यौन अंग अनुरूपण और संभोग
संभोग क्रिया करने के लिए स्त्री और पुरुष दोनों के ही यौन अंगों का
अनुकूलन होना बहुत जरूरी है। अगर दोनों के यौन अंग एक-दूसरे के अनुरूप हो
तो संभोग क्रिया के समय पुरुष का लिंग स्त्री की योनि में पूरी तरह से समा
जाता है। संभोग क्रिया को सफल बनाने के लिए यौन अंगों को अनुरूपण बहुत ही
ज्यादा खास होता है। इसलिए यौन अंगों की रचना के आधार पर संभोग क्रिया के 3
भेद बताए गए हैं-
1. उच्च स्तरीय संभोग
2. मध्यम स्तरीय संभोग
3. निम्न स्तरीय संभोग
उच्च स्तरीय संभोग-
इस तरह की संभोग क्रिया में पुरुष का लिंग स्त्री की योनि से काफी लंबा होता है।
मध्यम स्तरीय संभोग-
इस तरह की संभोग क्रिया में स्त्री और पुरुष के यौन अंगों में समानता होना जरूरी है।
निम्न स्तरीय संभोग-
इस तरह की संभोग क्रिया में पुरुष के लिंग का आकार छोटा होता है और स्त्री की योनि की गहराई ज्यादा होती है।
यौन अंगों की रचना के आधार पर संभोग के नजरिये से पुरुषों को इन प्रकारों का बताया गया है-
1. घोड़ा
2. बैल
3. खरगोश
घोडा़-
इस वर्ग का पुरुष रौबदार और आकर्षक होता है। इसका चेहरा अंडे का
आकार का, कान लंबे, सिर बड़ा और होंठ गुलाबी तथा पतले होते हैं। इनकी आवाज
काफी कड़क होती है। इनके हाथ-पैर लंबे तथा जांघें मजबूत होती हैं। ऐसे
पुरुषों को गुस्सा ज्यादा आता है और इनकी चाल भी तेज होती है। इन पुरुषों
के वीर्य से मधुरस की गंध आती है और यह संभोग क्रिया में निपुण होते हैं।
स्त्रियां ऐसे पुरुषों की ओर जल्दी ही आकर्षित हो जाती है।
इस वर्ग के पुरुष का लिंग घोड़े की तरह मजबूत और लंबा होता है। इस तरह के
पुरुषों के लिंग की लंबाई सामान्यताः 6 इंच और घेरा साढ़े 4 या 5 इंच होता
है। इस तरह के पुरुषों में संभोग क्रिया के समय स्तंभन शक्ति ज्यादा होती
है।
बैल-
इस वर्ग के पुरुष न तो ज्यादा लंबे होते है और न
ही ज्यादा छोटे होते हैं। इनकी बोली में मिठास होती है, यह कला में रुचि
रखते हैं, हमेशा सच बोलते हैं और इनका व्यक्तित्व आकर्षक होता है। इस वर्ग
के पुरुष संभोग कला में पूरी तरह से निपुण होते हैं इसलिए इनके साथ संभोग
करने वाली स्त्रियां हमेशा खुश रहती है। ये एक सफल प्रेमी और अच्छे पति भी
साबित होते हैं।
इस वर्ग का पुरुष बैल की तरह ताकतवर और
संभोग क्रिया में निपुण होता है। ऐसे पुरुषों में जब काम उत्तेजना जागृत
होती है तो इनका लिंग लगभग 4 से 5 इंच का हो जाता है। ऐसे पुरुष स्त्री को
संभोग क्रिया के समय जल्दी संतुष्ट कर लेते हैं।
खरगोश-
इस वर्ग का पुरुष खरगोश की तरह शांत स्वभाव का होता है। इनकी लंबाई लगभग 5
फुट के करीब होती है और यह शरीर से भी ताकतवर नहीं होते हैं। इनके हाथ-पैर
सामान्य से कुछ छोटे होते हैं और चेहरा गोल आकार में होता है। ऐसे पुरुष
गुणी, अनुरागी तथा ललित कला के प्रेमी होते हैं। इनका दिल साफ होता है
इसलिए यह जल्दी ही सब पर भरोसा कर लेते हैं। इनकी बोली मीठी होती है।
खरगोश वर्ग के पुरुषों में जब काम उत्तेजना जागृत होती है तब इनके
लिंग की लंबाई लगभग 3 से 4 इंच होती है। इनके अंदर काम उत्तेजना कम होती
है इसलिए यह संभोग क्रिया के लिए बेचैन नहीं होते हैं। यह थोड़ी देर की
संभोग क्रिया से ही संतुष्ट हो जाते हैं। ऐसे लोग शांत जगह पसंद करते हैं।
इनका स्वभाव विनम्र होता है इसलिए इनको ज्यादातर सभी लोग पसंद करते हैं।
योनि रचना के आधार पर स्त्रियों को भी 3 वर्गों में बांटा गया है-
1. हस्तिनी नायिका (हथिनी के समान)।
2. बड़वा नायिका (घोड़ी के समान)।
3. मृगी नायिका (हिरन के समान)।
हस्तिनी-
इस वर्ग की स्त्रियां हथिनी के समान शरीर की होती हैं। इनका
चेहरा, नितंब और स्तन भारी होते हैं। इस वर्ग की स्त्रियों के हाथ-पैर
मोटे, आंखें छोटी और नाक ज्यादा चौड़ी होती हैं। इनकी आवाज पुरुषों की ही
तरह रोबदार और भारी होती है और इन्हें छोटी-छोटी बातों पर जल्दी ही गुस्सा आ
जाता है।
हस्तिनी वर्ग की स्त्रियों के भगोष्ठ मोटे और रोएं
सख्त होते हैं। इनकी योनि लगभग 6 इंच गहरी होती है। ऐसी स्त्रियों में काम
उत्तेजना इतनी तेज होती है जोकि इनकी आंखों में ही झलकती रहती है। इनको
संभोग क्रिया के समय संतुष्ट करना बहुत मुश्किल होता है। इनको पुरुष का
मजबूत अलिंगन, दांतों से काटना तथा नाखून गड़ाना पसंद होता है। संभोग
क्रिया के समय यह तेज घर्षण को पसंद करती है। इनका स्वभाव खुले किस्म का
होता है और यह सबमें जल्दी घुलमिल जाती हैं।
बड़वा-
बड़वा
का अर्थ घोड़ी होता है। इस वर्ग की स्त्रियां ऊंचे कद की होती हैं, इनके
नैन-नक्श काफी सुंदर होते हैं, बाल लंबे होते हैं, नाक लंबी होती है, स्तन
पुष्ट होते हैं, कमर पतली होती है और होंठ गुलाबी होते हैं। ऐसी स्त्रियों
की बोली मीठी और चाल मादक होती है। इनका स्वभाव गुस्सैल होता है। यह संभोग
कला में निपुण होती हैं।
यह कामुक प्रवृति की होती हैं इसलिए
यह आलिंगन तथा चुंबन से जल्दी ही उत्तेजित हो जाती हैं। इन्हें संभोग
क्रिया के समय मजबूत आलिंगन के साथ ही शरीर में नाखून गड़ाना पसंद होता है।
इनकी योनि की गहराई 4 इंच गहरी होती है। यह संभोग क्रिया में खास रुचि
रखती है इसलिए यह इस क्रिया के समय पुरुष को पूरा सहयोग प्रदान करती है।
इनकी योनि से मधुरस की गंध आती है।
मृगी-
मृगी का अर्थ
हिरनी होता है। यह हिरनी के जैसी चंचल, सुंदर, आकर्षक और सम्मोहक होती हैं।
इनकी आंखें काली, बाल लंबे, गर्दन सुराहीदार, रंग गोरा और शरीर कोमल होता
है। इन स्त्रियों के गाल मोटे-मोटे, होंठ गुलाबी, स्तन पुष्ट, कमर पतली,
नितंब भारी और आवाज मीठी होती है। इस वर्ग की स्त्रियों में नाच-गाने और
ललित कला में रुचि रहती है। ऐसी स्त्रियां संभोग क्रिया में पुरुष को पूरी
तरह से सहयोग प्रदान करती हैं। इनमें हर तरह के गुण होते हैं इसलिए यह
संभोग प्रिय लोगों की पसंदीदा होती हैं। ऐसी स्त्रियों की योनि की गहराई
लगभग 3 इंच होती है, भगोष्ठ उभरे हुए होते हैं और इनकी योनि से कमल के जैसी
खुशबू आती है।
यौन अंगों की रचना और आकार-प्रकार के आधार पर संभोग क्रिया को 2 वर्गों में बांटा गया है-
• समरत (समान यौन अंगों का समागम)
• विषमरत (असमान यौन अंगों का समागम)
समरत-
जब पुरुष के लिंग की लंबाई और स्त्री की योनि की गहराई एक जैसी
होती है तो उसे समरत कहते हैं। लिंग और योनि के आकार-प्रकार एक जैसे होने
के कारण लिंग योनि में बिल्कुल समा जाता है।
समरत में पुरुष वर्ग का जोड़ा निम्न प्रकार की वर्ग की स्त्री के साथ बनाया गया है-
• घोड़े वर्ग का पुरुष मृगी (हिरन) वर्ग की स्त्री के साथ।
• बैल वर्ग का पुरुष हस्तिनी (हथिनी) वर्ग की स्त्री के साथ।
• खरगोश वर्ग का पुरुष बड़वा (घोड़ी) वर्ग की स्त्री के साथ।
इन्हें ही संभोग क्रिया के लिए सबसे अच्छे जोडे़ माना गया है।
यौन अंगों की एक जैसी रचना होने के कारण स्त्री और पुरुष दोनों को ही संभोग
क्रिया में पूरी संतुष्टि मिलती है।
विषमरत-
स्त्री और
पुरुष के यौन अंगों में समानता न होने पर संभोग करना विषमरत कहलाता है।
इसमें लिंग की लंबाई और योनि अलग-अलग आकार की होती है। अगर लिंग ज्यादा
लंबा होता है और योनि कम गहरी होती है तो संभोग करते समय घर्षण क्रिया के
समय स्त्री को दर्द होता है और लिंग के पूरी तरह से योनि में प्रवेश न कर
पाने के कारण पुरुष भी पूरी तरह से संतुष्ट नहीं हो पाता। इसी तरह से अगर
पुरुष का लिंग छोटा होता है लेकिन स्त्री की योनि ज्यादा गहरी होती है तो
दोनों ही संभोग क्रिया के दौरान मिलने वाले चरम सुख से वंचित रह जाते हैं।
लिंग अगर छोटा होता है तो वह योनि में ज्यादा अंदर तक चोट नहीं कर पाता और
स्त्री को पूरी तरह से संतुष्टि नहीं मिल पाती है।
इस प्रकार के विषमरत जोडों को वर्गीकरण इस प्रकार से हैं-
• खरगोश वर्ग के पुरुष का जोड़ा घोडी़ वर्ग की स्त्री के साथ।
• खरगोश वर्ग का पुरुष हस्तिनी वर्ग की स्त्री के साथ।
• बैल वर्ग का पुरुष हिरन वर्ग की स्त्री के साथ।
• बैल वर्ग का पुरुष हस्तिनी वर्ग की स्त्री के साथ।
• घोड़े वर्ग का पुरुष घोडी़ वर्ग की स्त्री के साथ।
इसे 2 भागों में बांटा गया है-
• उच्चरत।
• निम्नरत।
उच्चरत-
पुरुष के लिंग की लंबाई अगर स्त्री की योनि की गहराई से ज्यादा
होती है तो उसे उच्चरत कहा जाता है। बैल वर्ग का पुरुष अगर हिरन वर्ग की
स्त्री के साथ होता है तो उसे उच्चरत कहते हैं। ऐसे ही अगर घोड़े वर्ग का
पुरुष हिरन वर्ग की स्त्री के साथ संभोग क्रिया करता है तो वह उच्चतर होता
है। घोड़े वर्ग के पुरुष का लिंग काफी बड़ा होता है और हिरन वर्ग की स्त्री
की योनि की गहराई सिर्फ 3 इंच ही होती है। इसी कारण से कामोत्तेजित पुरुष
अगर अपने पूरे लिंग को स्त्री की योनि में प्रवेश कराने की कोशिश करता है
तो स्त्री दर्द से चिल्ला उठती है और संभोग क्रिया में विघ्न पड़ जाता है।
निम्नरत-
यह उच्चरत के बिल्कुल उल्टा होता है। जिस समय खरगोश वर्ग का
पुरुष घोड़ी वर्ग की स्त्री के साथ संभोग करता है तो उसका लिंग स्त्री की
योनि में ज्यादा अंदर तक नहीं पहुंच पाता है जिससे स्त्री को किसी प्रकार
की संतुष्टि प्राप्त नहीं होती है। इसी तरह से अगर बैल वर्ग का पुरुष किसी
हस्तिनी वर्ग की स्त्री के साथ संभोग करता है तो उसका लिंग स्त्री की योनि
की गहराई के आधे तक भी नहीं पहुंच पाता है। इसे ही निम्नतर कहते हैं। इसके
कारण से न तो पुरुष को और न ही स्त्री को किसी प्रकार की संभोग में मिलने
वाली संतुष्टि प्राप्त हो पाती है। बहुत छोटे आकार के लिंग से योनि में
पूरी तरह से घर्षण न होने के कारण घोडी़ वर्ग की स्त्री या हस्तिनी वर्ग की
स्त्री चरम सुख तक नहीं पहुंच पाती है।
निम्नरत की तुलना
में उच्चरत ज्यादा उपयुक्त और वांछनीय होता है क्योंकि अगर पुरुष स्त्री की
योनि में सावधानी से घर्षण की क्रिया करता है तो इससे स्त्री को असीम आनंद
प्राप्त होता है और पूर्ण संतुष्टि भी प्रदान होती है। लेकिन उच्चतर छोटी
और कम गहरी योनि के लिए सही नहीं है। इसी प्रकार निम्नरत भी बेकार होता है
क्योंकि गहरी योनि में छोटा लिंग आधे तक भी नहीं पहुंच पाता और न ही ज्यादा
जोर की घर्षण क्रिया कर सकता है।
अगर किसी कारण से घोड़े वर्ग का
पुरुष किसी घोडी़ वर्ग की या हिरन वर्ग की स्त्री के साथ संभोग करता है तो
ऐसी स्त्री को संभोग के समय अपनी जांघों को पूरी तरह से फैलाकर अपनी योनि
के मुख को पूरी तरह से फैलाने की कोशिश करनी चाहिए ताकि पुरुष का लिंग
आसानी से उसकी योनि में प्रवेश कर पाए। अगर स्त्री अपने नितंबों के नीचे एक
मोटा सा तकिया रखकर अपनी योनि वाले भाग को ऊंचा उठा लेती है तो इससे उसकी
योनि की गहराई बढ़ जाती है और बड़े आकार का लिंग भी उसमें पूरी गहराई तक
समा जाता है। अगर संभोग करने वाला पुऱुष इस क्रिया में पूरी तरह से निपुण
होता है तो बड़े से बड़ा लिंग भी छोटी योनि में प्रवेश करके स्त्री को चरम
सुख तक पहुंचा सकता है।
स्त्रियों की संभोग में रुचियां
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परिचय-
स्त्रियों की संभोग के प्रति रुचि होने के बारे में सबसे पहले
यह बात जानना जरूरी होता है कि स्त्रियां भी पुरुषों से कम कामुक नहीं होती
हैं। इसमें फर्क सिर्फ इतना होता है कि पुरुष की कामुकता जल्दी समाप्त हो
जाती है जबकि स्त्रियां अपनी कामुकता को छुपाकर रखना चाहती है और जब तक
जरुरी न हो तब तक उनकी कामुकता का आसानी से पता नहीं लगाया जा सकता है।
स्त्रियों मे कामुकता के बहुत से केंद्र होते हैं लेकिन उन
केंद्रों के बारे में जानने से पहले यह जानना जरुरी है कि उनमें काम
उत्पत्ति कव होती है।
लड़कियों का जब मासिकधर्म शुरू होता
है तो उसके बाद उनके शरीर में खास तरह के हार्मोन्स का विकास होना शुरू
होता है और इसी समय से लड़कियां काम भावना की ओर भागने लगती हैं। इसी समय
लड़कियों के शारीरिक अंगों का भी विकास होने लगता है जैसे उसके स्तन और
नितंबों का भारी होना, जननांगों पर बाल उगना़, आवाज का बदल जाना आदि। माना
जाता है कि जिन लड़कियों का मासिकधर्म जल्दी शुरु होता है उनके अंदर संभोग
करने की इच्छा भी जल्दी पैदा होती है लेकिन यह बात पूरी तरह से सही नहीं है
क्योंकि संभोग करने की इच्छा का संबंध शारीरिक विकास की अपेक्षा सामाजिक
या अनुवांशिक कारणों से ज्यादा होता है। अक्सर कुछ लड़कियां मासिकधर्म के
दौरान संभोग के प्रति उत्तेजना महसूस करती हैं लेकिन संभोग करने से डरती
हैं लेकिन यह बात सही नहीं है। अगर वे इस दौरान संभोग के प्रति उत्तेजना
महसूस करती हैं तो उसे संभोग करने से डरना नहीं चाहिए वह अपने पति को संभोग
के लिए तैयार कर सकती हैं। इस दौरान स्त्री को गर्भ ठहरने का डर भी नहीं
रहता है और उसकी योनि में भी वहुत ज्यादा नमी रहती है। शुरुआत में तो
स्त्रियां इस दौरान संभोग करते समय योनि में से ज्यादा खून आने की शिकायत
करती हैं लेकिन धीरे-धीरे यह खून आना कम हो जाता है क्योंकि कु्छ समय में
गर्भाशय का संकुचन हो जाता है। कुछ स्त्रियों में मासिकधर्म के समय दिमागी
तनाव जैसे लक्षण पैदा हो जाते हैं जिसका असर उनकी सेक्स करने की इच्छा पर
भी पड़ता है। उनमें चिड़चिड़ापन आ जाता है और इसी के साथ ही जी मिचलाना,
कमर में दर्द आदि लक्षण प्रकट होते हैं।
बहुत सी स्त्रियां
गर्भधारण करने के बाद सेक्स करने के बारे में इच्छा तो रखती है लेकिन डरती
है कि कहीं इसका उनके गर्भ में पल रहे बच्चे पर बुरा असर न पड़े। ऐसी
स्त्रियां गर्भावस्था के दौरान संभोगक्रिया कर सकती हैं लेकिन इसके लिए
उन्हें अपने आपको शरीर और दिमाग से पूरी तरह स्वस्थ महसूस करना होता है और
कुछ सावधानियां बरतने की जरूरत होती है। अगर किसी स्त्री को पहले
गर्भावस्था के समय 3 महीने के दौरान कभी गर्भपात हुआ हो तो दुबारा गर्भ
ठहरने के बाद शुरुआती 3 महीनों तक संभोगक्रिया से दूर रहना चाहिए। अगर
स्त्री को पहले कई बार गर्भपात हुआ हो तो गर्भावस्था के दौरान उसे संभोग से
दूर रहना चाहिए क्योंकि ऐसी स्त्री के गर्भाशय का मुंह गर्भ को स्थापित
रखने में कमजोर होता है। स्वस्थ स्त्री अगर शुरुआती 3 महीने के बाद सातवें
महीने तक संभोग करे तो कोई परेशानी की बात नहीं है। लेकिन संभोगक्रिया के
लिए ऐसे आसनों का प्रयोग करना चाहिए जिनका असर गर्भ में पल रहे बच्चे पर न
पड़े। इन आसनों में संभोगक्रिया के दौरान स्त्री को पुरुष के ऊपर होकर या
बगल में लेटकर संभोगक्रिया करनी चाहिए।
बहुत सी स्त्रियों
में यौन उत्तेजना इतनी तेज होती है कि उन्हें संभोग करने से पहले
प्राकक्रीड़ा द्वारा उत्तेजित करने की जरूरत नहीं पड़ती। ऐसी स्त्रियां
पुरुष के द्वारा छूते ही उत्तेजित हो जाती हैं और संभोगक्रिया के लिए तैयार
हो जाती हैं। पर दूसरी किस्म की स्त्रियों को कलात्मक प्राकक्रीड़ा द्वारा
उत्तेजित करना जरूरी हो जाता है। जब तक ऐसी स्त्रियों के जननांगों में यौन
लहरे तरंगित नहीं होती तब तक उनका पति उनके साथ सफल सेक्स नहीं कर सकता।
जब तक स्त्री में यौन उत्तेजना नहीं होगी तब तक उसकी योनि द्रवित नहीं हो
पाएगी और उसमें लिंग भी आसानी से प्रवेश कर पाएगा। अगर किसी तरह से लिंग
योनि में प्रवेश कर भी जाता है तो उससे तेजी से घर्षण नहीं किया जाएगा।
इसलिए हर पति को अपनी पत्नी के काम केंद्रों की जानकारी होनी चाहिए। वैसे
तो स्त्री का पूरा शरीर ही यौन उत्तेजना के मामले में संवेदनशील होता है
लेकिन उसके होंठ, जीभ, स्तन, नाभि का हिस्सा, नितंब, जांघ के अंदर का
हिस्सा, योनि और भगनासा बहुत उत्तेजक अंग होते हैं। अगर स्त्री के इन अंगों
को सहलाया जाए तो स्त्री उत्तेजित होकर तुरंत संभोग के लिए तैयार हो जाती
है।
होंठ और जीभ-
होंठ और जीभ बहुत ही कामोत्तेजक होते
हैं। पति जब अपनी पत्नी का चुंबन लेते समय उसके नीचे वाले होंठ को अपने
होंठों के बीच में लेकर चूसता है, उसकी जीभ को अपनी जीभ से रगड़ता है, मुंह
में मुंह लेकर चूसता है तो स्त्री के होंठ कामोत्तेजना से गुलाबी हो जाते
हैं और उसकी आंखों में भी नशा छाने लगता है। अक्सर पत्नी अपने पति के
द्वारा होंठों को चूमने या चूसने से तुरंत ही कामोत्तेजित हो जाती है।
स्तन-
स्त्री के स्तन भी बहुत कामोत्तेजक होते हैं। अक्सर पुरुष
स्त्री के स्तनों को देखकर ही उत्तेजित हो जाता है लेकिन जब पुरुष भारी और
आकर्षक स्तनों को धीरे-धीरे सहलाता और मसलता है, उसके स्तनों के निप्पलों
को उंगलियों से धीरे-धीरे दबाता है तो स्त्री उसी समय कामोत्तेजित हो जाती
है बेकाबू हो जाती है। अगर पुरुष स्तनों के निप्पलों में से एक को चूसते
हुए दूसरे को सहलाता है तो स्त्री कामोत्तेजित होकर सिसकियां लेनी लगती
हैं। लेकिन इस सबको अगर एक हद तक ही किया जाए तो ठीक है वरना पुरुष को अपने
आपको संभालना मुश्किल हो जाता है और वह तुरंत ही स्खलित हो जाता है। बहुत
से पुरुष होते हैं जो स्त्री के स्तनों के साथ खेलते-खेलते ही स्खलित हो
जाते हैं।
नाभि-
स्त्री के नाभि वाले भाग को अगर
हल्के-हल्के से सहलाया या गुदगुदाया जाए तो स्त्री की कामोत्तेजना बढ़ने
लगती है। अगर पुरुष स्त्री की नाभि को अपनी जीभ से चूमता या सहलाता है तो
स्त्री में कामोत्तेजना चरम पर पहुंचने लगती है। लेकिन स्त्री का नाभि वाला
भाग उसके होंठों, जीभ और स्तनों से कम ही उत्तेजक होता है।
नितंब-
बहुत सी स्त्रियों के नितंब काफी आकर्षक और कामोत्तेजक होते
हैं। बाहर के देशों में पीन नितंब बहुत ज्यादा कामोत्तेजक होते हैं। उन
देशों में स्त्री को बहुत सुंदर और मादक माना जाता है जिसका सीना और नितंब
एक ही साइज के होते हैं जैसे अगर किसी स्त्री का सीना 34 है तो उसके
नितंबों के उभारों का नाप भी 34 ही होना चाहिए। सौंदर्य प्रतियोगिताओं में
अक्सर वही स्त्री जीतती है जिसके सीने, कमर और नितंब का नाप 34-24-36 होता
है। उभरे हुए नितंब पुरुष के लिए स्तनों के समान ही कामोत्तेजक होते हैं।
नितंबों को सहलाने और मसलने से पुरुष की नस-नस में कामोत्तेजना पैदा होने
लगती है और स्त्री भी कामोत्तेजित होकर पति से लिपटने लगती है।
जांघ-
स्त्री के जांघों के भीतरी भाग को धीरे-धीरे सहलाने से भी
स्त्री कामोत्तेजित हो जाती है। इन अंगों का मादक स्पर्श पुरुष को भी
कामोत्तेजित कर देता है। अक्सर स्त्रियां इन अंगों को सहलाए जाने से
प्रसन्न और गदगद हो जाती हैं और संभोगक्रिया के लिए तैयार हो जाती हैं।
भगनासा-
स्त्री के शरीर का सबसे कामोत्तेजक अंग उसका भगनासा होता है।
यह छोटे भगोष्ठों के बीच उस स्थान पर स्थित होता है जहां से छोटे भगोष्ठों
का उभार शुरू होता है। इसके थोड़ा सा नीचे मूत्रद्वार होता है जिससे स्त्री
मूत्र त्याग करती है। भगनासा छोटे दाने के आकार में उभरी हुई होती है
लेकिन असल में ये बहुत ज्यादा बारीक कामोत्तेजक तंत्रिकाओं का समूह होती
है। यह लिंग का ही बहुत छोटा प्रतिरूप होता है। इसमें भी मुंड होता है जो
साधारण रूप में मुंडचर्म से ढका रहता है लेकिन उत्तेजित होने पर मुंड
अनावृत होकर तन जाता है। इसका आकार भी सामान्य से दुगना हो जाता है। पुरुष
जब इस भगनासा को हल्के से सहलाता है या कलात्मक ढंग से छेड़ता है तो स्त्री
के शरीर में काम उत्तेजना बहुत ही तेज हो जाती है। अगर यह क्रिया हद से
बाहर हो जाती है तो तेज काम उत्तेजना के कारण पुरुष और स्त्री दोनों ही
स्खलित हो जाते हैं और संभोगक्रिया के असली आनंद से वंचित रह जाते हैं।
इसलिए पुरुष को इस मामले में बहुत ही सावधान रहने की जरूरत होती है। थोड़ी
सी सावधानी बरतने से ही पुरुष स्त्री को इतना उत्तेजित कर देता है कि
स्त्री की योनि में पुरुष के लिंग के प्रवेश करने तथा हल्के से घर्षण से ही
स्त्री तेज स्खलन को महसूस करके बहुत ज्यादा आनंद और गुदगुदी से कुछ पलों
के लिए आनंद के सागर में खो जाती है।
योनि-
भगनासा के
अलावा स्त्रियों का योनि मार्ग भी काफी संवेदनशील कामोत्तेजक अंग होता है।
योनि के मुख्य द्वार पर छोटे भगोष्ठ स्थित होते हैं जो बहुत ज्यादा
संवेदनशील होते हैं। छोटे भगोष्ठों से सलंग्न योनि छल्ला होता है जो भगनासा
की तरह ही सूक्ष्म तंत्रिकाओं से घिरा होता है। यह अंग स्वैच्छिक पेशियों
से जुड़ा रहता है और स्त्री अपनी इच्छा के अनुसार इसमें संकोच उत्पन्न कर
सकती है। संभोगक्रिया के समय जब लिंग तेजी से घर्षण करता है तो उस समय योनि
मुख के कलात्मक ढंग से फैलने और सिकुड़ने से पुरुष बहुत ज्यादा आनंद महसूस
करता है। उत्तेजना उसे और मदहोश कर देती है और लिंग के द्वारा योनि में
घर्षण और तेज होता जाता है। बहुत सी कामुक स्त्रियों में योनि मुख का
आंकुचन (योनि मुख का अपने आप सिकुड़ना और फैलना) कामोत्तेजना के समय खुद ही
होने लगता है और स्त्री आसानी से उसके सिकुड़ने और फैलने की गति को
नियंत्रित नहीं कर सकती है। इस प्रकार की योनि से पुरुष को जो यौन सुख
मिलता है उसको बताया नहीं जा सकता है। स्त्री के इस अंग को उंगली से
धीरे-धीरे सहलाने से या जीभ के द्वारा चाटने से स्त्री बहुत ज्यादा
उत्तेजित होकर सिसकियां भरने लगती है। ऐसी स्थिति पैदा होने पर अगर पुरुष
अपने लिंग को स्त्री की योनि में प्रवेश कराके घर्षण शुरू कर दें तो कुछ ही
समय में स्त्री स्खलित होकर संतुष्ट हो जाती है। स्त्री जब बहुत ज्यादा
उत्तेजित हो जाती है तब उसके भगोष्ठ फूलकर गुलाबी रंग के हो जाते हैं।
किसी भी स्त्री को उत्तेजित करने में लगभग 15 से 30 मिनट का समय
लग जाता है लेकिन पति में अगर सब्र या कामकला की कमी हो तो वह पत्नी को
उत्तेजित किये बिना ही एकतरफा संभोगक्रिया में लग जाता है और तुरंत ही
स्खलित होकर एक तरफ हो जाता है। इस सब में उसे इस बात की कोई चिंता नहीं रह
जाती कि जिस पत्नी ने उसे अलौकिक आनंद प्रदान किया है उसे खुद भी पूरी तरह
संतुष्टि मिली है या नहीं।
कई स्त्रियां होती हैं जो
संभोगक्रिया के समय चुंबन से ऩफरत करती हैं और पुरुष के द्वारा अपने शरीर
पर नाखून गाड़ने से या दांतों से काटने से भी बुरा मानती हैं। ब्रह्मलोक और
अवंती की स्त्रियां भी इन्हें पसंद नहीं करती लेकिन संभोगक्रिया के
अलग-अलग आसनों में ज्यादा रुचि लेती हैं। इनको युक्तसंगम या बैठकर संभोग
करने में आनंद मिलता है। यह 4 प्रकार से किया जाता है- जानूपू्र्वक,
हरिविक्रम, द्वितल और अवलंबित।
आमीर प्रदेश और मालवा की
स्त्रियों को मजबूत आलिंगन, चुंबन और पीड़ाक जैसी संभोगक्रिया सबसे प्रिय
होती है। इन्हें पुरुष के द्वारा अपने शरीर पर नाखून गड़ाना और दांतों से
काटना नापसंद होता है। संभोगक्रिया में इन्हें जितना ज्यादा दर्द होता है
उतनी ही अधिक इनकी यौन उत्तेजना बढ़ती है।
• ईरावती, सिंधु, शतद्रु,
चंद्रभागा, विपात और वितस्ता नदियों के पास रहने वाली स्त्रियों के शरीर की
उत्तेजना बढ़ाने वाले अंगों पर पुरुष द्वारा सहलाने से काम उत्तेजना तेज
होती है।
• गुर्जरी स्त्रियों के सिर के बाल घने, दुबला-पतला शरीर, स्तन
भरे हुए और आंखे नशीली होती हैं। यह स्त्रियां सरल संभोग करना पसंद करती
हैं।
• लाट प्रदेश की स्त्रियां बहुत उत्तेजक होती हैं। इनके शरीर के
अंग कोमल और नाजुक होते हैं। ऐसी स्त्रियों को लगातार चलने वाली
संभोगक्रिया पसंद होती है। अपने पुरुष साथी से लिपटना इन्हें बहुत पसंद
होता है। ये तेज कटिसंचालन करती हैं और काफी देर तक योनिमंथन करने से
इन्हें आनंद मिलता है। यह स्त्रियां पुरुष द्वारा अपने शरीर पर नाखून
गड़ाना और दांतों से काटना भी पसंद करती हैं।
• आंध्रप्रदेश की
स्त्रियां कोमल अंगों वाली होती हैं और इनके अंदर यौन उत्तेजना बहुत ज्यादा
होती है। यह स्त्रियां संभोग के लिए पुरुष को खुद ही उत्तेजित करती हैं और
बड़वा आसन में संभोग करना पसंद करती हैं।
• उत्कल और कलिंग प्रदेश की
स्त्रियों को काम उत्तेजना के बारे में कुछ भी ज्ञान नहीं होता। यह
स्त्रियां पुरुष द्वारा अपने शरीर पर नाखून गड़ाना और दांतों से काटना पसंद
करती हैं। उत्कल स्त्रियां बिल्कुल शर्म न करने वाली, हमेशा प्यार करने
वाली और लंबे समय तक संभोग की इच्छा रखने वाली होती हैं।
• बंगाल और
गौड़ प्रदेशों की स्त्रियां कोमल अंगों वाली होती हैं। इन्हें हर समय
आलिंगन और चुंबन में रुचि होती है। ऐसी स्त्रियों की काम उत्तेजना को जगाने
में बहुत देर लगती है लेकिन एक बार जब इनकी काम उत्तेजना जगती है तो ये
अपने आपको पूरी तरह से पुरुष के हवाले कर देती हैं। इनके नितंब भारी होते
हैं इसलिए इन्हें नितंबनी भी कहा जाता है।
• कामरूप की स्त्रियां मीठी
बोली वाली होती हैं। इनके शरीर के अंग कोमल और आकर्षक होते हैं। पुरुष
द्वारा सिर्फ इनका आलिंगन करने से ही इन्हें पूरी तरह संभोग संतुष्टि मिल
जाती है। एकबार अगर यह स्त्रियां उत्तेजित हो जाती हैं तो उसके बाद यह पूरी
तरह से संभोगक्रिया में डूबी रहती हैं।
• आदिवासी स्त्रियां अपने शरीर
के विकारों को दूसरों से छुपाती हैं लेकिन दूसरों में अगर कोई दोष इन्हें
दिखाई देता है तो यह उन्हें ताना मारने से नहीं चूकती हैं। इन्हें संभोग की
सभी क्रीड़ाएं पसंद होती हैं और यह सामान्य संभोग में ही यह संतुष्ट हो
जाती हैं।
• महाराष्ट्र की स्त्रियां 64 कलाओं की ज्ञाता होती हैं।
संभोगक्रिया के समय वह किसी प्रकार का संकोच नहीं करती और अश्लील बातें
बोलती हैं।
• पटना की स्त्रियां भी अश्लील बातें करती हैं लेकिन सिर्फ घर के अंदर, बाहर नहीं।
•
कर्नाटक की लड़कियों की योनि से पानी ज्यादा मात्रा में निकलता है। यह
स्त्रियां आलिंगन. चुंबन और स्तनों को दबवाने के साथ ही योनि में उंगलियों
से घर्षण करने से उत्तेजित होती है। संभोगक्रिया के समय यह स्त्रियां जल्दी
संतुष्ट हो जाती हैं।
पूर्ण यौन तृप्ति
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परिचय-
हर स्त्री के शरीर में बहुत से कामोत्तेजक अंग होते हैं जिनको
हल्का-सा छूने से या सहलाने से ही स्त्री के अंदर यौन उत्तेजना जाग उठती
है। इनमें स्त्री के स्तन, जांघें, भगनासा और कटि प्रदेश जैसे अंग आते हैं।
अगर स्त्री के साथ संभोग करने से पहले उसके इन अंगों को सहलाकर या चूमकर
उसे संभोग करने से लिए अच्छी तरह से उत्तेजित कर लिया जाए तो संभोग क्रिया
में स्त्री और पुरुष दोनों को ही आनंद आता है। स्त्री के हावभाव को देखकर
ही पता लगा लिया जा सकता है कि वह आपके साथ संभोग क्रिया के लिए पूरी तरह
से तैयार है।
अगर स्त्री की यौन उत्तेजना को जगाए बिना ही
उसके साथ संभोग किया जाए तो उसे इस क्रिया में पूरी तरह से आनंद प्राप्त
नहीं होगा और वह बेबस प्राणी की तरह बिस्तर पर पड़ी रहेगी और पुरुष को
संभोग क्रिया में सहयोग नहीं करेगी। इसी वजह से न तो पुरुष संभोग का असली
मजा प्राप्त कर पाएगा और न ही स्त्री। हो सकता है कि इसके कारण
स्त्री-पुरुष से कुछ दिन में ही दिन में कटने सी रहने लगे और उसके मन में
यह आए कि मेरे पति को संभोग के बारे में कुछ जानकारी ही नहीं है।
स्त्रियों के अंदर मासिकस्राव के दौरान काम उत्तेजना कम या ज्यादा
होती रहती है। मासिकस्राव आने से 2-3 दिन पहले या 2-3 दिन के बाद स्त्री
में काम उत्तेजना बढ़ी हुई रहती है। इन दिनों में अगर स्त्री के साथ संभोग
किया जाए तो वह अपने पुरुष साथी को इस क्रिया में पूर्ण सहयोग देती है
इसलिए पुरुष को चाहिए कि वह स्त्री के मासिकस्राव आने से 2-3 दिन पहले या
बाद में उसके स्वभाव का ध्यान रखें। अगर इस समय स्त्री के हावभाव या हरकतों
से पुरुष को ऐसा ज्ञात होता है कि स्त्री शारीरिक संपर्क में ज्यादा रुचि
ले रही है तो कोशिश करें कि उसकी यह इच्छा किसी तरह से पूरी हो जाए उसकी इस
इच्छा को मरने न दें।
यह बात हर पुरुष अच्छी तरह से जानता
है कि किसी भी स्त्री में अगर काम उत्तेजना जागती है तो वह अपनी इस इच्छा
को खुद पुरुष के सामने प्रकट नहीं कर सकती। जो समझदार पुरुष होते हैं वह
स्त्री की इस बढ़ती हुई काम उत्तेजना को खुद ही समझ लेता है। किसी भी
स्त्री के अंदर जब भी काम उत्तेजना जागृत होती है तो वह खुद ही अपने पुरुष
साथी के शरीर से अपने शरीर को छुआती रहती है, उसके शरीर के अंगों को
बार-बार छेड़ती रहती है. उससे अलिंगन करने का प्रयास करती है। पुरुष को जब
भी अपनी साथी स्त्री में ऐसे लक्षण नजर आते हैं तो उसे उसकी इस काम
उत्तेजना को शांत कर देना चाहिए।
स्त्रियों के शरीर के इन
कामोत्तेजित अंगों के बारे में पुरुष को स्त्री से ही जानकारी मिल सकती है
लेकिन इसके लिए पुरुष को स्त्री का पूर्ण सहयोग और भरोसा प्राप्त करना
होगा। अगर पुरुष स्त्री का संकोच आदि समाप्त करने में सफल हो जाता है तो
इससे स्त्री संभोग क्रिया के समय अपने शरीर की प्रतिक्रिया, उत्तेजना और
अनुभूति पुरुष को बताने से किसी तरह से हिचकिचाहट नहीं करेगी। इससे स्त्री
और पुरुष दोनों को ही संभोग क्रिया के समय पूर्ण संतुष्टि प्राप्त होती है।
बहुत से पुरुष अपनी कामोत्तेजना के वशीभूत होकर अपनी साथी
स्त्री की इच्छा विरुद्ध उससे संभोग करने लगते हैं जिसका परिणाम यह होता है
कि वह स्त्री की काम उत्तेजना को शांत किए बिना ही स्खलित हो जाता है
जिसका नतीजा यह होता है कि स्त्री की यौन उत्तेजना पूरी तरह से शांत नहीं
हो पाती और वह कुछ ही समय में अपने पति के खिलाफ अपने मन में नफरत सी भर
लेती है।
अगर पुरुष को अपनी पत्नी के साथ शारीरिक संबंध
बनाने हो तो इसके लिए जरूरी नहीं है कि उसका खुद का मन ही इस क्रिया के लिए
तैयार हो बल्कि स्त्री के मन की इच्छा जानना भी जरूरी है। अगर पुरुष के
द्वारा स्त्री को आलिंगन, चुंबन या स्पर्श करने से स्त्री की काम उत्तेजना
जागृत नहीं होती तो फिर पुरुष को स्त्री के साथ जबरन शारीरिक संबंध नहीं
बनाने चाहिए क्योंकि ऐसे संबंध बलात्कार करने के समान होते हैं।
संभोग क्रिया के समय पुरुष स्त्री से जल्दी स्खलित हो जाता है क्योंकि
पुरुष की कामोत्तेजना स्त्री की काम उत्तेजना जागने से पहले ही जाग चुकी
होती है नतीजतन पुरुष स्त्री से पहले ही स्खलित हो जाता है। इसलिए पुरुष को
चाहिए कि अपनी कामोत्तेजना को थोड़ा संयमित रखे तथा बताए गए उपायों को
अपनाकर पत्नी की काम उत्तेजना को पूरी तरह से जगाने के बाद ही संभोग करना
शुरु करें इससे स्त्री और पुरुष दोनों ही संभोग क्रिया के समय एक साथ
स्खलित होंगे और उन्हें चरम सुख मिलेगा।
अक्सर स्त्रियों
में एक बात देखी जाती है कि वह साफ-सफाई की तरफ कुछ ज्यादा ही ध्यान देती
है। ऐसी स्त्रियां अपने पति की शारीरिक गंदगी, आलिंगन, चुंबन, स्पर्श न
करना और प्यार की बातें न करना आदि। जो पुरुष इन बातों की परवाह न करके
अपनी पत्नी को संभोग क्रिया के लिए विवश करते हैं वे अपनी पत्नी की भावनाओं
को चोट पंहुचाते हैं। स्त्रियां ऐसे पुरुषों को अपना शरीर तो सौंप देती
हैं लेकिन मन से उनके साथ इस क्रिया में सहयोग नहीं करती। इसलिए पुरुष को
चाहिए कि अपने शरीर की सफाई पर खासतौर पर ध्यान दें। अगर पुरुष साफ-सुथरे
और आकर्षित कपड़ों में स्त्री के सामने जाता है तो स्त्री का मन स्वयं ही
उसकी ओर आकर्षित होता है इसके साथ ही पुरुष का हंसमुख होना, प्रेम करने का
सबसे अलग तरीका, जिंदादिल रहना स्त्रियों को बहुत ज्यादा पसंद होता है।
Purn yaun tripti
संभोग क्या है ?
समान रूप से शारीरिक सम्बन्धों द्वारा भोगा गया आनन्द ही सम्भोग
है। इसमें सेक्स का आनन्द स्त्री-पुरुष को समान रूप से प्राप्त होना
आवश्यक है। स्खलन के साथ ही पुरुष को तो पूर्ण आनन्द की प्राप्ति हो जाती
है और सेक्स सम्बन्ध स्थापित होते ही पुरूष का स्खलन निश्चित हो जाता है।
यह स्खलन एक मिनट में भी हो सकता है तो दस मिनट में भी। अर्थात् पुरुष को
पूर्ण आनन्द की प्राप्ति हो जाती है। इसलिए मुख्य रूप से स्त्री को मिलने
वाले आनन्द की तरफ ध्यान देना आवश्यक है। अगर स्त्री इस आनन्द से वंचित
रहती है, इसे सम्भोग नहीं माना जाना चाहिए। इस वास्तविकता से व्यक्ति पूरी
तरह से अनभिज्ञ होकर अपने तरीके से सेक्स सम्बन्ध बनाता है और स्त्री के
आनन्द की तरफ कोई ध्यान नहीं देता है। इसे केवल भोग ही मानना चाहिए। सम्भोग
की वास्तविकता को समझे बिना इसे जानना मुश्किल होगा। विवाह के बाद व्यक्ति
सम्भोग करने के स्थान पर भोग करता है तो इसका मतलब यह है कि वह इस तरफ से
अनजान है कि स्त्री को सेक्स का पूरा आनन्द मिला कि नहीं। सम्भोग शब्द की
महत्ता को समझें। स्त्री को भोगें नहीं, समान रूप से आनन्द को बांटे। यही
संभोग है।
युवक-युवती जब विवाह के उद्देश्य को समझ
विवाह-बंधन में बंधते हैं तो वे इस बात से अवगत होते हैं कि उनके प्रेम भरे
क्रिया-कलापों का अंत संभोग होगा। प्रत्येक शिक्षित युवक-युवती यह जानते
हैं कि संभोग विवाह का अनिवार्य अंग है। यदि कोई सहेली ऐसी नवयुवती से
पूछती है कि तू विवाह करने तो जा रही है किन्तु यह भी जानती है कि संभोग
कैसा होता है ? वो या तो इसका उत्तर टाल जाएगी अथवा कह देगी कि उसके बारे
मे जानने की क्या आवश्यकता है? संभोग तो पुरुष करता है। इसलिए उसे ही जानना
चाहिए कि संभोग कैसे करना चाहिए।
ऐसे प्रश्नों पर युवक हंसकर उत्तर देता है, भला यह भी कोई पूछने की बात है। संभोग करना कौन नहीं जानता।
संभोग आरंभ करने की स्थिति-
यह ठीक है कि अनेक प्रकार की काम-क्रीड़ा से स्त्री संभोग के
लिए तैयार हो जाए और उसकी योनि तथा पुरुष के शिश्न मुण्ड में स्राव आने लगे
तो योनि में शिश्न डालकर मैथुन प्रारम्भ कर देना चाहिए। परन्तु जिस बात पर
हमें विशेष बल देना चाहिए वह यह है कि योनि में शिश्न डालने के पश्चात् ही
काम-क्रीड़ाओं को बंद नहीं कर देना चाहिए, जिनके द्वारा स्त्री को संभोग
के लिए तैयार किया गया है। यह
ठीक है कि समागन के कुछ आसन ऐसे होते हैं
जिनमें बहुत अधिक प्रणय क्रीड़ाओं की गुंजाइश नहीं होती, परन्तु ऐसे आसन
बहुत कम होते हैं। योनि में शिश्न के प्रवेश करने के बाद जब तक संभव हो सके
इन क्रियाओं को जारी रखना चाहिए। यदि किसी आसन में नारी का चुम्बन लेते
रहना संभव न हो तो स्तनों को सहलाते और मसलते रहना चाहिए। अगर स्तनों को
मसलना या पकड़कर दबाना भी संभव न हो तो इसके चुचकों का ही स्पर्श करते रहना
चाहिए। इससे तात्पर्य यह है कि इस समय जो भी प्रणय-कीड़ा संभव हो सके, उसे
जारी रखना चाहिए। इससे काम आवेग में वृद्धि होती है, मनोरंजन बढ़ता है और
स्त्री के उत्साह में वृद्धि होती है।
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समान रूप से शारीरिक सम्बन्धों द्वारा भोगा गया आनन्द ही सम्भोग
है। इसमें सेक्स का आनन्द स्त्री-पुरुष को समान रूप से प्राप्त होना
आवश्यक है। स्खलन के साथ ही पुरुष को तो पूर्ण आनन्द की प्राप्ति हो जाती
है और सेक्स सम्बन्ध स्थापित होते ही पुरूष का स्खलन निश्चित हो जाता है।
यह स्खलन एक मिनट में भी हो सकता है तो दस मिनट में भी। अर्थात् पुरुष को
पूर्ण आनन्द की प्राप्ति हो जाती है। इसलिए मुख्य रूप से स्त्री को मिलने
वाले आनन्द की तरफ ध्यान देना आवश्यक है। अगर स्त्री इस आनन्द से वंचित
रहती है, इसे सम्भोग नहीं माना जाना चाहिए।
इस वास्तविकता से व्यक्ति पूरी
तरह से अनभिज्ञ होकर अपने तरीके से सेक्स सम्बन्ध बनाता है और स्त्री के
आनन्द की तरफ कोई ध्यान नहीं देता है। इसे केवल भोग ही मानना चाहिए। सम्भोग
की वास्तविकता को समझे बिना इसे जानना मुश्किल होगा। विवाह के बाद व्यक्ति
सम्भोग करने के स्थान पर भोग करता है तो इसका मतलब यह है कि वह इस तरफ से
अनजान है कि स्त्री को सेक्स का पूरा आनन्द मिला कि नहीं। सम्भोग शब्द की
महत्ता को समझें। स्त्री को भोगें नहीं, समान रूप से आनन्द को बांटे। यही
संभोग है।
युवक-युवती जब विवाह के उद्देश्य को समझ
विवाह-बंधन में बंधते हैं तो वे इस बात से अवगत होते हैं कि उनके प्रेम भरे
क्रिया-कलापों का अंत संभोग होगा। प्रत्येक शिक्षित युवक-युवती यह जानते
हैं कि संभोग विवाह का अनिवार्य अंग है। यदि कोई सहेली ऐसी नवयुवती से
पूछती है कि तू विवाह करने तो जा रही है किन्तु यह भी जानती है कि संभोग
कैसा होता है ? वो या तो इसका उत्तर टाल जाएगी अथवा कह देगी कि उसके बारे
मे जानने की क्या आवश्यकता है? संभोग तो पुरुष करता है। इसलिए उसे ही जानना
चाहिए कि संभोग कैसे करना चाहिए।
ऐसे प्रश्नों पर युवक हंसकर उत्तर देता है, भला यह भी कोई पूछने की बात है। संभोग करना कौन नहीं जानता।
संभोग आरंभ करने की स्थिति-
यह ठीक है कि अनेक प्रकार की काम-क्रीड़ा से स्त्री संभोग के
लिए तैयार हो जाए और उसकी योनि तथा पुरुष के शिश्न मुण्ड में स्राव आने लगे
तो योनि में शिश्न डालकर मैथुन प्रारम्भ कर देना चाहिए। परन्तु जिस बात पर
हमें विशेष बल देना चाहिए वह यह है कि योनि में शिश्न डालने के पश्चात् ही
काम-क्रीड़ाओं को बंद नहीं कर देना चाहिए, जिनके द्वारा स्त्री को संभोग
के लिए तैयार किया गया है।
यह
ठीक है कि समागन के कुछ आसन ऐसे होते हैं
जिनमें बहुत अधिक प्रणय क्रीड़ाओं की गुंजाइश नहीं होती, परन्तु ऐसे आसन
बहुत कम होते हैं। योनि में शिश्न के प्रवेश करने के बाद जब तक संभव हो सके
इन क्रियाओं को जारी रखना चाहिए। यदि किसी आसन में नारी का चुम्बन लेते
रहना संभव न हो तो स्तनों को सहलाते और मसलते रहना चाहिए। अगर स्तनों को
मसलना या पकड़कर दबाना भी संभव न हो तो इसके चुचकों का ही स्पर्श करते रहना
चाहिए। इससे तात्पर्य यह है कि इस समय जो भी प्रणय-कीड़ा संभव हो सके, उसे
जारी रखना चाहिए। इससे काम आवेग में वृद्धि होती है, मनोरंजन बढ़ता है और
स्त्री के उत्साह में वृद्धि होती है।
प्रणय क्रीड़ाएं अनिवार्य विषय
जो लोग मैथुन कार्य प्रारम्भ होते ही प्रणय क्रीड़ा बंद कर देते
हैं, वे प्रणव-क्रीड़ा को मैथुन से अलग मानते हैं। उनकी धारणा है कि मैथुन
कार्य प्रारम्भ होते ही प्रणय क्रियाओं की आवश्यकता समाप्त हो जाती है। यह
धारणा बिल्कुल गलत है। इन दोनों चीजों को एक-दूसरे से अलग नहीं किया जा
सकता। इस स्थिति में आकर प्रणय-क्रीड़ाओं को एकदम बंद कर देने से वह
सिलसिला टूट जाता है जिसमें स्त्री रुचि लेने लगी थी।
इस बात
को सदा याद रखना चाहिए कि काम-क्रीड़ा के दो उद्देश्य होते हैं- एक तो इस
क्रिया द्वारा आनन्द प्राप्त करना और दूसरे दोनों
सहयोगियों-विशेषतया-स्त्री को प्रणय-क्रिया के अंतिम कार्य अर्थात् संभोग
के लिए तैयार करना। इन दोनों बातों पर ध्यान देने से यह स्पष्ट हो जाएगा कि
यदि संभोग की स्थिति पर पहुंचकर प्रणय-क्रीड़ा में अनावश्यक अवरोध पैदा कर
दिया जाए या इस क्रीड़ा को बंद ही कर दिया जाए तो स्त्री के मन में
झुंझलाहट पैदा हो जाएगी। इस बात को अधिक स्पष्ट करने के लिए इस दृश्य की
कल्पना कीजिए।
पुरुष नारी के गले में बाहें डाले हुए उसके
स्तनों का चुम्बन कर रहा है, साथ ही वह उन्हें मसलता जाता है और उसके
चूचुकों को भी समय-समय पर स्पर्श कर लेता है। स्वाभाविक है कि इससे नारी के
उत्साह और काम के आवेग में वृद्धि होती है। वह उसके हाथ को अपने स्तनों पर
और दबा लेती है। इसका तात्पर्य यह है कि वह चाहती है कि पुरुष उनको और जोर
से मसले, क्योंकि इससे उसे और अधिक आनन्द आता है। पुरुष इस संकेत को दूसरे
रूप में लेता है और समझता है कि स्त्री पर कामोन्माद का पूरा आवेग चढ़
चुका है। बस वह स्तनों को मसलना बंद करके नारी की योनि में अपने शिश्न को
प्रविष्ट करने की तैयारी करने लगता है। इससे स्त्री को बड़ी निराशा होती
है। पुरुष उसकी योनि में शिश्न डाले, इसमें तो उसे कोई आपत्ति नहीं है,
किन्तु वह यह नहीं चाहती कि वह स्तनों को मसलना बंद कर दे। उसे उसके मर्दन
(मसलने) से जो आनन्द प्राप्त हो रहा था, उसका सिलसिला बीच में टूट गया। वह
यह नहीं चाहती थी। इसलिए यह आवश्यक है कि संभोग क्रिया आरंभ होते समय और
उसके जारी रहते हुए न तो प्रणय-क्रीड़ा को समाप्त करें और न उसमें कोई
रुकावट ही आने दें।
यह तो सभी लोग जानते हैं कि संभोग क्रिया
में पुरुष और स्त्री दोनों ही समान रूप से भागीदार होते हैं, किन्तु बहुत
से लोगों का विचार यह है कि पुरुष सक्रिय भागीदार की भूमिका अदा करता है
तथा स्त्री केवल सहन करती है अथवा स्वीकार मात्र करती है यह विचार
भ्रांतिपूर्ण है। स्त्रियों के जनन अंग बने ही इस प्रकार के हैं कि वे
संभोग में कभी निष्क्रिय रह ही नहीं सकते। यूरोपीय देशों की अनेक कुमारी
नवयुवतियों ने इस बात को स्वीकार किया है कि जब पहली बार किसी पुरुष ने
उनके उरोजों को पकड़कर चूचुकों को धीरे-धीरे सहलाना शुरू किया तो उनकी योनि
में विशेष तरह की फड़क-सी अनुभव हुई और यह इच्छा जाग्रत हुई कि कोई कड़ी
वस्तु उसमें जाकर घर्षण करें।
कुछ पत्नियां ऐसी होती हैं जो
जान-बूझकर निष्क्रिय भूमिका अदा करना चाहती हैं। वे समझती हैं जब पति उसका
चुम्बन, कुचमर्दन (स्तनों को सहलाना, मसलना) आदि करे तो उन्हें ऐसा आभास
देना चाहिए कि पुरुष के इस कार्य से उन्हें आनन्द नहीं मिल रहा है। उन्हें
आशंका होती है कि यदि वे आनन्द प्राप्ति का आभास देंगी तो पति यह समझ लेंगे
कि वे विवाह से पूर्व संभोग का आनन्द ले चुकी हैं। इस प्रकार के विचारों
को उन्हें अपने मन से निकाल देना चाहिए।
संभोग करते समय इस
बात को याद रखना चाहिए कि संभोग में सबसे अधिक आनन्द प्राप्त करने के लिए
जिस आवेग की आवश्यकता होती है, वह तभी प्राप्त हो सकता है जब योनि में
शिश्न निरंतर गतिशील रहे। इस गति का संबंध हरकत करने से है। इस स्थिति में
शिश्न कड़ा और सीधा होकर योनि की दीवारों की मुलायम परतों तथा गद्दियों के
सम्पर्क में आ जाता है। इसके फलस्वरूप शिश्न के तंतुओं में अधिकाधिक तनाव आ
जाता है जिसकी समाप्ति वीर्य स्खलन के साथ होती है।
संभोग
करते समय बहुत से पुरुषों को आशंका रहती है कि योनि में उनका लिंग प्रवेश
करते ही वे स्खलित हो जाएंगे। इसी आशंका से भयभीत होकर वे योनि में शिश्न
प्रविष्ट करके जल्दी-जल्दी हरकत करने लगते हैं और इस प्रकार वे बहुत जल्दी
स्खलित हो जाते हैं। सेक्स के वास्तविक आनन्द की प्राप्ति के लिए यह आवश्यक
है कि शिश्न के पूर्णतया प्रविष्ट हो जाने के बाद स्त्री पुरुष दोनों
स्थिर होकर चुम्बन मर्दन आदि करें। इसके थोड़ी देर बाद फिर गति आरंभ करें।
जब फिर स्खलन होने की आशंका होने लगे, तब फिर रुककर चुम्बन आदि में
प्रवृत्त हो जाएं, इससे दोनों को अधिकाधिक आनन्द प्राप्त होगा। इस स्थिति
में स्त्री को चाहिए कि जब पुरुष गति लगाए तब वह योनि को संकुचित करे,
जितना अधिक वह संकुचित करेगी, उतना ही पुरुष का आनन्द बढ़ेगा और वह क्रिया
करने लगेगा। ऐसा करने से स्त्री और पुरुष दोनों को आनन्द आएगा।
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