उम्र के मोहताज नहीं होते शारीरिक संबंध
एक सफल वैवाहिक संबंध में पति-पत्नी के बीच आपसी प्यार और समझ का होना बेहद आवश्यक माना जाता है. प्राय: देखा जाता है कि नव विवाहित जोड़े एक-दूसरे को आकर्षित करने और अपनी भावनाओं का इजहार करने का एक भी मौका नहीं छोड़ते. लेकिन जैसे-जैसे समय बीतने लगता है, परिवार आगे बढ़ने लगता है, वे अपने व्यक्तिगत जीवन से कहीं ज्यादा महत्व परिवार के प्रति अपने उत्तरदायित्वों को देने लगते हैं. कहीं ना कहीं इसका कारण यह माना जाता है कि निर्धारित समय और आयु के बाद महिलाओं में शारीरिक संबंधों के प्रति रुचि समाप्त हो जाती है.
लेकिन एक अमेरिकी सर्वेक्षण ने इस धारणा को निराधार प्रमाणित कर दिया है. यूनिवर्सिटी ऑफ कैलिफोर्निया द्वारा कराए गए इस सर्वेक्षण पर नजर डालें तो यह प्रमाणित हो जाता है कि उम्र का बढ़ना भले ही महिलाओं की सेहत पर प्रभाव डालता हो, लेकिन इससे शारीरिक संबंधों में उनकी रुचि पर कोई असर नहीं पड़ता. कई महिलाएं अधेड़ अवस्था तक हार्मोनल संतुलन बनाए रखने और शारीरिक संबंध स्थापित करने में सक्षम होती हैं.
शोधकर्ताओं ने पाया कि 60-89 वर्ष की आयु वर्ग की महिलाओं का मानना है कि एक अच्छी सेक्स लाइफ के बिना वैवाहिक जीवन को पूर्ण रूप से खुशहाल कहना सही नहीं है. उम्र के इस पड़ाव पर पहुंचने के बाद भी महिलाओं का मानना है कि शारीरिक संबंध ही वैवाहिक जीवन की गुणवत्ता निर्धारित करते हैं. आज भी वह उन्हें उतना ही आवश्यक मानती हैं जितना पहले मानती थीं.
लगभग एक हज़ार से अधिक महिलाओं पर किए गए इस अध्ययन ने बहुत कुछ ऐसा स्थापित किया है, जो थोड़ा अटपटा लग सकता है. अभी तक पुरुषों को ही लंबी आयु तक शारीरिक रूप से सक्रिय माना जाता था, ऐसे में यह शोध जो महिलाओं को संभोग के प्रति ज्यादा आकर्षित दर्शाता है, नि:संदेह चौकाने वाला है.
दूसरी ओर वैज्ञानिकों ने शारीरिक संबंधों के प्रति इस बढ़ती रुचि को सकारात्मक बताते हुए यह संभावना जताई है कि अगर महिलाएं लंबे समय तक खुद को शारीरिक संबंध बनाने के लिए सक्षम मानती हैं, तो वह खुद को अधिक समय तक स्वस्थ और मानसिक तौर पर मजबूत रख सकती हैं. क्योंकि मानसिक और शारीरिक तौर पर स्वस्थ व्यक्ति ही संभोग के प्रति आकर्षित होता है.
लेकिन भारतीय परिदृश्य में यह शोध थोड़ा अटपटा लगता है. क्योंकि यहां प्राय: ऐसे हालात कम ही देखने को मिलते हैं, जिसमें महिलाएं अधेड़ अवस्था पर पहुंचने के बाद भी शारीरिक संबंधों में रुचि रखती हों. भारतीय परिवेश में बुजुर्ग दंपत्ति सम्मान और आदर योग्य माने जाते हैं, जिसके कारण बुजुर्गों का भी यह उत्तरदायित्व बन जाता है कि वह अपने परिवार के प्रति अपनी जिम्मेदारियों को निभाएं. विशेषकर दादा-दादी बनने के बाद तो उनकी प्राथमिकता बच्चे ही होते हैं. वह एक-दूसरे के साथ समय बिताने से कहीं ज्यादा महत्व अपने परिवार और बच्चों को देने लगते हैं. ऐसा नहीं है कि उनके बीच का प्यार और लगाव अब समाप्त हो चुका होता है, बल्कि उम्र के इस पड़ाव पर पहुंचने के बाद, एक-दूसरे के साथ अत्याधिक समय व्यतीत करने के साथ उन दोनों के बीच आपसी समझ इस हद तक विकसित हो चुकी है कि अगर वह आपस में समय ना भी बिता पाएं, तब भी उन्हें इस बात से कोई बहुत ज्यादा अंतर नहीं पड़ता. उनका वैवाहिक जीवन और आपसी प्यार शारीरिक संबंधों पर आधारित नहीं रहता है.
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