दर्द से कामुकता का अनोखा रिश्ता!
चुंबन इतनी ज़ोर से लेना कि दम घुट जाए, हाथों को बांधकर
शरीर को पूरे नियंत्रण में ले आना और फिर जो चाहे करना, मारना कभी चांटों
से, कभी चाबुक से, कभी चमड़े की बेल्ट से, यहां तक कि पॉलिथीन से मुंह को
ऐसे दबाना कि सांस रुक-सी जाए, लेकिन पम्मी को ये सब कामोत्तेजक लगता है.
पम्मी के मुताबिक संभोग के दौरान एक-दूसरे को नोचने या दांत से काटने जैसे
अनुभव से ये कहीं आगे है, क्योंकि ये दर्द के लेन-देन और ताकत की
अभिव्यक्ति का अनोखा खेल है जो कामुकता को एक नए मुकाम तक ले जाता है. इस
जीवनशैली में एक शख्स ‘डॉमिनेन्ट’ यानी हावी होता है और दूसरा ‘सबमिसिव’
यानी अधीन. पहले का हक है अपना ज़ोर आज़माना और दूसरे की ज़िम्मेदारी है उस
शक्ति प्रदर्शन को बर्दाश्त करना. एक निजी कंपनी में काम कर रहीं 28
वर्षीय पम्मी कहती हैं, “हम अधीन रहना पसंद करते हैं, इस तरह के बर्ताव से
हमें दर्द नहीं होता, बल्कि हम आनंद लेते हैं और हमारे पार्टनर को हर वक्त
ज़िम्मेदारी से सोचना होता है कि कहीं हद पार ना हो जाए और हमें चोट न
लगे.”
शक्ति इतनी की रोमांच हो, पर चोट न लगे :
‘बीडीएसएम’ के नाम से जानी जाने वाली ये जीवनशैली पम्मी की ही पसंद नहीं
है, 48 वर्षीय जया भी दो साल से अपने जीवन को ऐसे ही जी रही हैं. जया पिछले
28 वर्षों से महिलाओं के मुद्दों पर काम कर रही हैं और यौन हिंसा के खिलाफ
हैं, लेकिन अपने जीवन में ऐसे यौन संबंध को गलत नहीं मानती. जया कहती हैं,
“यह हिंसक नहीं है, बल्कि यह जीवनशैली बहुत अलग है, क्योंकि इसका नियम तय
है - ज़ोर-आज़माइश आप तभी कर सकते हैं जब दोनों की रज़ामंदी हो - यानी
शक्ति का इस्तेमाल उतना जो रोमांच दे, पर चोट न पहुंचाए.” पम्मी के मुताबिक
तो जिस्मानी रिश्ते का ये रोमांच उनकी रूहानी ज़रूरतें भी पूरी करता है.
दरअसल पम्मी समलैंगिक हैं और खुद को मर्दाना मानती हैं, लेकिन अपने रिश्ते
में वो ‘नाचीज़’ होना पसंद करती हैं, “दुनिया मुझे एक मर्द की तरह हमेशा
ताकतवर देखना चाहती है, लेकिन जब अपने रिश्ते में मैं खुलकर अपनी पार्टनर
को खुद पर हावी होने देती हूं तो ये मुझे अपनी कोमल स्त्रियोचित भावना को
ज़ाहिर करने की आज़ादी देता है.” पम्मी की जीवनसाथी सारा बताती हैं कि
शक्ति का प्रदर्शन सिर्फ संभोग के समय ही काम नहीं करता, अगर युगल चाहे तो
ये चौबीसों घंटे झलक सकता है. उदाहरण के तौर पर सारा कहती हैं, “पैर धोना,
पैरों पर गिरकर पूजा करना, कपड़े मेरी पसंद के ही पहनना, खाना खाने से पहले
या शौचालय तक
ज़ोर-ज़बरदस्ती या रज़ामंदी?:भारत के जाने-माने सेक्सोलॉजिस्ट डॉक्टर नारायण रेड्डी बताते हैं कि इस जीवनशैली से जुड़े लोग उनके पास भी आते रहे हैं, हालांकि ये पिछले 20 सालों में उनके पास आए कुल मरीज़ों का एक फीसदी ही होंगे. उन्होंने कहा कि उनके पास आए मरीज़ों में से ज़्यादातर की उम्र 30 से 50 वर्ष के बीच रही है और ये मध्यम या उच्च वर्ग के परिवारों से थे. डॉ. रेड्डी के मुताबिक उनके पास जो मरीज़ आए, वो तो अपने पार्टनर की शिकायत लेकर आए - सिगरेट से जलाना, दांत से काटना, सुंई चुभोना, चेन से बांधना, कुत्ते का पट्टा बांधकर घुमाना, नीचा दिखाना - यानि एक व्यक्ति इस तरह की जीवनशैली की चाहत रखता था, और दूसरे को ये नापसंद थी, और इसलिए वो उनके पास मदद मांगने आए. डॉ रेड्डी कहते हैं, “किसी रिश्ते में काम उत्तेजना अगर सिर्फ चोट या दर्द पहुंचाने से ही पैदा हो तो उसे ‘सेक्सुअली प्रोब्लमाटिक बिहेवियर’ कहेंगे, क्योंकि ये लंबे दौर में परेशानी पैदा कर सकता है,
शुरू में इसका नयापन
रोमांच पैदा कर सकता है लेकिन कुछ समय में ये शारीरिक दर्द पैदा कर सकता है
और मानसिक तौर पर भी चोटिल कर सकता है.” डॉ रेड्डी ये भी सवाल पूछते हैं
कि असल ज़िन्दगी में अपने जीवनसाथी की ऐसी चाहत हां या ना कहने की
स्वतंत्रता असल मायने में कितने लोगों को होती है? पम्मी, सारा, जया और
उनके दोस्तों के मुताबिक वो इन शंकाओं से भली-भांति वाकिफ़ हैं, इसीलिए
करीब एक साल पहले उन्होंने इस जीवनशैली के बारे में जानकारी बढ़ाने के लिए
एक संगठन बनाया – ‘द किंकी कलेक्टिव’.
जाने से पहले अनुमति लेना, औरों के सामने उसे नीचा दिखाना ये
भी इस जीवनशैली का हिस्सा है
‘द किंकी कलेक्टिव’:
बीडीएसएम जीवनशैली विश्व के कई देशों में अब कोई छिपी बात नहीं है, लेकिन
भारत में इसकी जानकारी इंटरनेट के माध्यम से ही फैली है. इस विचारधारा के
लोग और साथियों को ढूंढने में सोशल नेटवर्किंग वेबसाइटों का प्रयोग करते
हैं. इस जीवनशैली पर बहस और जानकारी के लिए न कोई आम चर्चा का मंच है, न ही
माहौल. जया के मुताबिक इसी कमी को दूर करने के लिए उन्होंने यह संगठन
बनाने फैसला किया. इसके ज़रिए वह मानसिक रोगों की पढ़ाई कर रहे छात्रों,
मानवाधिकार सम्मेलन, महिलाओं के मुद्दों पर काम कर रहे आंदोलनकारियों वगैरह
के बीच अपनी बात रख चुकी हैं.
सारा बताती हैं, “हमारा मकसद यह भी है कि इस
जीवनशैली को अपना रहे लोगों को बता सकें कि इसके अपने कायदे-कानून हैं,
मसलन, रज़ामंदी कितनी ज़रूरी है और ताकतवर को ज़िम्मेदार होना आवश्यक है.”
कामसूत्र समेत भारत के पौराणिक ग्रंथों में कामुकता का अध्ययन कर कई
किताबें लिख चुकी संध्या मूलचंदानी इस जीवनशैली से परिचित हैं. वे कहती
हैं, “हमारे ग्रंथों में तो ऐसी जीवनशैली का कोई विशिष्ट उल्लेख नहीं है,
लेकिन इनका लहज़ा आलोचनात्मक नहीं है, बल्कि इन ग्रंथों की विचारधारा बहुत
उदारवादी है यानी मानव-व्यवहार में हर तरह की आज़ादी देनेवाली.” हाल ही में
छपी बीडीएसएम जीवनशैली पर आधारित किताब, ‘फिफ्टी शेड्स ऑफ ग्रे’ का उल्लेख
देते हुए संध्या कहती हैं कि इस किताब को पढ़ने को लेकर उत्सुकता इस बात
का सूचक है कि इस बारे में जानने और परखने की चाहत है, जिसे रोकना नहीं
चाहिए. ‘द किंकी कलेक्टिव’ के सदस्यों का मानना है कि जैसे महिलाओं के समान
अधिकारों या समलैंगिकों की पहचान से जुड़े मुद्दे शुरुआत में असहज लगते
थे, उसी तरह इस जीवनशैली के बारे में भी लोगों के मन में संवेदनशीलता आने
में समय लगेगा. लेकिन क्या भारत के परिवेश में समाज इन सभी मुद्दों को एक
तराज़ू पर रख पाएगा? (कुछ लोगों के नाम बदले गए हैं.)
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