Monday 29 October 2012


उसे पॉर्न देखने का शौक है? खतरे की घंटी!

क्या आपका पार्टनर पॉर्न देखने का शौकीन है? यदि हां, तो यह स्लाइड शो आपके लिए ही बनाया गया है। इसे पढ़ डालिए। दरअसल, हम बताना चाह रहे हैं कि अपने पति या पत्नी या गर्लफ्रेंड या बॉयफ्रेंड के पॉर्न देखने के शौक को हल्के में मत लीजिए। यह खतरे की घंटी है। लेकिन, इसका मतलब यह नहीं है कि आप तुरंत ही आपाधापी में कोई कदम उठा लें। 
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केईएम हॉस्पिटल में सेक्शुअल मेडिसन डिपार्टमेंट के हेड और सेक्स थेरेपिस्ट, काउंसलर डॉक्टर राजन भोंसले ने इस बारे में कुछ खास चीजें बताईं। हम आपसे वही शेयर कर रहे हैंज्यादातर लोगों को लगता है कि पॉरनॉग्रफ़ी के साइड इफेक्ट्स नहीं हैं। लेकिन, रिसर्चेस से यह बात सामने आई हैं कि पॉरनॉग्रफ़ी लोगों की पर्सनैलिटी में ऐसे बदलाव कर देती है जो संबंधों के लिए घातक सिद्ध हो सकते हैं। आमतौर पर पॉरनॉग्रफ़ी गुप्त रूप से देखी जाती है, यह शादी में चोरी-चोरी, चुपके-चुपके के कॉन्सेप्ट को जन्म देती है। इससे शादी में छल-कपट, धोखा जैसी चीजें पनपती हैं। 

जितनी ज्यादा पॉरनॉग्रफी देखेंगे, उतना ज्यादा ही प्रॉस्टिट्यूशन, अनरियल अपेक्षाएं करने और धोखाधड़ी की इच्छाएं और कोशिशें ज्यादा बढ़ेंगी।कुछ लोगों का मानना है कि अगर आप पार्टनर से उत्तेजित नहीं होते तो किसी दूसरे के साथ सेक्स का ख्याल या पॉर्न देखने में कोई बुराई नहीं है। भले ही यह ओके-ओके लगता हो, लेकिन इसके अपने खतरे हैं। क्योंकि, तब आप सेक्स पार्टनर के साथ कर रहे होते हैं लेकिन उसके द्वारा उत्तेजित हो कर नहीं बल्कि किसी और के बारे में सोच कर। इसका मतलब, सेक्स है मगर प्यार नहीं...। और, किसी रिश्ते की गहराई को नापने का तरीका सेक्स नहीं है, प्यार है।

बिना एक्साइटमेंट के सेक्स करना और पहले पॉर्न देख कर एक्साइट होना... पार्टनर के सेक्शुअली अपरिपक्व होने की निशानी है। 
 पॉर्न एक प्रकार का सेक्स अडिक्शन ही है। हालांकि यह प्रामिस्क्यूअटी (यानी स्वछंद संभोग), कंपलसिव हस्त मैथुन से भिन्न है। स्पष्ट शब्दों में कहें तो फैंटसी की एक बुरी लत है यह। यह सेक्शुअली अडिक्टिव बिहेवियर का हिस्सा भी हो सकता है।अगर कोई पॉरनॉग्रफी के सामने घंटों गुजारता है और वह इस बात से भी अनजान हो जाता है कि इससे उसकी असल रिलेशनशिप पर क्या असर पड़ेगा।

 माना जाता है कि पॉरनॉग्रफी को ले कर लत के शिकार लोग (महिला व पुरुष, दोनों) ऐसे परिवारों से आते हैं जहां दिक्कतें रही होती हैं और नॉर्मल परवरिश नहीं हुई होती, यानी डाइफंक्शनल फैमिलीज़। यह पाया गया कि ऐसे लोगों का बचपन कहीं न कहीं भावनात्मक रूप से बुरा बीता।जब संबंधों में सेक्स केवल एक फिजिकल ऐक्टिविटी भर हो तो ऐसी चीजें जरूरी हो जाती हैं जिनसे सेक्स की इच्छा जागे। प्रेम का न होना किसी एक की गलती नहीं है। दोनों पार्टनर्स को अपने रिश्ते को खंगालने की जरूरत है, चाहे वे खुद आपस में बैठ कर ऐसा करें या फिर काउंसलर के पास जाएं। अक्सर पत्नियां पतियों को नीचा दिखाने लगती हैं और ब्लेम गेम शुरू हो जाता है। बेहतर है, उपाय खोज कर उस पर अमल लाया जाए।

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