस तरह की भावनाएं अपने सबसे अच्छे दोस्त के लिए जाहिर की जाती हैं।
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