देर का विवाह कितना सही
बढ़ती उम्र में विवाह आकर्षण नहीं बल्कि एकदूसरे की जरूरत बन जाता है।
पतिपत्नी के इस रिश्ते में प्यार, मनुहार, शारीरिक सौंदर्य का अभाव होता है
और आपसी रिश्ते मात्र औपचारिकता बन जाते हैं। हमारे समाज और कानून ने
भले ही शादी के लिए न्यूनतम आयु सीमा निर्धारित की है लेकिन निम्नतम आयु के
पश्चात उचित उम्र का निर्धारण करने जैसा महत्तवपूर्ण निर्णय हमारी स्वय
की जिम्मेदारी है। जैसे कम उम्र में विवाह के अनेक दुष्परिणाम सामने आते
हैं वैसे ही देर के विवाह से भी अनेक नुकसान हो सकते हैं। परिणय बंधन में
बंधने जैसा महत्तवपूर्ण कार्य सही समय पर किया जाए तो निश्चित ही जीवन के
हर पहलू को शांतिपूर्ण व सुखी रूप से गुजारा जा सकता है।
शारीरिक आवश्यकता:
40 वर्ष
के बाद महिलाओं में रजोवृति का समय करीब होता है। जीवन को व्यर्थ जाता देख
कर, अपने शरीर पर काबू न रहने पर महिलाएं चि़डचि़डी हो जाती हैं। एक ठोस
मजबूत सहारे की चाह के साथ शारीरिक चाहत भी उन्हें विवाह के लिए प्रेरित
करती है। स्त्री जिस शारीरिक संतुष्टि की चाहत को युवावस्था में दबा लेती
है वह उम्र बढने के साथ तीव्रतर हो जाती है और स्त्री ग्रंथि के उभरने से
सेक्स की इच्छा जाग्रत होती है।
ऎसा ही कुछ पुरूषों के साथ भी होता है। अधे़डावस्था में पुरूष पुन: किशोर
हो उठते हैं और वे विवाह जैसी संस्था का सहारा ढूंढ़ते हैं। लेकिन देर से
किया गया विवाह न तो उन्हे शारीरिक संतुष्टि दे पाता है, साथ ही समय पर
विवाह न होने से यौन संबंधी रोगों के बढ़ने का खतरा भी बढ़ जाता है।
बढ़ती परेशानियां:
अधिक
उम्र में विवाह होने पर पतिपत्नी दोनों ही परिपक्व हो चुके होते है। दोनों
को एकदूसरे के साथ विचारों में तालमेल बिठाने में कठिनाई होती है। 30 पार
की महिलाओं में प्रजनन क्षमता घटने लगती है, अत: देर से विवाह होने पर
स्त्री के लिए मां बनना कठिन व कष्टदायी होता है। साथ ही एक पूर्ण स्वस्थ
शिशु की जन्म की संभावनाओं में कमी आने लगती है। ढ़लती उम्र में जिंदगी
जिम्मेदारियों के बोझ तले दबने लगती है और विवाह आनंद का विषय होने के बजाय
साथी को ढ़ोना हो जाता है।
यदि अधे़डावस्था में विवाहित पतिपत्नी के पूर्व साथी से बच्चों हैं तो उन
दो परिवारों के बच्चों में आपसी मनमुटाव हो जाता है। अधिक उम्र में विवाह
होने पर विवाहित दंपत्तियों में असुरक्षा की भावना आ जाती है। दोनों को
एकदूसरे पर भरोसा नहीं होता। असुरक्षा की यह भावना पतिपत्नी में विश्वास के
बजाय शक और दूरी पैदा कर देती है।
देर से विवाह करने वाले स्त्रीपुरूषों के प्रति समाज का रवैया भी कुछ
संदेहास्पद और मजाक का विषय बन जाता है। समाज में विवाह को युवावस्था की
जरूरत माना जाता है न की अधे़डावस्था को।
देर का विवाह मतलब समझौता:
जो स्त्रीपुरूष अपनी युवावस्था रिश्तों को नापसंद करने में गुजार देंते है
उन्हे बाद में अपनी सभी चाहतों से समझौता करना प़डता है। ढ़लती उम्र में
जैसा साथी मिलें उसी में संतोष करना प़डता है। अपनी चाहत या पसंद उम्र के
इस प़डाव पर आ कर कोई मायने नहीं रखती। अधे़डावस्था में विवाह एक जरूरत बन
जाती है, जिस के लिए पतिपत्नी को हर कदम पर समझौता करना प़डता है। इस विवाह
का उद्देश्य मात्र एक सहारा होता है, जो वास्तव में इस उम्र में शारीरिक
अक्षमताओं की वजह से सहारा बनने के बजाय बोझ ही बनता है।
ढ़लती उम्र का अहसास:
युवावस्था में पतिपत्नी की अठखेलियां, उन का रूठना, मनाना और प्रेमालाप इन
प्रौढ़ावस्था के विवाहितों में दूर-दूर तक नजर नहीं आता। युवक की खत्म होती
शारीरिक क्षमताएं, पस्त होता रोमाचं और उत्साह, साथ ही नारी के नारीसुलभ
आकर्षण का अभाव उन में एक दूसरे से प्यार, लगाव व रूचि को खत्म कर देता है।
अधे़डावस्था में युवाओं जैसा उत्साह, रोमाचं व शारीरिक क्षमता नहीं रहती
तब उन का एकमात्र ध्येय अपने अकेलेपन को दूर करना होता है, जिससे जीवन में
नीरसता आ जाती है और दंपत्ति को अपनी ढ़लती उम्र का अहसास सताने लगता है।
अधे़डावस्था के विवाह में उत्साह व जोश की कमी के कारण जीवन में आनंद नहीं
रहता और वह रिश्ता एक जरूरत और औपचारिकता बन कर रह जाता है। अधे़डावस्था
में विवाह होने पर दंपत्ति के पास भविष्य के लिए योजनाएं बनाने का न तो समय
होता है और ना ही उनमें उनको पूरा करने का शारीरिक सामर्थय होता है।ढ़लती
उम्र का अहसास उनके जीवन मे गंभीरता व नीरसता भर देता है और परिवार में
हंसीमजाक, ल़डना-झग़डना व रूठना-मनाना जैसे उत्सवों का कोई नाम नहीं होता।
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