तनावग्रस्त मर्दों को पसंद है 'भरी-पूरी' महिलाएं
क्या एक तनावग्रस्त पुरुष को शारीरिक तौर पर भरे-पूरे बदन वाली महिला के साथ समय बिताने से चैन मिलता है? ब्रितानी शोधकर्ताओं द्वारा किए गए ताज़ा शोध के अनुसार जिन पुरुषों को तनाव भरे माहौल में काम करना पड़ता है, वे निजी जीवन में भरे-पूरे बदन वाली महिलाओं की ओर ज़्यादा आकर्षित होते हैं।
इन शोधकर्ताओं के मुताबिक जिन मर्दों को ज्यादा तनाव भरे माहौल में और काफी मेहनत वाला काम करना पड़ता था महिलाओं के मामले में उनकी रुचि कई वर्गों में बंट जाती है। इस शोध के निष्कर्ष के मुताबिक, हमारे जीवन में हम किसे अपना साथी चुनते हैं, ये काफी हद तक हमारे जीवन में व्याप्त 'तनाव' से प्रभावित होता है। न्यू कासल यूनिवर्सिटी में काम कर रहे और इस शोधपत्र के सह लेखक डॉ मार्टिन टोवी ने बीबीसी को बताया, ''पहले भी इस तरह की कई सामग्री लिखी गई है जिसमें ये कहा गया है कि हमारे शरीर की बीएमआई या 'बॉडी-मास-इंडेक्स' का स्वभाव हर स्थिति में एक समान रहता है लेकिन ये सही नहीं है। ''
डॉक्टर टोवी और उनके साथी डॉक्टर वीरेन स्वामी ने इससे पहले भी एक शोध कर ये पता लगाने की कोशिश की थी कि किन चीज़ों से हमारे 'बीएमआई' यानि 'बॉडी मास इंडेक्स' की पसंद प्रभावित होती है।
इसमें भूख और मीडिया के प्रभाव को शामिल किया गया था।
लेकिन अपने इस ताज़ा शोध में इन शोधकर्ताओं ने ये पता लगाने की कोशिश की है कि, क्या विभिन्न सांस्कृतिक परिवेशों में पाए जाने वाले शारीरिक ढांचे के फर्क का असर तात्कालिक या थोड़े समय के लिए होने वाले तनाव पर भी पड़ता है।
डॉक्टर टोवी के अनुसार, ''अगर आप वैसे माहौल पर ध्यान देंगे जहां भोजन की कमी है तो पाएंगे कि वहां के लोगों की पसंद ज्यादा लंबी-चौड़ी और भरे बदन वाली महिलाएं होती हैं, बनिस्बत उन जगहों के जहां खाना आसानी से उपलब्ध होता है। '
टोवी के अनुसार, ''अगर आप ज्यादा कठिन, तनावग्रस्त और मुश्किल हालात में जीने के आदी हैं तो आपको दूसरों की तुलना में ज्यादा तनाव होगा। ''
इसे बारीकी से समझने के लिए ज्यादा तनाव भरी जीवन शैली जीने वाले पुरुषों को एक साक्षात्कार और सार्वजनिक मंच से बोलने के लिए आमंत्रित किया और वहां उनके 'बीएमआई' पसंद की तुलना उन पुरुषों के 'बीएमआई' पसंद से की गई जिनके जीवन में तनाव काफी कम है। ''
इस जांच के निष्कर्ष में ये पाया गया कि हमारे पारिवेशिक हालात का असर कहीं ना कहीं औरतों के संबंध में हमारी पसंद को प्रभावित करता है और ज्यादातर पुरुषों का झुकाव ऐसे हालात में भरे-पूरे बदन वाली महिलाओं की तरफ होता है।
लचीला रुख़
हालांकि डॉक्टर टोवी के मुताबिक,''विभिन्न सांस्कृतिक पारिवेशिक माहौल में पाए जाने वाले बदलावों की तुलना में ये बदलाव काफी छोटे हैं लेकिन इससे ये ज़रूर पता चलता है कि दूसरे तत्वों के साथ मिलकर ये बड़ा बदलाव ला सकते हैं। ''इस शोध में पूर्व में किए कार्यों का भी उल्लेख किया गया है, जिसमें ये बताया गया था कि हमारे मन में सुंदरता का जो बोध उत्पन्न होता है उसमें हमारी आर्थिक और दैहिक थकान का काफी महत्व होता है।
महिलाएं
एक खूबसूरत या आकर्षिक महिला कौन हो सकती है- उसकी परिभाषा हमारे हालात के अनुसार बदलती रहती है।
डॉक्टर टोवी के अनुसार, ''अगर आप किसी अभावग्रस्त इलाके से संपन्न इलाके में जाकर रहने वाले लोगों का अनुसरण करेंगे तो पाएंगे कि 18 महीनों के भीतर ऐसे लोगों की पसंद और नापसंद में बदलाव आ जाता है। अगर आसान मनोवैज्ञानिक भाषा में इसे समझना चाहें तो इसका सीधा मतलब ये है कि हम अपनी पसंद और नापसंद को अपने वातावरण के अनुकूल ढालने की कोशिश करते हैं। ''
इस शोध की सबसे खास बात ये थी कि, ''शोधकर्ता इस बात पर बार-बार ज़ोर देते हुए देखे गए कि कैसे हमारे परिवेश और माहौल का असर, एक आदर्श 'बॉडी साइज़' की लोकप्रिय परिभाषा को बदल सकता है। डॉक्टर टोवी का कहना है, ''आदर्श स्थिति क्या है इसको लेकर हमारी सोच लगातार बदलती रहती है।
यहां सबसे ज्यादा तरजीह हमारे रुख़ और सोच के लचीलेपन को दी जाती है। हमारी जीवन शैली से लेकर, मीडिया की उपलब्धता तक, इन सभी चीज़ों का असर एक आदर्श और आकर्षक शरीर की हमारी परिभाषा को बदल सकता है। ''
क्या एक तनावग्रस्त पुरुष को शारीरिक तौर पर भरे-पूरे बदन वाली महिला के साथ समय बिताने से चैन मिलता है? ब्रितानी शोधकर्ताओं द्वारा किए गए ताज़ा शोध के अनुसार जिन पुरुषों को तनाव भरे माहौल में काम करना पड़ता है, वे निजी जीवन में भरे-पूरे बदन वाली महिलाओं की ओर ज़्यादा आकर्षित होते हैं।
इन शोधकर्ताओं के मुताबिक जिन मर्दों को ज्यादा तनाव भरे माहौल में और काफी मेहनत वाला काम करना पड़ता था महिलाओं के मामले में उनकी रुचि कई वर्गों में बंट जाती है। इस शोध के निष्कर्ष के मुताबिक, हमारे जीवन में हम किसे अपना साथी चुनते हैं, ये काफी हद तक हमारे जीवन में व्याप्त 'तनाव' से प्रभावित होता है। न्यू कासल यूनिवर्सिटी में काम कर रहे और इस शोधपत्र के सह लेखक डॉ मार्टिन टोवी ने बीबीसी को बताया, ''पहले भी इस तरह की कई सामग्री लिखी गई है जिसमें ये कहा गया है कि हमारे शरीर की बीएमआई या 'बॉडी-मास-इंडेक्स' का स्वभाव हर स्थिति में एक समान रहता है लेकिन ये सही नहीं है। ''
डॉक्टर टोवी और उनके साथी डॉक्टर वीरेन स्वामी ने इससे पहले भी एक शोध कर ये पता लगाने की कोशिश की थी कि किन चीज़ों से हमारे 'बीएमआई' यानि 'बॉडी मास इंडेक्स' की पसंद प्रभावित होती है।
इसमें भूख और मीडिया के प्रभाव को शामिल किया गया था।
लेकिन अपने इस ताज़ा शोध में इन शोधकर्ताओं ने ये पता लगाने की कोशिश की है कि, क्या विभिन्न सांस्कृतिक परिवेशों में पाए जाने वाले शारीरिक ढांचे के फर्क का असर तात्कालिक या थोड़े समय के लिए होने वाले तनाव पर भी पड़ता है।
डॉक्टर टोवी के अनुसार, ''अगर आप वैसे माहौल पर ध्यान देंगे जहां भोजन की कमी है तो पाएंगे कि वहां के लोगों की पसंद ज्यादा लंबी-चौड़ी और भरे बदन वाली महिलाएं होती हैं, बनिस्बत उन जगहों के जहां खाना आसानी से उपलब्ध होता है। '
टोवी के अनुसार, ''अगर आप ज्यादा कठिन, तनावग्रस्त और मुश्किल हालात में जीने के आदी हैं तो आपको दूसरों की तुलना में ज्यादा तनाव होगा। ''
इसे बारीकी से समझने के लिए ज्यादा तनाव भरी जीवन शैली जीने वाले पुरुषों को एक साक्षात्कार और सार्वजनिक मंच से बोलने के लिए आमंत्रित किया और वहां उनके 'बीएमआई' पसंद की तुलना उन पुरुषों के 'बीएमआई' पसंद से की गई जिनके जीवन में तनाव काफी कम है। ''
इस जांच के निष्कर्ष में ये पाया गया कि हमारे पारिवेशिक हालात का असर कहीं ना कहीं औरतों के संबंध में हमारी पसंद को प्रभावित करता है और ज्यादातर पुरुषों का झुकाव ऐसे हालात में भरे-पूरे बदन वाली महिलाओं की तरफ होता है।
लचीला रुख़
हालांकि डॉक्टर टोवी के मुताबिक,''विभिन्न सांस्कृतिक पारिवेशिक माहौल में पाए जाने वाले बदलावों की तुलना में ये बदलाव काफी छोटे हैं लेकिन इससे ये ज़रूर पता चलता है कि दूसरे तत्वों के साथ मिलकर ये बड़ा बदलाव ला सकते हैं। ''इस शोध में पूर्व में किए कार्यों का भी उल्लेख किया गया है, जिसमें ये बताया गया था कि हमारे मन में सुंदरता का जो बोध उत्पन्न होता है उसमें हमारी आर्थिक और दैहिक थकान का काफी महत्व होता है।
महिलाएं
एक खूबसूरत या आकर्षिक महिला कौन हो सकती है- उसकी परिभाषा हमारे हालात के अनुसार बदलती रहती है।
डॉक्टर टोवी के अनुसार, ''अगर आप किसी अभावग्रस्त इलाके से संपन्न इलाके में जाकर रहने वाले लोगों का अनुसरण करेंगे तो पाएंगे कि 18 महीनों के भीतर ऐसे लोगों की पसंद और नापसंद में बदलाव आ जाता है। अगर आसान मनोवैज्ञानिक भाषा में इसे समझना चाहें तो इसका सीधा मतलब ये है कि हम अपनी पसंद और नापसंद को अपने वातावरण के अनुकूल ढालने की कोशिश करते हैं। ''
इस शोध की सबसे खास बात ये थी कि, ''शोधकर्ता इस बात पर बार-बार ज़ोर देते हुए देखे गए कि कैसे हमारे परिवेश और माहौल का असर, एक आदर्श 'बॉडी साइज़' की लोकप्रिय परिभाषा को बदल सकता है। डॉक्टर टोवी का कहना है, ''आदर्श स्थिति क्या है इसको लेकर हमारी सोच लगातार बदलती रहती है।
यहां सबसे ज्यादा तरजीह हमारे रुख़ और सोच के लचीलेपन को दी जाती है। हमारी जीवन शैली से लेकर, मीडिया की उपलब्धता तक, इन सभी चीज़ों का असर एक आदर्श और आकर्षक शरीर की हमारी परिभाषा को बदल सकता है। ''
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