Wednesday 19 December 2012

कामसूत्र और प्रेम

कामसूत्र और प्रेम 

कामसूत्र  एवं उसके बाद के कई कामशास्‍त्रों ने प्रेम के चार भेद बताए हैं। वैसे सच तो यह है कि प्रेम, प्रेम होता है इसका क्‍या भेद? लेकिन भारत के प्राचीन काल में काम को एक कला के रूप में विकसित करने पर जोर दिया गया है, इससे प्रेमी-प्रेमिका या पति-पत्‍नी के जीवन में नीरसता उत्‍पन्‍न नहीं हो पाती और उनके जीवन में प्रेम रस हमेशा घुलता रहता है।
कामसूत्र (kamasutra) सभी लगभग सभी कामशास्‍त्रों ने प्रेम को चार भागों में बांटने की कोशिश की हैा यहां प्रेम के उस स्‍वरूप को आधुनिक परिप्रेक्ष्‍य में समझाने की कोशिश की गई है। अंत:क्रिया, अभिमान, स्‍वीकृति और अनुभव के रूप में प्रेम को आज के हिसाब से समझाया गया है ताकि प्रेमी-प्रेमिका का प्रेम रस सभी सूख न पाए। 

 * अंत:क्रिया:हर प्रेम संबंध आपसी अंत:क्रिया यानी एक-दूसरे के संपर्क में आने, बार-बार मिलने-जुलने और अधिक समय तक साथ बिताने से उत्‍पन्‍न होता है। कामशास्‍त्रियों का मत है कि स्‍त्री पुरुष जितना अधिक से अधिक वक्‍त एक साथ गुजारेंगे, उनके बीच प्रेम उतना ही प्रगाढ़ होगा। 

शादी से पूर्व: शादी से पहले प्रेमी-प्रेमिका  घूमने-फिरने, साथ पढ़ने, पुस्‍तकालय में समय बिताने, आधुनिक समय में शॉपिंग करने व सिनेमा देखने में अधिक से अधिक वक्‍त बिता सकते हैं। पार्क, रेस्‍तरां, सिनेमा हॉल, शॉपिंग मॉल जैसे जगह अधिक समय तक साथ रहने के लिए प्रेमियों के लिए मुफीद जगह है।
शादी के बाद: अरेंज मैरेज में दो अनजान लोग मिलते हैं जबकि प्रेम विवाह में पूर्व के प्रेमी-प्रेमिका शादी के बंधन में बंधते हैं। शादी से पहले जहां दोनों मिलने के लिए रोज-रोज नए रास्‍ते तलाशते रहते हैं, वहीं शादी के शुरुआत में तो यह चलता रहता है, लेकिन ज्‍यों-ज्‍यों समय बीतता जाता है दोनों घर-गृहस्‍थी, बच्‍चे और काम की वजह से एक-दूसरे को कम वक्‍त देते हैं, जिससे रिश्‍तों की मिठास समाप्‍त होती चली जाती है।
यही वजह है कि अधिकांश जोड़े देखने से ही दुखी लगते हैं, उनमें आनंद का भाव ही नहीं दिखता है। शादी के बाद भी घर के अंदर खाना बनाने, साथ टीवी देखने, डीवीडी पर सिनेमा देखने, बच्‍चों को साथ स्‍कूल छोड़ने, साथ चाय पीने, खाना खाने, घरेलू कामों में एक-दूसरे की मदद करने जैसे कामों के जरिए हर वक्‍त नजदीकी के अहसास से भरे रह सकते हैं।
छुट्टी के दिनों में साथ में लूडो, शतरंज, कैरम, बैडमिंटन जैसे खेल भी खेला जा सकता है, बाहर घूमने, शॉपिंग या सिनेमा के लिए भी जाया जा सकता हैा कम से कम साल में एक बार छुट्टियों पर जाने का प्रोग्राम तो जरूर बनाएं ताकि दांपत्‍य में भी अंत:क्रिया की डोर टूटने न पाएा

* अभिमान:प्रेमियों को प्रेमिकाओं को इतना प्‍यार देना चाहिए कि उसमें एक मीठा अभिमान जाग जाए। अर्थात प्रेमी या पतियों को चाहिए कि वह हमेशा प्रेमिका या पत्‍नी की तारीफ करे, उनकी हर अच्‍छी बात पर उन्‍हें चूमे, उन्‍हें आलिंगन में बांध ले। चुंबन माथे से लेकर पैर तक कहीं भी लिया जा सकता है। मान लीजिए स्‍त्री ने पैर की अंगुलियों के नाखुन पर नेल पॉलिस लगाया है और वह पुरुष को अच्‍छा लग रहा है तो  उसे अपना अभिमान छोड़ प्रेमिका के पैर को चूमने के लिए झुक जाना चाहिए। इससे प्रेमिका में गर्व का अहसास होता है और वह हमेशा  प्रेमी के लिए कुछ न कुछ नया करने की कोशिश करती, जिससे दोनों के जीवन में प्रेम का रस हमेशा घुलता रहता है।
अभिमान का एक ही सूत्र है, पुरुष प्रेम में अपना अमिभान त्‍याग दे और अपने प्रेम से स्‍त्री में मीठा अभिमान भर देा उसे लगे कि उससे अधिक उसका साथी किसी को प्‍यार नहीं करता, उसे लगे कि वह इस धरती पर सबसे अधिक प्‍यार पाने वाली खुशनसीब है। लेकिन जिस दिन स्‍त्री के प्रेम पूर्ण अभिमान पर अहंकार या महत्‍वकांक्षा हावी हो जाएगी और पुरुष साथी को वह दोयक दर्जे का मानने लगेगी, उसी दिन प्रेम के घर में आग लगना तय है। पुरुष द्वारा भी स्‍त्री की उपेक्षा प्रेम में कलह का घर बन जाएगा।
* स्‍वीकृति:एक-दूसरे की खूबियों को नही नहीं, बल्कि खामियों को भी स्‍वीकार करना, प्रेम को स्‍थायित्‍व प्रदान करता है। दोनों की आत्‍मा यह स्‍वीकार करे कि दोनों एक-दूजे के बगैर अधूरे हैं। एक समय बाद लगने लगे कि दोनों का साथ कभी न छूटे, जन्‍म-जन्‍म तक दोनों एक-दूसरे को जीवनसाथी के रूप में पाएं, तो समझ लें कि यही 'अमर प्रेम' है।
अमर प्रेम बिछुड़ने से नहीं, बल्कि 24 घंटे साथ रहते हुए एक-दूसरे का सुख-दुख बांटने से पैदा होता है। लैला-मजनू, सीरी-फरहाद, रोमियो-जूलियट हमें सिर्फ इसलिए याद हैं कि वे बिछुड़ गए, लेकिन सोचिए लैला को मजनू के बच्‍चे की मां बनना पड़ता और घर-गृहस्‍थी संभालनी पड़ती को क्‍या आज आप उसे याद करते। वास्‍तव में खोना हमारे मानस में इस कदर भर चुका है कि 'पाने' को हम दोयम दर्जे का मान बैठे हैं। स्‍वीकृति एक-दूसरे को पूरी तरह से जानने, समझने और स्‍वीकार करने की श्रेणी है। 

* अनुभव:ऊपर के सभी रूप स्‍त्री पुरुष को अनुभवशील बनाते हैं। जान-पहचान, प्रेम, चुंबन, आलिंगन, संभोग, सभी अनुभव को समृद्ध करते हैं और यही प्रेम की प्रगाढ़ता को बढ़ाते हैं। अधिकांश स्‍त्री पुरुष एक सेक्‍सुअल एक्‍ट मानकर प्रेम, चुंबन, आलिंगन और संभोग से गुजरते हैं, जिस कारण सेक्‍स हमेशा उनके प्रेम पर हावी रहता है।
सिर्फ sex के नजरिए से हासिल अनुभव स्‍त्री पुरुष को हमेशा नाजायज संबंधों की ओर दौड़ाए रहता है, कभी एक संबंध स्‍थाई नहीं हो पाता। आपसी संबंध में हमेशा खिन्‍नता, अविश्‍वास और फंस जाने का भाव उत्‍पन्‍न होता रहता है। लेकिन जिन स्‍त्री पुरुषों के बीच सेक्‍स भी प्रेम के वशीभूत घटता है, उनके लिए सेक्‍स गौण होता चला जाता है और प्रेम स्‍थाई भाव में आ जाता है। Love को स्‍थाई या अस्‍थाई बनाना प्रेमी जोड़ों पर निर्भर करता हैा

 

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