Thursday 27 September 2012

सेक्स से शर्म कैसी

सेक्स से शर्म कैसी?

 सेक्स की चाह वैसी ही होती है, जैसी खाने पीने व जीवन की अन्य जरूरतों की। इस इच्छा को दबाने या छिपाने की जितनी कोशिश की जाती है, यह उतनी ही तीव्रता से बलवती होती है।


अक्सर लडकियां सुहागरात के बारे में सोचकर सिहर जाती हैं। वह सोचने लगती हैं कि आखिर कैसे वह सेक्स सम्बन्धों का मजा खुलकर ले पाएगी।क्योंकि इससे पहले उन्होंने कभी सेक्स सम्बन्धों के बारे में न तो खुलकर किसी से बातचीत की है और न स्वयं इस बारे में जानकारी के लिए वे पहल करती हैं। इसके विपरीत वे यह सोचकर परेशान होती हैं कि क्या वह अपने पति को पसन्द आएगी।

कहीं उसके पति को उस की देहयष्टि में कोई कमी तो महसूस नहीं होगी तो कभी वह यह सोचकर परेशान हो उठती है कि पता नहीं वह अपने पति के साथ मधुर सम्बन्ध बना भी पाएगी या नहीं।अक्सर युवतियां सेक्स को शर्म के साथ जोडकर देखती हैं जिस की वजह से सहज स्वाभाविक प्रक्रिया व आवश्यकता को लेकर कई बार उनके मन में कुंठा भी पैदा हो जाती है। सेक्स के प्रति शर्म की भावना हमारे भीतर से नहीं वरन हमारे परिवेश से उत्पन्न होती है।

यह हमारे परिवारों से आती है, हमारी सांस्कृतिक व धार्मिक परम्पराओं से आती है। सेक्स के बारे में युवक युवतियां उन चित्रों और संदेशों को देखकर सीखते हैं कि सेक्स एक सुखद अहसास है और जीवन में खुश रहने के लिए सफल सेक्स जीवन एक अनिवार्यता है तो दूसरी ओर उन संदेशों के माध्यम से सेक्स को शर्म से जोडकर देखते हैं जो यह बताते हैं कि सेक्स सम्बन्ध बनाना गलत व एक तरह का पाप है।

सैक्स के प्रति शर्म पति पत्नी के बीच दूरियों की सबसे बडी वजह है। पत्नी कभी खुले मन से पति के निकट नहीं जा पाती। फिर वे सम्बन्ध या तो मात्र औपचारिकता बनकर रह जाते हैं या मजबूरी। उनमें सन्तुष्टि का अभाव होता है। 

यह शर्म न सिर्फ औरत को यौन आनन्द से वंचित रखती है वरन् प्यार, सामीप्य व साहचार्य से भी दूर कर देती है। सेक्स का शर्म से कोई वास्ता नहीं है, क्योंकि यह न तो गन्दी क्रिया है न ही पति पत्नी के बीच वर्जित चीज।

सहज मन से अपने साथी को स्वीकार करते हुए सेक्स सम्बन्धों का आनन्द उठाएं, इससे वैवाहिक जीवन में तो मधुरता बनी ही रहेगी, साथ ही किसी तरह की कुंठा भी मन में नहीं पनपेगी। 

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