Saturday 22 December 2012

स्त्रियां कैसे करें संभोग में पहल

स्त्रियां कैसे करें संभोग में पहल 

कामशास्‍त्रियों का मत है कि संभोग के समय नारी को निश्‍चेष्‍ट पड़े रहने की अपेक्षा उन्‍हें भी समान रूप से इसमें हिस्‍सा लेना चाहिए। जब नारी के शरीर में वासना जगती हो तो वह अपने पुरुष साथी से प्रेम की शुरुआत करे न कि प्रमी द्वारा इसके शुरु होने की अपेक्षा करे।


पति-पत्‍नी दोनों के बीच प्रेम में जब खुलापन आ जाता है तो उनके रिश्‍ते और मजबूत ही होते हैं, लेकिन जब इनमें दुराव-छिपाव, संशय या संकोच होता है तो दोनों के बीच रिश्‍तों में गांठ आ सकती है। ऐसे रिश्‍तों में ही अविश्‍वास पनपता है। इसलिए अच्‍छा यह है कि दोनों में से जिसकी भी इच्‍छा प्रेम में पहल की हो, वो इसकी शुरुआत करे। आपसी प्रेम में संकोच और दूसरे से पहल की अपेक्षा रिश्‍तों को दीमक की तरह चाटने लगता है जो तनाव, कुंठा, मनमुटाव और दुराव के रूप में सामने आता है।


आचार्यों के अनुसार, जब वासना उफान पर होता है तो संभोग के क्षण में आलिंगन, चुंबन, नखक्षत, दंतक्षत, प्रहार, सीत्‍कार आदि का कोई क्रम निर्धारित नहीं होता, बल्कि वहां केवल आनंद प्रधान हो जाता है। संभोग के क्षण में नारी को भी खुलकर पुरुष के साथ दंतक्षत, नखक्षत, चुंबन और विपरीत रति का प्रयोग करना चाहिए।

आचार्य वात्‍स्‍यायन के अनुसार, यदि नारी की वासना बेहद प्रबल हो उठी हो तो उसे चाहिए कि वह एक हाथ से पुरुष के बाल पकड़ कर, दूसरे हाथ से उसकी ठोड़ी को थाम ले और पुरुक्ष का मुख ऊपर उठा ले। उसके बाद वह उसके अधरों का पान करती रहे। 

अधरों के चुंबन और उसे चूसने से शराब की तरह नशा होता है और इसकी मदहोशी का आलम यह होता है कि प्रेमी जन इस दौरान अपना सुध-बुध पूरी तरह से खो देते हैं। अधरपान के साथ-साथ नारी पुरुष से लिपटती चली जाए जैसे वह उसके शरीर में समा जाना चाहती हो और धीरे-धीरे अपने हाथ को ढीला करते हुए अपने नाखुन पुरुष की पीठ में गड़ाती चली जाए। 

प्रेम की पीड़ा में बेसुध हुई प्रेयसी एक हाथ उसके गले में डालकर, दूसरे को उसकी ठोड़ी पर लगाए और उसका मुख ऊपर उठाकर उसके होंठों को अपने दांतों के बीच भींच ले और उस पर दंत प्रहार करे। वह उसकी जिहवा को अपने मुख में भर ले और अपनी जिहवा को उसके मुख के अंदर तक ले जाए। जिहवा के चूसने का सुख ही अलग है। बीच में छेड़छाड़ करती हुई अपनी जिहवा से उसकी जिहवा पर प्रहार करे। 

प्रेम के क्षण बाद में यादगार बन जाते हैं। परिजन के बीच बैठे हुए भी जब पति-पत्‍नी को अपने इस प्रेम की याद आती है तो दोनों इशारों-इशारों में लोगों के बीच ही बातें शुरू कर देते हैं। उस वक्‍त नारी सबकुछ अपनी आंखों की चपलता और अधरों की मुस्‍कुराहट से कह देती है और उनके बीच फिर से प्रेम की तीव्र उत्‍कंठा जाग जाती है। इस तरह के प्रेम से दांपत्‍य जीवन हमेशा खिला-खिला रहता है। ऐसे प्रेम शादीशुदा जीवन में एकरुपता और नीरसता उत्‍पन्‍न नहीं होने देते, जिससे एक सुखी परिवार का निर्माण होता है।

 

Friday 21 December 2012

स्‍त्री कामोत्‍तेजना का केंद्र क्‍लाइटोरिस

स्‍त्री कामोत्‍तेजना का केंद्र क्‍लाइटोरिस

नाभि ओर से स्‍त्री के जननांग की ओर बढ़ने पर पहले बृहद भगोष्‍ठ अर्थात आउटर लिप्‍स (Labia majora) के मिलने का बिंदु आता है। इस मिलन बिंदु पर एक अंकुर जैसा उभार होता है। इस उभार को अंग्रेजी में क्‍लाइटोरिस (Cliotoris) और हिंदी में भगांकुर/भगनासा/ भगशिश्‍न कहते हैं।


किसी स्‍त्री के लिए चर्मोत्‍कर्ष बिंदु तो किसी को इसका टच भी पसंद नहीं
सेक्‍स विशेषज्ञों के अनुसार, पुरुष के लिंग के समान है स्‍त्री उत्‍तेजना का केंद्र क्‍लाइटोरिस है। इसीलिए इसे भगशिश्‍न कहते हैं। वास्‍तव में इसकी संरचना पुरुष के लिंग के समान ही है और उसी की तरह उत्‍तेजक और संवेदनशील भी। 


कई स्त्रियां इसके सहलाने, दुलारने या जीभ से हुए छेड़छाड़ को बहुत अधिक पसंद करती हैं और योनि में पुरुष लिंग के प्रवेश के बिना ही संभोग के चरम आनंद को प्राप्‍त कर लेती हैं। वहीं कई स्त्रियों को इसे छूआ जाना भी पसंद नहीं होता और वह इसकी संवेदनशीलता को बर्दाश्‍त ही नहीं कर पाती हैं।
समलैंगिक स्त्रियों के काम का प्रमुख केंद्र है भगशिश्‍न 
विश्‍व प्रसिद्ध कृति द सेकेंड सेक्‍स की लेखिका व प्रमुख नारीवादी सीमोन द बोउआर लिखती हैं कि स्त्रियां प्राय: शरीर रचना के आधार पर Clitoridis और Vaginal होती हैं। क्‍लाइटोरिडस अर्थात भगशिश्‍न से सेक्‍स सुख प्राप्‍त करने वाली स्त्रियां सजातीय कामुकता अर्थात समलैंगिक या लेस्बियन स्‍वभाव की होती है। ऐसी स्त्रियां हस्‍तमैथुन कर क्‍लाइटोरिस को सहलाती और घर्षण करती हैं और खुद ही आर्गेज्‍म हासिल कर लेती है।


लेस्बियन रिलेशनसिप में पड़ी स्त्रियां एक-दूसरे के क्‍लाइटोरिस को सहलाने, चूमने और चाटकर एक-दूसरे को सुख पहुंचाती हैं। इसकी उत्‍तेजना से उत्‍पन्‍न सुख की मादकता समलैंगिक स्त्रियों को पुरुषों की कमी का अहसास नहीं होने देता है। ऐसी स्त्रियां पुरुषों के साथ संबंध में भी चाहती हैं कि उनका पुरुष साथी उनके भगशिश्‍न का घर्षण व मर्दन करे, सहलाए और मुख मैथुन के दौरान जीभ के उपयोग से उसे चरम आनंद तक पहुंचाए।

पुरुष लिंग के समान ही है स्‍त्री का क्‍लाइटोरिस
पुरुष लिंग के समान ही स्‍त्री के भगांकुर में भी दंड जैसी लंबाई होती है, जो अंदर प्‍यूबिस बोन अर्थात नितंबास्थि से जुड़ी होती है। इसमें दो दंड होते हैं और ये दोनों दंड प्‍यूबिस बोन से निकल कर जहां मिलते हैं, उसी बिंदु पर भगांकुर स्थित होता है।


जैसे पुरुष शिश्‍न एक त्‍वचा या खाल से ढंका होता है, उसी तरह भगांकुर के ऊपर भी त्‍वचा होती है, जिसे आगे-पीछे हटाया जा सकता है। पुरुष लिंग व भगांकुर में मूल रूप से दो अंतर होता है-  * यह पुरुष लिंग से बेहद छोटा होता है। * इसमें कोई छिद्र नहीं होता, जबकि पुरुष लिंग में वीर्य व पेशाब के स्राव के लिए छिद्र होता है। 
भगांकुर या क्‍लाइटोरिस में मुख्‍य रूप से तीन हिस्‍से होते हैं:

* भगांकुर दंड- यह पुरुष लिंग के समान ही दंड होता है, जिसकी लंबाई एक से दो सेंटीमीटर तक होती है।
* भगांकुर मुंड- पुरुष लिंग मुंड की ही तरह यह बेहद संवेदनशील नसों से भरा होता है, जिसे जगाकर स्‍त्री को उत्‍तेजित किया जा सकता है।
* भगांकुर त्‍वचा- पुरुष लिंग मुंड के ऊपर-नीचे जिस तरह से त्‍वचा को सरकाया जा सकता है उसी तरह भगांकुर त्‍वचा को भी सरकाया जा सकता है।

भगांकुर में भी पुरुष शिश्‍न की तरह आता है तनाव
कामोत्‍तेजित स्‍त्री का भगांकुर ठीक उसी तरह कड़ा या तन जाता है, जैसे उत्‍तेजित पुरुष का लिंग तन जाता है। चूंकि भगांकुर का आकार इतना छोटा होता है कि स्‍त्री को इसके घर्षण से ही वास्‍तविक सुख मिलता है। उत्‍तेजित होते ही भगांकुर पीछे की ओर खिसक जाता है और भगांकुर मुड उसे ढंकने वाली त्‍वचा के आवरण में पूरी तरह से ढंक जाता है, जिससे कई बार इसका पता ही नहीं चलता है। 


इस कारण इसका आकार 50 प्रतीशत तक घट जाता हैा उत्‍तेजना के समाप्‍त होने पर यह फिर से मूल रूप में वापस लौट आता है। यही कारण है कि उत्‍तेजित भगांकुर का पुरुष के शिश्‍न मुंड से कभी संपर्क नहीं हो पाता। पुरुष संभोग के कितने ही आसन को आजमा ले, लेकिन वह अपने शिश्‍न मुंड का घर्षण भगांकुर मुंड से नहीं करा पाता हैा
हस्‍तमैथुन और मुख मैथुन ही वह उपाय है, जिससे स्‍त्री भगांकुर से उत्‍पन्‍न यौन आनंद को प्राप्‍त हो पाती है। यौन उत्‍तेजना शांत होने पर पुरुष लिंग के समान भगांकुर भी ढीला पड़ जाता है।
स्‍त्री का काम उसके पूरे शरीर में बिखरा है
The second sex की लेखिका व प्रमुख नारीवादी सीमोन द बोउआर लिखती हैं कि स्‍त्री में प्रेम और काम भावना का विकास एक मानसिक क्रिया है, जो शारीकिर तत्‍वों से प्रभावित होती हैं। स्त्रियां शरीर रचना के आधार पर Clitoridis और Vaginal होती हैं इसलिए उनमें कामुकता अर्धविकसित अवस्‍था में रहता है।

दरअसल स्‍त्री की कामोत्‍तेजना को सिर्फ भगांकुर के संवेदनशील होने या योनि पथ के गीला होने से ही नहीं समझा जा सकता है, बल्कि उसके पूरे शरीर में काम बिखरा होता है। उसे भगांकुर के ठीक ऊपरी हिस्‍से (माक्‍स प्‍यूबिस) के घर्षण व मर्दन, स्‍तन मर्दन, Yoni की इनर लोबिया या लघु भगोष्‍ठ के घर्षण और शरीर के अन्‍य हिस्‍से जैसे होंठ, जांघ, पीठ, नितंब, पेट आदि पर चुंबन व सहलाने से सच्‍चा व संपूर्ण सेक्‍स सुख मिलता है।
इसीलिए कहा गया है कि पुरुष का काम जहां केवल उसके शिश्‍न तक केंद्रित है। वीर्यपतन के पश्‍चात पुरुष अशांति व परेशान करने वाले स्रोतों से मुक्‍त हो जाता है मानो उसे पूर्ण शांति मिली हो। 

 वहीं स्‍त्री का काम उसके पूरे शरीर में बिखरा होता है। इसे जगाना और जागने पर इसे शांत करना, दोनों की मुश्किल होता है। स्‍त्री की जटिल काम संरचना के कारण ही भारतीय कामशास्‍त्र में कहा गया है कि पुरुष की अपेक्षा स्‍त्री में सेक्‍स यानी काम आठ गुणा अधिक होता है।
काम भावना के जागृत होते ही पुरुष के जननांग में कठोरता आ जाती है, किंतु स्‍त्री का अंग पसीज जाता
सिमोन द बोउवार लिखती हैं कि काम भावना के जागृत होते ही पुरुष के जननांग में कठोरता आ जाती है, किंतु स्‍त्री का अंग पसीज जाता है। यह ध्‍यान देने योग्‍य बात है कि पुरुष लिंग जब तक तनेगा नहीं तब तक पुरुष संभोग करने में असमर्थ होता है। बिना शिश्‍न के तने वह न तो सेक्‍स कर सकता है, न उसका वीर्यस्राव होगा और न ही वह प्रजनन में ही समर्थ होगा अर्थात वह स्‍त्री को गर्भवती भी नहीं कर सकता है।
वहीं स्‍त्री योनि और भगशिश्‍न के अलग-अलग होने के कारण बिना यौन उत्‍तेजना के भी  संभोग में हिस्‍सा ले सकती है, गर्भवती होती है और मां भी बनती है। 

बहुत सारी स्त्रियां निरंतर संभोग में हिस्‍सा लेती हैं, गर्भधारण भी करती हैं और मां भी बन जाती हैं, लेकिन उन्‍हें सेक्‍स का वास्‍तविक आनंद या आर्गेज्‍म की प्राप्ति शायद कभी नहीं हो पाती। कुदरत ने स्‍त्री के काम केंद्र और प्रसव केंद्र को अलग-अलग रखा है। एक तो ज्ञान के अभाव में, दूसरा काम को दबाने की लंबी शिक्षा के कारण और तीसरा पुरुष केंद्रित संभोग के कारण बड़ी संख्‍या में स्‍त्री आजीवन काम के चरम आनंद से वंचित होकर रह जाती है।
कामसूत्र: पश्चिम के सेक्‍स विशेषज्ञ एडवर्ड डेंग्रोव का कहना है कि स्‍त्री के कामोत्‍तेजित होने पर उसका योनि पथ जिस शीघ्रता से गीला हो जाता है, उस शीघ्रता से क्‍लाइटोरिस उत्‍तेजित नहीं होता है। क्‍लाइटोरिस को उत्‍तेजित होने में समय लगता है। 


मास्‍टर्स एवं जानसन का कहना है कि यौन उत्‍तेजना के पांच से 15 सेकेंड के अंदर स्‍त्री की योनि से तरल का स्राव हो जाता है जो योनि पथ को गीला कर देता है। लेकिन भगांकुर की उत्‍तेजना को समझने का ऐसा कोई पैमाना नहीं है, इस कारण अधिकांश स्‍त्री-पुरुष इससे अनभिज्ञ ही होते हैं। पूरे काम जीवन में कई दंपत्तियों को तो यह पता भी नहीं चलता कि काम जीवन के एक प्रमुख केंद्र से वो अनभिज्ञ रह गए हैं। 

 

Wednesday 19 December 2012

विभिन्‍न प्रदेशों की नारियां और उनका यौन जीवन

विभिन्‍न प्रदेशों की नारियां और उनका यौन जीवन

आचार्य वात्‍स्‍यायन ने कामसूत्र में विभिन्‍न प्रदेशों की नारियों के यौन जीवन और व्‍यवहार की चर्चा की है ताकि पुरुष जब स्‍त्री को प्रेम करे तो उसे यह पहले से पता हो कि वह जिस स्‍त्री से प्रेम कर रहा है उसे प्रेम में आखिर क्‍या पसंद है। इससे प्रेम का माधुर्य बढ़ जाता है। प्रेम और संभोग में एक-दूसरे की पसंद का ख्‍याल रखने वाले प्रेमी-प्रेमिका या पति-पत्‍नी एक-दूसरे का न केवल होकर रह जाते हैं, बल्कि एक-दूसरे का बेहद सम्‍मान भी करते हैं।  

 

वात्‍स्‍यायन लिखते हैं, पुरुष को आलिंगन, चुंबन, नखक्षत और दंतक्षत करते समय हमेशा यह विचार कर लेना चाहिए कि उसकी प्रेयसी किस प्रांत की है। उस प्रांत में प्रेम के लिए जैसा व्‍यवहार प्रचलित हो वैसा ही व्‍यवहार पुरुष को करना चाहिए। यही बात नारी को भी अपने पुरुष प्रेमी के बारे में पता होनी चाहिए ताकि दोनों के बीच प्रेम की प्रगाढ़ता बनी रहे।
आधुनिक मनोविज्ञान भी मानता है कि स्‍त्री पुरुष जब सेक्‍स में एक-दूसरे की भावनाओं व इच्‍छाओं का पूरा ख्‍याल रखते हैं तो किसी भी तरह की मानसिक परेशानियां उनके दांपत्‍य जीवन में नहीं आती है। पति द्वारा पत्नियों के व्‍यवहार के विपरीत शारीरिक संबंध बनाने, उनके साथ जबरदस्‍ती करने, उनकी इच्‍छाओं को न समझने, उन्‍हें अतृप्‍त रखने और उन पर अपने विचार थोपने के कारण ही पत्नियां अक्‍सर साफ-सफाई, धर्म आदि की ओर मुड़ जाती हैं। दांपत्‍य जीवन से उनका मोह भंग हो जाता है और वह उससे जुड़ी भी रहती हैं तो केवल संतान के कारण। 
 वर्तमान में तलाक दर में वृद्वि का बड़ा कारण भी यही है। इसलिए आचार्य वात्‍स्‍यायन के इस विश्‍लेषण की प्रासंगिकता आज भी उतनी ही है, जिनकी की आदि काल में थी।

* हिमालय और विंध्‍य पर्वत के बीच के भाग की नारियां संभोग में पवित्र आचार वाली होती है। उन्‍हें चुंबन, नखक्षत और दंतक्षत से घृणा करती हैं।

* हिमालय की तलहटी एवं उसके आसपास के प्रदेशों की नारियों को संभोग में नयापन पसंद होता है, लेकिन चुंबन, नखक्षत व दंतक्षत को वह पसंद नहीं करती हैं। 

* मालव व आभीर प्रदेश की नारियां आलिंगन, चुंबन, नखक्षत और दंतक्षत को तो पसंद करती हैं, लेकिन अपने शरीर पर किसी भी तरह का निशान नहीं चाहती हैं। इस प्रदेश की नारियां मुख मैथुन को बहुत अधिक पसंद करती हैं। वह मुख मैथुन के बाद चाहती हैं कि पुरुष साथी अपने लिंग से उनकी योनि पर प्रहार करे और ऐसा करने से ये शीघ्र उत्‍तेजित हो जाती हैं। 

* सिंध व पंजाब की नारियां बहुत अधिक वासनामयी होती हैं। ये चाहती हैं कि उनका पुरुष साथी सीधे संभोग न कर उनके साथ पहले मुख मैथुन करें। इन्‍हें अपनी योनि से छेड़छाड़, उसमें जिहवा का प्रवेश और स्‍तनों का मर्दन बेहद पसंद हैं।
* भारत के पश्चिमी भाग में समुद्र से सटे प्रदेशों जैसे गुजरात, दमन, दादर, पणजी, गोवा और महाराष्‍ट्र के समुद्री हिस्‍सों की नारियां बहुत अधिक वासनामयी होती हैं। संभोग के समय इनके मुख से मंद सीत्‍कार से ध्‍वनि निकलती रहती है तो उनके चर्मोत्‍कर्ष पर पहुंचने की निशानी है। इन्‍हें संभोग में वह वह चीज पसंद है, जिससे आनंद मिलता है। 

* बंगाल से पश्चिम दिशा का भाग एवं कोशल प्रांत की नारियां तीव्र आवेग वाला आलिंगन और चुंबन चाहती हैं। संभोग में तृप्‍त नहीं होने पर यह हस्‍तमैथुन के द्वारा खुद को तृप्‍त कर लेती हैं। कई बार शरीर के वासनामयी होने पर यह कृत्रिम तरीके से भी खुद को शांत करने की कोशिश करती हैं। 

* गौड़ प्रांत व बंगाल की नारियां मृदुभाषिणी एवं संभोग के प्रति लगाव रखने वाली होती हैं।
* आंध्र प्रदेश की नारियां स्‍वभाव से कोमल और पुरुष का साथ चाहने वाली होती हैं। पुरुष द्वारा सेक्‍स के लिए अपनाए गए हर तरीके को यह पसंद करती हैं। 

* महाराष्‍ट्र की नारियां 64 प्रयोगों को चाहने वाली होती हैं। अश्‍लील व कठोर वचन बोलने और सहन करने वाली होती हैं। संभोग के क्षण में यह शीघ्र पुरुष से चिपट जाती है और उनसे इसके लिए शीघ्रता चाहती हैं।
* वर्तमान बिहार और उससे सटे उत्‍तर प्रदेश की नारियां अंधेरे और नितांत एकांत में संभोग पसंद करती हैं।

  संभोग के क्षण में इनकी आंखों में शर्म उतर आती है, जिसे वह अपने पुरुष साथी से भी बचाना चाहती हैं। इसीलिए प्रकाश में वह संभोग पसंद नहीं करती हैं। 

* द्रविड़ प्रदेश-कर्नाटक और उसके दक्षिण दिशा की नारियां संभोग से पूर्व आलिंगन, चुंबन और स्‍तनों का मर्दन पसंद करती हैं और इनके द्वारा संभोग से पहले ही स्‍खलित हो जाती हैं। 

* कोंकण से पूर्व दिशा की नारियों में वासना न तो कम होता है और न ज्‍यादा। वह आलिंगन, चुंबन को पसंद करती है, लेकिन नहीं चाहती कि उसका पुरुष साथी उसके पूरे शरीर को देखे। इस प्रदेश की नारियां पूर्ण रूप से वस्‍त्र विहीन होकर संभोग पसंद नहीं करती। ये अपने शरीर के दोषों को छिपाना चाहती हैं, लेकिन दूसरे के शरीर के दोषों का हंसी भी उड़ाती हैं। इस प्रदेश की महिलाएं कुरुष व अश्‍लील आचरण वाले पुरुष से किसी कीमत पर संबंध नहीं बनाना चाहती हैं।
आचार्य वात्‍स्‍यायन और उनके बाद के सभी काम शास्‍त्रज्ञाताओ का मत है कि समय के साथ रीति-रिवाज, वेशभूषा, खानपान और प्रेम व्‍यवहार एक प्रदेश से दूसरे प्रदेश में चली जाती हैं। इसलिए प्रेमीजनों को अपने साथी के स्‍वभाव का ज्ञान होना चाहिए और उसे समझ कर उसी अनुरूप प्रेम प्रदर्शित करना चाहिए।

कामसूत्र और प्रेम

कामसूत्र और प्रेम 

कामसूत्र  एवं उसके बाद के कई कामशास्‍त्रों ने प्रेम के चार भेद बताए हैं। वैसे सच तो यह है कि प्रेम, प्रेम होता है इसका क्‍या भेद? लेकिन भारत के प्राचीन काल में काम को एक कला के रूप में विकसित करने पर जोर दिया गया है, इससे प्रेमी-प्रेमिका या पति-पत्‍नी के जीवन में नीरसता उत्‍पन्‍न नहीं हो पाती और उनके जीवन में प्रेम रस हमेशा घुलता रहता है।
कामसूत्र (kamasutra) सभी लगभग सभी कामशास्‍त्रों ने प्रेम को चार भागों में बांटने की कोशिश की हैा यहां प्रेम के उस स्‍वरूप को आधुनिक परिप्रेक्ष्‍य में समझाने की कोशिश की गई है। अंत:क्रिया, अभिमान, स्‍वीकृति और अनुभव के रूप में प्रेम को आज के हिसाब से समझाया गया है ताकि प्रेमी-प्रेमिका का प्रेम रस सभी सूख न पाए। 

 * अंत:क्रिया:हर प्रेम संबंध आपसी अंत:क्रिया यानी एक-दूसरे के संपर्क में आने, बार-बार मिलने-जुलने और अधिक समय तक साथ बिताने से उत्‍पन्‍न होता है। कामशास्‍त्रियों का मत है कि स्‍त्री पुरुष जितना अधिक से अधिक वक्‍त एक साथ गुजारेंगे, उनके बीच प्रेम उतना ही प्रगाढ़ होगा। 

शादी से पूर्व: शादी से पहले प्रेमी-प्रेमिका  घूमने-फिरने, साथ पढ़ने, पुस्‍तकालय में समय बिताने, आधुनिक समय में शॉपिंग करने व सिनेमा देखने में अधिक से अधिक वक्‍त बिता सकते हैं। पार्क, रेस्‍तरां, सिनेमा हॉल, शॉपिंग मॉल जैसे जगह अधिक समय तक साथ रहने के लिए प्रेमियों के लिए मुफीद जगह है।
शादी के बाद: अरेंज मैरेज में दो अनजान लोग मिलते हैं जबकि प्रेम विवाह में पूर्व के प्रेमी-प्रेमिका शादी के बंधन में बंधते हैं। शादी से पहले जहां दोनों मिलने के लिए रोज-रोज नए रास्‍ते तलाशते रहते हैं, वहीं शादी के शुरुआत में तो यह चलता रहता है, लेकिन ज्‍यों-ज्‍यों समय बीतता जाता है दोनों घर-गृहस्‍थी, बच्‍चे और काम की वजह से एक-दूसरे को कम वक्‍त देते हैं, जिससे रिश्‍तों की मिठास समाप्‍त होती चली जाती है।
यही वजह है कि अधिकांश जोड़े देखने से ही दुखी लगते हैं, उनमें आनंद का भाव ही नहीं दिखता है। शादी के बाद भी घर के अंदर खाना बनाने, साथ टीवी देखने, डीवीडी पर सिनेमा देखने, बच्‍चों को साथ स्‍कूल छोड़ने, साथ चाय पीने, खाना खाने, घरेलू कामों में एक-दूसरे की मदद करने जैसे कामों के जरिए हर वक्‍त नजदीकी के अहसास से भरे रह सकते हैं।
छुट्टी के दिनों में साथ में लूडो, शतरंज, कैरम, बैडमिंटन जैसे खेल भी खेला जा सकता है, बाहर घूमने, शॉपिंग या सिनेमा के लिए भी जाया जा सकता हैा कम से कम साल में एक बार छुट्टियों पर जाने का प्रोग्राम तो जरूर बनाएं ताकि दांपत्‍य में भी अंत:क्रिया की डोर टूटने न पाएा

* अभिमान:प्रेमियों को प्रेमिकाओं को इतना प्‍यार देना चाहिए कि उसमें एक मीठा अभिमान जाग जाए। अर्थात प्रेमी या पतियों को चाहिए कि वह हमेशा प्रेमिका या पत्‍नी की तारीफ करे, उनकी हर अच्‍छी बात पर उन्‍हें चूमे, उन्‍हें आलिंगन में बांध ले। चुंबन माथे से लेकर पैर तक कहीं भी लिया जा सकता है। मान लीजिए स्‍त्री ने पैर की अंगुलियों के नाखुन पर नेल पॉलिस लगाया है और वह पुरुष को अच्‍छा लग रहा है तो  उसे अपना अभिमान छोड़ प्रेमिका के पैर को चूमने के लिए झुक जाना चाहिए। इससे प्रेमिका में गर्व का अहसास होता है और वह हमेशा  प्रेमी के लिए कुछ न कुछ नया करने की कोशिश करती, जिससे दोनों के जीवन में प्रेम का रस हमेशा घुलता रहता है।
अभिमान का एक ही सूत्र है, पुरुष प्रेम में अपना अमिभान त्‍याग दे और अपने प्रेम से स्‍त्री में मीठा अभिमान भर देा उसे लगे कि उससे अधिक उसका साथी किसी को प्‍यार नहीं करता, उसे लगे कि वह इस धरती पर सबसे अधिक प्‍यार पाने वाली खुशनसीब है। लेकिन जिस दिन स्‍त्री के प्रेम पूर्ण अभिमान पर अहंकार या महत्‍वकांक्षा हावी हो जाएगी और पुरुष साथी को वह दोयक दर्जे का मानने लगेगी, उसी दिन प्रेम के घर में आग लगना तय है। पुरुष द्वारा भी स्‍त्री की उपेक्षा प्रेम में कलह का घर बन जाएगा।
* स्‍वीकृति:एक-दूसरे की खूबियों को नही नहीं, बल्कि खामियों को भी स्‍वीकार करना, प्रेम को स्‍थायित्‍व प्रदान करता है। दोनों की आत्‍मा यह स्‍वीकार करे कि दोनों एक-दूजे के बगैर अधूरे हैं। एक समय बाद लगने लगे कि दोनों का साथ कभी न छूटे, जन्‍म-जन्‍म तक दोनों एक-दूसरे को जीवनसाथी के रूप में पाएं, तो समझ लें कि यही 'अमर प्रेम' है।
अमर प्रेम बिछुड़ने से नहीं, बल्कि 24 घंटे साथ रहते हुए एक-दूसरे का सुख-दुख बांटने से पैदा होता है। लैला-मजनू, सीरी-फरहाद, रोमियो-जूलियट हमें सिर्फ इसलिए याद हैं कि वे बिछुड़ गए, लेकिन सोचिए लैला को मजनू के बच्‍चे की मां बनना पड़ता और घर-गृहस्‍थी संभालनी पड़ती को क्‍या आज आप उसे याद करते। वास्‍तव में खोना हमारे मानस में इस कदर भर चुका है कि 'पाने' को हम दोयम दर्जे का मान बैठे हैं। स्‍वीकृति एक-दूसरे को पूरी तरह से जानने, समझने और स्‍वीकार करने की श्रेणी है। 

* अनुभव:ऊपर के सभी रूप स्‍त्री पुरुष को अनुभवशील बनाते हैं। जान-पहचान, प्रेम, चुंबन, आलिंगन, संभोग, सभी अनुभव को समृद्ध करते हैं और यही प्रेम की प्रगाढ़ता को बढ़ाते हैं। अधिकांश स्‍त्री पुरुष एक सेक्‍सुअल एक्‍ट मानकर प्रेम, चुंबन, आलिंगन और संभोग से गुजरते हैं, जिस कारण सेक्‍स हमेशा उनके प्रेम पर हावी रहता है।
सिर्फ sex के नजरिए से हासिल अनुभव स्‍त्री पुरुष को हमेशा नाजायज संबंधों की ओर दौड़ाए रहता है, कभी एक संबंध स्‍थाई नहीं हो पाता। आपसी संबंध में हमेशा खिन्‍नता, अविश्‍वास और फंस जाने का भाव उत्‍पन्‍न होता रहता है। लेकिन जिन स्‍त्री पुरुषों के बीच सेक्‍स भी प्रेम के वशीभूत घटता है, उनके लिए सेक्‍स गौण होता चला जाता है और प्रेम स्‍थाई भाव में आ जाता है। Love को स्‍थाई या अस्‍थाई बनाना प्रेमी जोड़ों पर निर्भर करता हैा

 

Tuesday 18 December 2012

 सेक्स क्रिया को लम्बे समय तक खींचने के लिए कुछ विशेष तरीकों का इस्तेमाल किया जा सकता है जो सेक्स के आनन्द को कई गुना बढ़ा देती है। आज कई प्रकार के वैज्ञानिक शोधों से यह ज्ञात हो चुका है कि लगभग 85 प्रतिशत पुरुषों का वीर्यपात सेक्स क्रिया के दौरान दो मिनट में ही हो जाता है। कुछ तो ऐसे भी पुरुषों का पता चला है कि वे 10 से 20 सेकण्ड में ही और कुछ योनि में लिंग को प्रवेश करने के बाद ही स्खलित हो जाते हैं। कुछ तो ऐसे भी होते हैं जो योनि में लिंग को प्रवेश कराने से पहले ही आलिंगन चुम्बन के समय ही स्खलित हो जाते हैं। ऐसे पुरुष कभी भी अपने पत्नी को सेक्स क्रिया का भरपूर आनन्द नहीं दे पाते। इस स्थिति में ऐसे पुरुष वैद्य-हकीमों के चक्करों में पड़कर अपने धन तथा स्वास्थ्य को भी नष्ट कर देते हैं



पुरुषों के शीघ्रपतन को दूर करने के लिए बहुत से चिकित्सकों ने कई तरीकों की खोज की है। इन तरीकों को सावधानी से अपनाने से शीघ्रपतन की समस्या से बचा जा सकता है और सेक्स क्रिया का भरपूर आनन्द भी लिया जा सकता है।
सेक्स क्रिया करने के कुछ तरीके निम्न हैं-
1. सेक्स क्रिया करने से पहले स्त्री को पूरी तरह से उत्तेजित करना चाहिए। जब स्त्री पूरी तरह से उत्तेजित हो जाए तब उसके साथ संभोग करना चाहिए और कुछ देर तक अपने लिंग को स्त्री की योनि में डालकर झटके (स्ट्रोक) लगायें तथा इसके बाद कुछ देर के लिए हट जाएं। इसके बाद फिर से स्त्री की योनि के मुख (भगनासा) को खोले और दुबारा स्ट्रोक लगाकर-लगाकर घर्षण करें। इस प्रकार से दो से तीन बार सेक्स क्रिया करें। इससे स्त्री-पुरुष दोनों को भरपूर आनन्द मिलेगा। इस प्रकार पूर्ण रूप से आनन्द लेते-लेते एक समय ऐसा आयेगा जब आप स्खलित हो जायेंगे और आपको पूर्ण आनन्द मिलेगा। इस तरह से सेक्स क्रिया करने से स्त्री कई बार चरम सुख प्राप्त करती है और लम्बे समय तक सेक्स क्रिया भी चलती है। 

2. सेक्स क्रिया करते समय स्खलन होने से पहले ही लिंग को योनि से बाहर निकाल दें और शरीर को एकदम ढीला छोड़ दें। इसके कुछ देर बाद फिर से सेक्स क्रिया करने लगे। इस प्रकार से सेक्स क्रिया करते समय बीच में ही स्खलित होने की स्थिति बन जाए तो जबर्दस्ती अपने वीर्य को रोके नहीं क्योंकि इससे शारीरिक कमजोरी उत्पन्न होती है। इस स्थिति में संभोग करते समय स्खलित होने के कुछ देर बाद अपने को फिर से सेक्स क्रिया के लिए तैयार करें। 

3. सेक्स क्रिया करते समय पुरुष को चाहिए कि स्त्री की योनि में लिंग प्रवेश करके स्ट्रोक लगाने में जल्दबाजी न करें क्योंकि इससे जल्दी ही स्खलन हो जाता है। अतः स्ट्रोक धीरे-धीरे लगायें। ऐसा करने से सेक्स क्रिया लम्बे समय तक चलती है। स्ट्रोक लगा-लगाकर घर्षण करते समय अपने मन में स्ट्रोक की गिनती करते जाएं और जब स्खलन होने लगे तब स्ट्रोक लगाना बंद कर दें। फिर अपनी आंखों को बंद करके शरीर को ढीला छोड़ दें। इसके कुछ देर बाद स्ट्रोक लगा-लगाकर घर्षण करना शुरू कर दें और गिनती गिनते जाएं।
4. यदि किसी व्यक्ति को शीघ्रपतन की शिकायत हो तो वह सेक्स क्रिया करने से एक दो घंटे पहले हस्तमैथुन करके वीर्य को निकाल दे। इसके बाद जब आप सेक्स क्रिया करेंगे तो उस समय शीघ्रपतन का भय नहीं रहेगा और लम्बे समय तक सेक्स क्रिया का आनन्द भी ले सकेंगे।
5. सेक्स क्रिया करते समय लंबी-लंबी सांसे लेने की आदत डालें। इससे सेक्स क्रिया में पूर्ण रूप से आनन्द मिलता है।
6. अगर सेक्स क्रिया करते वक्त स्खलन का एहसास हो तो किसी दूसरी चीज की ओर अपना ध्यान लगाएं, इससे स्खलन होने की संभावना रुक जाती है। इसके कुछ देर बाद फिर से सेक्स क्रिया करने लगे। इस तरह की क्रिया कई बार करें। इससे भरपूर आनन्द मिलेगा।
7. सेक्स क्रिया के दौरान वीर्य स्खलन होने की स्थिति उत्पन्न हो जाए तो अपनी गुदा को संकुचित कर लें और कुछ समय तक इसी अवस्था में रुके रहे हैं। इससे स्खलन की स्थिति रुक जाती है। 

8. संभोग करते वक्त जब योनि को लिंग में प्रवेश करें तब उस समय अपनी गुदा को संकुचित कर लें और लिंग के स्नायुओं को भी सिकोड़ लें। इस स्थिति में रहने के साथ ही स्ट्रोक लगा-लगाकर घर्षण करें। इस तरीके से सेक्स क्रिया लम्बे समय तक बनी रह सकती है।
9. यदि आपको शीघ्रपतन की शिकायत हो तो सेक्स क्रिया करने से लगभग 10-15 मिनट पहले लिंग के मुंड पर जायलोकेन मलहम लगा लें। ऐसा करने से लिंग मुंड की त्वचा में संवेदनशीलता खत्म हो जाती है और शीघ्रपतन नहीं होता है।
10. यदि सेक्स क्रिया करने से पहले यह पता लग जाए कि लिंग मुंड संवेदनशील हो गया है तो उस पर टेल्कम पाउडर लगा दें। इससे संवेदनशीलता खत्म हो जाती है।
11. लिंग में अधिक उत्तेजना होने के कारण से वह अधिक टाइट हो गया हो तो इस पर रबड़ बैंड चढ़ा लें, ध्यान रहे कि रबड़ बैंड अधिक कसा न हो और न ही अधिक ढीला, क्योंकि ऐसा करने से लिंग में खून का बहाव लंबे समय तक रहेगा और सेक्स क्रिया देर तक चलेगी।
12. सेक्स क्रिया करते समय जब वीर्य स्खलन होने की स्थिति उत्पन्न होने लगे तो स्ट्रोक लगाकर घर्षण करने का काम बंद कर दें और तुरंत अपनी जननन्द्रियों को पेट के अन्दर की तरफ खींचे। इस स्थिति में जननेन्द्रियों को तब तक खींचे रखें जब तक वीर्य स्खलन की स्थिति खत्म न हो जाए। इसके कुछ समय बाद स्ट्रोक लगाना शुरू कर दें। इस प्रकार से क्रिया करने से सेक्स क्रिया का समय देर तक बना रहता है। इस तरीके से संभोग करने की कला को योनिमुद्रा कहते हैं। 

13. सेक्स क्रिया करते समय यदि वीर्य स्खलन की स्थिति उत्पन्न हो जाए तो इसको रोकने के लिए अपने फेफड़े की भरी हुई वायु को जोर से बाहर की ओर फेंके। ऐसा करने से वीर्य स्खलन को रोकने में लाभदायक प्रभाव देखने को मिलता है। इससे स्खलन की अनुभूति भी गायब हो जाती है। इसके बाद दुबारा से सेक्स क्रिया करना शुरू करें। इस प्रकार से सेक्स क्रिया के दौरान कई बार दोहरा भी सकते हैं। इस तरीके से सेक्स क्रिया करने से संभोग कला का समय बढ़ जाता है।
14. वीर्य स्खलन होते समय जितना अपने पेट को अन्दर खींच सकते हो खींचे और सांस को अन्दर की ओर न लें बल्कि अन्दर की सांस को बाहर की ओर फेंके। पेट को अन्दर की ओर खींचने से खाली जगह बन जाती है और काम केंद्र के आस-पास की शक्ति नाभि की ओर आ जाती है तथा वीर्य स्खलन होना रुक जाता है।
15. सेक्स क्रिया करते समय नाक के दांये भाग से सांस लेते रहें, इससे सेक्स क्रिया लम्बे समय तक चलती है। नाक के बांये भाग से सांस न लें क्योंकि यह भाग ठंडा होता है और ऐसा करने से सेक्स शक्ति में कमी आती है। नाक के दांये भाग से सांस लेने के लिए अपने दाएं हाथ की मुट्ठी बायें बगल में रखकर बगल को जोर-जोर से दबाएं और करवट लेट जाए। इस प्रकार से क्रिया करने से दायां स्वर चालू हो जाएगा।
सेक्स क्रिया के दौरान जल्दी वीर्यपात होने के कुछ कारणों की खोज-
भय-

सेक्स संबंधों के दौरान मन में भय होने से भी जल्दी वीर्यपात हो सकता है। अतः इसको दूर करने के लिए भय होने के मूल कारणों को जानना बहुत जरूरी है। यदि इसके होने के कारणों को पता लग जाए तो भय से मुक्ति पाना आसान हो जाता है। जीवन में भय अगर अधिक हो तो इसके घातक परिणाम देखने को मिल सकते हैं क्योंकि भय से अनेक गंभीर, घातक तथा असाध्य रोग उत्पन्न होते हैं। अधिकांश रोगों के होने के कारण तो मुख्य रूप से भय ही होता है। कुछ लोग तो ऐसे भी देखे गये हैं कि वे सांप के काटने के भय से ही मृत्यु के मुंह में चले जाते हैं।
भय एक ऐसी मानसिक बीमारी का रूप धारण कर लेती है जिसके कारण सेक्स क्रिया से संबंधित रोग होने के अलावा व्यक्ति की मृत्यु भी हो सकती है। उदाहरण के लिए- चार-पांच साल पहले एक किसान खेत में पानी दे रहा था तभी किसी कीड़े ने उसके पैर में काट लिया और कटे हुए स्थान से खून निकलने लगा। इसके बाद उसने खेत में इधर-उधर ध्यान से देखा लेकिन वहां पर कुछ भी दिखाई नहीं दिया। इसके बाद वह घर पर आया और कटे हुए स्थान पर पट्टी बांध ली। कुछ दिनों बाद जब वह दुबारा से खेत में पानी देने के लिये गया तो उसने वहां पर एक सांप देखा। सांप को देखकर उसके मन में विचार आया कि पिछली बार शायद पानी देने के दौरान इसी सांप ने काटा था और यही बात उसके मन में बैठ गयी। इसी भय के कारण किसान ने चारपाई पकड़ ली। कुछ समय बाद ही भय के कारण उसकी मृत्यु हो गई। इस कहानी से स्पष्ट होता है कि भय के कारण मृत्यु भी हो सकती है।

शीघ्रपतन से पीड़ित रोगी को कभी भी यह नहीं सोचना चाहिए कि मेरे सामने केवल दो विकल्प हैं। पहला यह कि मुझे कभी भी यह बीमारी ठीक नहीं हो सकती है तथा दूसरा यह की मेरे इस रोग को केवल वैद्य और हकीम ही ठीक कर सकते हैं। इस प्रकार सोचने के कारण से यह रोग बढ़ता ही जाता है तथा रोगी वैद्य और चिकित्सक के चक्कर में फंसकर अपने धन तथा स्वास्थ्य को बरबाद कर लेते हैं।
शीघ्रपतन को दूर करने के लिए इसके कारणों को जनना बहुत जरूरी हैं, शीघ्रपतन के निम्न कारण होते हैं-
1. हस्तमैथुन– कुछ लोगों में सेक्स क्रिया के प्रति इतनी तेज उत्तेजना होती है कि वे बचपन से ही हस्तमैथुन करके अपने वीर्य को नष्ट करते रहते हैं, जिसके कारण से वे शीघ्रपतन का शिकार हो जाते हैं। उन्हें यह भी भय हो जाता है कि वीर्य नष्ट होने का सबसे बड़ा कारण शीघ्रपतन है। जबकि इस भय को मन से निकाल देना चाहिए क्योंकि वीर्य न तो किसी थैली में जमा होता रहता है और न ही वह खून में मिलकर शरीर को बलवान बनाता है। किशोरावस्था में लोग कुछ समय तक हस्तमैथुन करके अपनी उत्तेजना को शांत कर लेते हैं, यह एक स्वाभाविक प्रक्रिया है। वैसे देखा जाए तो यह एक अप्राकृतिक प्रक्रिया है जो नहीं करना चाहिए लेकिन फिर भी मानसिक तनाव तथा सेक्स क्रिया की उत्तेजना को शांत करने के लिए हस्तमैथुन कर लेना न तो कोई अनैतिक कार्य है और न ही इससे शरीर कमजोर होता है। अतः कहा जा सकता है कि हस्तमैथुन का भय पूर्ण रूप से काल्पनिक होता है। यदि इस भय से मुक्ति मिल जाए तो शीघ्रपतन से छुटकारा मिल सकता है। वैसे देखा जाए तो हस्तमैथुन सुनने और पढ़ने में कुछ अजीब सा लगता है कि हस्तमैथुन के द्वारा किस प्रकार से शीघ्रपतन को रोका जा सकता है? या हस्तमैथुन के द्वारा संभोग कला के समय को बढ़ाया सकता है? लेकिन शीघ्रपतन को दूर करने का वह तरीका है जिसको पति-पत्नी संभोग करते समय प्रयोग करें तो लाभ मिलेगा। इस क्रिया में पति चाहे तो हस्तमैथुन का प्रयोग करना आरम्भ कर दे लेकिन यह क्रिया स्खलन तक जारी न रखे। यदि पति स्वयं हस्तमैथुन कर रहा है तो उसे इस क्रिया को तब बंद कर देना चाहिए जब वह स्खलन बिंदु तक पहुंचने वाला हो, इस स्थिति में जब स्खलन की स्थिति टल जाए तो कुछ समय तक आराम करना चाहिए। फिर इसके बाद इस क्रिया को दुबारा से करें। ऐसा करने से शीघ्रपतन की समस्याएं दूर होने लगेंगी और संभोग क्रिया करने के प्रति आत्मविश्वास भी जागेगा। इस प्रकार से संभोग के समय को बढ़ाने से सेक्स क्रिया के समय में वृद्धि होती है। इस क्रिया को पति अपनी पत्नी से भी करा सकता है। लेकिन इस क्रिया को पत्नी से कराने पर सावधान रहना चाहिए। पत्नी से हस्तमैथुन कराते समय अपने स्खलन के समय पर ध्यान रखना चाहिए तथा जैसे ही स्खलन होने को हो वैसे ही अपनी पत्नी को कुछ भी हरकत करने से मना कर देना चाहिए। इसके बाद कुछ देर तक आराम करना चाहिए और फिर से पत्नी को यही क्रिया करने के लिए करना चाहिए। इस क्रिया को चार-पांच बार करना चाहिए। इस प्रकार से सेक्स क्रिया करने से संभोग का समय लम्बा जाता है। 

2. स्वप्नदोष- स्वप्नदोष का भय भी शीघ्रपतन होने का कारण हो सकता है। इससे 11 से 18 वर्ष के बालकों तथा युवकों को बहुत अधिक परेशानी होती है तथा उनमें हीन भावना भी पैदा कर देती है। स्वप्नदोष एक प्रकार की सेफ्टीवाल्व की प्रक्रिया है। प्रकृति ने मनुष्यों में वीर्य के उत्पादन तथा संचयन में तालमेल रखने के लिए स्वचालित तनाव मुक्ति (आटो टेंशन रिलीज) की शक्ति प्रदान की है। यदि ऐसा न होता तो युवक अनेक रोगों से ग्रस्त हो जाते। यहां यह जानना बहुत आवश्यक है कि बहुत से ऐसे भी व्यक्ति देखे गये हैं जो विवाहित हैं फिर भी अपनी पत्नी से बहुत दिनों तक संभोग न करने के कारण स्वप्नदोष से पीड़ित हो जाते हैं। कभी-कभी तो अधेड़ उम्र के लोगों को भी स्वप्नदोष हो जाता है क्योंकि नाती-पोते वाले हो जाने के कारण से वे अपनी पत्नी को संभोग क्रिया के लिए समय नहीं दे पाते जिसके कारण से कभी-कभी उन्हें स्वप्नदोष हो जाता है। सेक्स क्रिया की अधिक चिंता करने के कारण व्यक्ति बार-बार कामोत्तेजित हो जाते हैं जिसके कारण से वे हस्तमैथुन करने की कोशिश करते हैं और जब वे इससे भी अपनी उत्तेजना को शांत नहीं कर पाते हैं तो प्राकृतिक स्वप्नावस्था में उनको मानसिक तनाव एवं उत्तेजना होकर यह क्रिया हो जाती है। अतः कहा जा सकता है कि स्वप्नदोष से डरने की कोई आवश्यकता नहीं है। देखा जाए तो यह मानसिक संतुलन को बनाये रखने के लिए मात्र एक स्वचालित प्रक्रिया है। इसलिए सकारात्मक सोच से आत्मविश्वास में दृढ़ता आती है तथा भय अपने आप ही दूर हो जाता है। इस सोच को अपनाने से भय आत्मविश्वास के सामने टिक नहीं पाता है। इस प्रकार भय को खत्म करने के लिए मन में बार-बार सकारात्मक सोच अपनाना चाहिए और मन में हमेशा यह विचार बनाये रखना चाहिए कि स्वप्नदोष को मानसिक और शारीरिक कमजोरी नहीं है, मैंने कोई गलत काम नहीं किया है, मुझमें पौरुष शक्ति की कोई कमी नहीं है, सेक्स क्रिया करने की मुझमें पूरी शक्ति विद्यमान है। इस प्रकार की भावना जैसे-जैसे मन में आती जाएगी वैसे-वैसे स्खलन पर नियंत्रण भी होता जाएगा।
3. लैंगिक उत्तेजना के समय पारदर्शी तरल पदार्थ आना- कई युवक तो ऐसे भी होते हैं जो लैंगिक उत्तेजना के समय में रंगहीन पारदर्शी तरल पदार्थ से भयभीत हो जाते हैं। इस प्रकार के पारदर्शी तरल पदार्थों को देखकर वे सोचने लगते हैं कि उनमें किसी प्रकार की कमजोरी तो नहीं है। वे यह भी सोचने लगते हैं कि इस कमजोरी के कारण ही वीर्य इतनी जल्दी-जल्दी बार-बार आ रहा है। लेकिन देखा जाए तो यह पारदर्शी तरल पदार्थ वीर्य नहीं होता है। यह तो केवल वह तरल पदार्थ है जो काउपर ग्रंथि से निकलने वाला मात्र एक तरल पदार्थ है जो लिंग के मूत्रमार्ग को चिकना करने की स्वचालित प्रक्रिया है। यह धीरे-धीरे रिसता हुआ निकलता रहता है। अगर प्रकृति ने यह क्रिया न दी होती तो वीर्य स्खलन के समय हमारा मूत्रमार्ग कई जगह से छिल जाता है और मूत्र त्याग करते समय दर्द तथा जलन होती है। वीर्य स्खलन के समय इसका वेग काफी तेज होता है, यह भी प्रकृति का ही वरदान है। वीर्य इतनी तेज गति से बाहर इसलिए निकलता है ताकि वह सीधे गर्भाशय के मुख से सम्पर्क करें और शुक्राणु सरलतापूर्वक गर्भाशय के अंदर पहुंचकर डिम्ब से सम्पर्क कर सकें।
गहरी तथा नियंत्रित सांस लेने की तकनीक-
सेक्स क्रिया के समय भरपूर आनन्द लेने के लिए उत्तेजना के समय गहरी एवं समुचित ढंग से सांस लेने का अभ्यास करना चाहिए। वैसे देखा जाए तो संभोग के समय सांस की गति बढ़ जाती है और उत्तेजना की तीव्रता के साथ सांस की रफ्तार भी तेज हो जाती है। सेक्स करते समय पति को चाहिए कि स्वाभाविक रूप से गहरी सांस ले और कुछ सेकण्ड तक सांस को भीतर ही रोके रखें तथा फिर धीरे-धीरे सांस को छोड़ें। इस क्रिया को चार से पांच बार दोहराने से पति को अहसास होने लगेगा कि उसके शरीर और मन से तनाव गायब हो चुका है। इसके बाद कुछ समय तक आराम करने के बाद फिर से इस क्रिया को दोहराना चाहिए। इस प्रकार से सेक्स क्रिया करने से पति को अहसास होगा कि सेक्स उत्तेजना पर नियंत्रण रखने में उसे पहली सफलता मिल गई है। इस क्रिया से सेक्स करने से वीर्य स्खलन केंद्र पर नियंत्रण हो जाएगा और मन का भय भी समाप्त हो जाता है। इसके साथ ही मानसिक तनाव दूर हो जाने पर कामांग भी स्वाभाविक रूप से कार्य करने लगेंगे।
कभी-कभी बहुत से व्यक्तियों के मन में यह आशंका उठ सकती है कि जननेन्द्रियों पर नियंत्रण रखना आसान नहीं होता लेकिन हम सब जननेन्द्रियों पर नियंत्रण रखने में सफल हो सकते हैं, उसी तरह कामोत्तेजना पर नियंत्रण रखना भी संभव हो सकता है। जब संवेगों पर नियंत्रण हो जाता है तब शरीर एवं मन में एक रागात्मक तालमेल बैठ जाता है और दोनों ही पूर्ण संतुलन के साथ चरम बिंदु पर अग्रसर हो जाते हैं।
चिन्तन में अन्तर्विरोध-
चिन्तन में अन्तर्विरोध मनोवैज्ञानिक उपचार है जो सेक्स क्रिया के समय उत्तेजक बातें, दृश्य या सेक्स उत्तेजना को तेज करती हैं और शीघ्रपतन की अवस्था को पैदा करती हैं। इस स्थिति को रोकने के लिए संभोग के समय में लिंग को योनि में प्रवेश करते वक्त और घर्षण के समय जब काम-क्रीड़ा के खेल के विचारों को त्याग देते हैं तो उसे ही अपना ध्यान सेक्स से अन्य मन विचारों की ओर मोड़ देने की कला कहते हैं।
इस समय किसी यात्रा, पिकनिक, भाषण या मीटिंग पर ध्यान केंद्रित करने से कमोत्तेजना पर काबू पाया जा सकता है। संभोग से ध्यान हटा लेने से वीर्य स्खलन का समय बढ़ जाता है। शीघ्रपतन को दूर करने के लिए जो-जो क्रिया अपनाई जाती है, उनका बार-बार अभ्यास करने से शीघ्रपतन से छुटकारा पाया जा सकता है। लेकिन किसी भी अप्रिय या भय वाली घटना पर ध्यान केन्द्रित करने से कामोत्तेजना अचानक ही बैठ जाती है और लैंगिक उत्तेजना ठंडी पड़ जाती है। अतः ध्यान केन्द्रित करने में सावधानी बरतनी चाहिए और सेक्स क्रिया करते समय उन घटनाओं को कभी भी याद नहीं करना चाहिए जिनसे किसी प्रकार से हानि हों।
सेक्स क्रिया के समय घर्षण पर नियंत्रण-
बहुत से ऐसे पुरुष होते हैं जो सेक्स क्रिया के समय में स्ट्रोक लगाने के समय कामवासना के कारण जल्दी उत्तेजित हो जाते हैं तथा जननेन्द्रिय को नियंत्रण में न रखने के अभाव में योनि में लिंग को डालकर तुरंत ही घर्षण प्रारम्भ कर देते हैं और जल्दी-जल्दी स्ट्रोक लगाना शुरू कर देते हैं। इस स्थिति में वे उत्तेजना के कारण अपने आप पर काबू नहीं रख पाते और तीन-चार स्ट्रोक लगाने के बाद ही स्खलित हो जाते हैं। इसलिए कहा जा सकता है कि लिंग को योनि में प्रवेश करने के तुरंत बाद ही स्ट्रोक लगाना शुरू नहीं करना चाहिए। सेक्स क्रिया में जब लिंग को योनि में प्रवेश कराते हैं तो लगभग 10 से 15 सेकण्ड तक स्ट्रोक नहीं लगाना चाहिए बल्कि लिंग को योनि में चुपचाप पड़े रहने देना चाहिए और जब उत्तेजना का वेग कम पड़ जाए तब धीरे-धीरे घर्षण शुरू करना चाहिए। उत्तेजना यदि अधिक बढ़ने लगे तो स्ट्रोक लगाना बंद करके लिंग को योनि से बाहर निकाल लेना चाहिए। इसके बाद 5 से 10 सेकण्ड आराम करना चाहिए। आराम करने के बाद फिर से स्ट्रोक लगा-लगाकर धीरे-धीरे घर्षण शुरू कर देना चाहिए। इस प्रकार से सेक्स क्रिया करने से पुरुष को यह महसूस होगा कि इस बार उत्तेजना कुछ हद तक काबू में आ गई है। जैसे ही आपका स्खलन होने लगे वैसे ही लिंग को योनि से बाहर निकाल ले, इससे स्खलन रुक जाएगा। इस प्रकार से संभोग करते समय प्रत्येक बार आराम करने के बाद उत्तेजना पर नियंत्रण बढ़ता जाएगा और चार से पांच बार इस प्रकार से संभोग करने से स्खलन के समय पर पूरी तरह से नियंत्रण हो जाएगा। जब उत्तेजना पर नियंत्रण हो जाए तो फिर स्ट्रोक की गति को बढ़ाया जा सकता है और फिर एक स्थिति ऐसी भी आ सकती है जिसमें तेज धक्के लगाने पर भी स्खलन नहीं होगा। इस विधि से सेक्स क्रिया 15 मिनट से एक घण्टे तक की जा सकती है। घर्षण रोकने की क्रिया को अधिक से अधिक तीन से चार बार ही रोकना चाहिए, यदि इससे अधिक बार रोका गया तो स्खलन होने में बहुत अधिक रुकावट उत्पन्न हो सकती है और ऐसा भी हो सकता है कि स्खलन कैसे हो। वीर्य स्खलन बहुत देर तक रुक जाना भी कष्टदायक होता है क्योंकि बार-बार वीर्य स्खलन में रुकावट उत्पन्न होने से स्खलन केन्द्र पर नियंत्रण समाप्त हो जाता है और पुरुष स्खलन के अभाव में पसीने-पसीने से तर होकर बेचैन होने लगता है। ऐसा होने से पुरुष को वह सेक्स का सुख भी नहीं मिल पाता जोकि उसे मिलना चाहिए। इस स्थिति में ऐसा भी हो सकता है कि पत्नी पहले ही स्खलित (चरम बिंदु) हो जाए। घर्षण करने पर पत्नी को बहुत अधिक कष्ट होता है और खुद भी स्खलित न होने के कारण मानसिक तनाव तथा शारीरिक कष्ट होता है। इसलिए इस विधि का प्रयोग सावधानी से करना चाहिए।
सेक्स क्रिया करते समय उत्तेजना पर नियंत्रण रखना-
संभोग क्रिया के समय को बढ़ाने के लिए सेक्स उत्तेजना पर नियंत्रण रखना बहुत जरूरी होता है क्योंकि शीघ्र स्खलित हो जाने के कारण से पति-पत्नी को सेक्स का भरपूर आनन्द नहीं मिल पाता है। इसलिए सेक्स क्रिया करते समय यदि आवश्यकता से अधिक उत्तेजित हो जाए तो कुछ समय के लिए लिंग से घर्षण करना बंद करके आराम करें, इससे कमोत्तेजना का वेग कुछ कम हो जाएगा। इस क्रिया को करते समय जब उत्तेजना का वेग कुछ कम हो जाए तब स्त्री को दुबारा से आलिंगन तथा चुम्बन करना शुरू कर दें, इससे स्त्री को आपसे बहुत अधिक सुख मिलेगा।
स्त्री के स्तनों के निप्पल को अधिक देर तक चूसना तथा स्तनों को दबाना कामोत्तेजना को भड़काने वाला होता है। अतः इस क्रिया को करते समय अधिक सावधानी बरतनी चाहिए। चुम्बन तथा चूसने की क्रिया ज्यादा करने से भी शीघ्र स्खलन होने का डर होता है। अतः सेक्स क्रिया का अधिक से अधिक आनन्द लेने के लिए इसका कम से कम ही प्रयोग करें।
संभोग क्रिया करते समय यदि पत्नी को यह पता चल जाए कि मेरा पति मुझसे अधिक कामोत्तेजक है तो ऐसी अवस्था में उसे अपनी पति से यह कहना चाहिए कि लिंग को तुरंत ही योनि में न डाले और न ही तेज स्ट्रोक लगाकर घर्षण करें। इस स्थिति में पत्नी को चाहिए कि वह अपने पति का पूरी तरह से साथ दे और पति को सेक्स क्रिया का भरपूर आनन्द दें तथा लें।
सेक्स क्रिया के समय पति को चाहिए कि अपनी पत्नी को सेक्स का भरपूर आनन्द दें और पत्नी को पूरी तरह से सेक्स के लिए उत्तेजित करें। यदि आपने ऐसा न किया तो हो सकता है कि तुम्हारी पत्नी सेक्स क्रिया के समय सेक्स के प्रति ठंडी पड़ी रहेगी और उसकी योनि मार्ग में तरलता उत्पन्न नहीं होगी। यदि पत्नी की योनि शुष्क हो जाए तो लिंग को योनि में प्रवेश करने में दिक्कत आती है और घर्षण करना भी मुश्किल हो जाता है। इस स्थिति में पत्नी को सेक्स क्रिया का खेल खेलने में कष्ट होगा तथा पति भी दो-चार घर्षण के बाद ही स्खलित हो जाएगा। अतः पति को चाहिए कि पत्नी को सेक्स क्रिया के दौरान उसे पहले उत्तेजित सीमा तक पहुंचाने का काम करें। लेकिन यह भी ध्यान रखे कि अपने को शीघ्र स्खलन की स्थिति तक न पहुंचे। धैर्य और संयम के मेल से अपनी पत्नी को सेक्स उत्तेजना की सीमा रेखा तक पहुंचाएं और फिर सेक्स क्रिया का पूरा आनन्द लें और पत्नी को भी भरपूर आनन्द दें।
शीघ्र स्खलन को रोकने के लिए कुछ तरीके-
ठीक प्रकार से सेक्स क्रिया करने से शीघ्र स्खलन होने की समस्या को रोका जा सकता है तथा सेक्स क्रिया को लम्बे समय तक आनन्द लिया जा सकता है। यदि सेक्स करने के दौरान कुछ भी असावधानी बरतेंगे तो इस प्रकार की समस्या उत्पन्न हो सकती है। अतः शीघ्र स्खलन की समस्या को रोकने के लिए कुछ तरीके दिये जो रहे हैं जो इस प्रकार हैं-
1. संभोग क्रिया करते समय पत्नी को चाहिए कि अपने पति के लिंग को पकड़कर सहलाए। इससे लिंग में कोमल स्पर्श पड़ने के कारण तनाव उत्पन्न होने लगता है। इस क्रिया में पत्नी को चाहिए कि लिंग को धीरे-धीरे पकड़ कर दबाती रहे और लिंग जब पूरी तरह हो उत्तेजित जाए या स्खलन की स्थिति उत्पन्न होने लगे तो पति को चाहिए कि पत्नी को कहे कि लिंग को थोड़ी देर के लिए दबाना छोड़ दें। इसके बाद कुछ देर तक अन्य चीज पर ध्यान केंद्रित कर लें ताकि स्खलन होने के संकट को टाला जा सकें। कुछ देर बाद जब स्खलन की स्थिति टल जाए तो फिर से वही क्रिया अपनाएं। इस सेक्स क्रिया के तरीके को अपनाने से शीघ्र स्खलन की समस्या से छुटकारा मिल सकता है।
2. पति के वीर्य स्खलन के समय को बढ़ाने के लिए पत्नी को चाहिए कि अपने पति के वीर्य स्खलन के समय में रुकावट पैदा करें। इसके लिए एक यह तरीका अपनाया जा सकता है जैसेकि पति-पत्नी को सेक्स क्रिया करने के लिए एक ही बिस्तर पर निर्वस्त्र अवस्था में लेट जाना चाहिए। इस अवस्था में पति को चाहिए कि अपनी तेज होती उत्तेजना के प्रति ध्यान रखें और स्खलन की स्थिति पर पहुंचने से पहले ही एक-दूसरे को उत्तेजित करने की प्रक्रिया को बंद करके एक-दूसरे को शरीर से थोड़ा हटकर दूसरी ओर ध्यान लगा लें। सेक्स क्रिया के समय में इस तरीके का प्रयोग कई बार दोहरा सकते हैं। इस तरह से संभोग करने से पति की चिंता और भय दूर होने लगता है और संभोग कला के समय में वृद्धि होने लगती है। इस क्रिया के प्रयोग से पति अपने कामोत्तेजना के समय में नियंत्रण पा लेता है। इस तरह से संभोग करने की क्रिया में सफलता धीरे-धीरे मिलती है। यदि इस क्रिया का प्रयोग करते समय एक-दो बार असफल भी हो जाए तो दुःखी न हो और न ही अपने प्रयास रोकें। पति-पत्नी को यह कभी भी नहीं भूलना चाहिए कि कोशिश करने से ही सफलता प्राप्त होती है।
3. सेक्स क्रिया के दौरान पति के शीघ्र स्खलन को रोकने के लिए इस प्रकार का तरीका अधिक लाभकारी हो सकता है जैसेकि पत्नी को चाहिए कि वह पलंग पर बैठकर अपनी दोनों टागों को फैलाकर अपने पति के सामने की ओर खोल दे। इसके बाद पति को चाहिए कि अपनी टांगों को पत्नी की जांघों के ऊपर रखें। इसके बाद अपने घुटने को थोड़ा सा ऊपर उठाकर रखें ताकि अपनी टांगों का बोझ पत्नी के ऊपर न पड़ने दें। इसके बाद पत्नी को चाहिए कि लिंग को हाथ में पकड़कर धीरे-धीरे सहलाए। इससे लिंग उत्तेजित होकर तन जाता है। लिंग जब पूरी तरह से तन जाए तो पत्नी को चाहिए कि लिंगमुंड को अंगूठे तथा पहली दो अंगुलियों से पकड़कर दबाए। इस क्रिया में पत्नी को ध्यान रखना चाहिए कि अंगूठे को लिंगमुण्ड के उस भाग पर रखे, जहां पर फ्रीनम (Freenum) स्थित होता है तथा पहली अंगुली को लिंगमुण्ड पर और बीच की उंगली को लिंगमुण्ड के किरीट (Corona Glandis) के पीछे रखे। इस क्रिया को करते समय पत्नी को यह ध्यान रखना चाहिए कि अंगुलियों से लिंग पर दबाव उस प्रकार दें जिस प्रकार से नींबू को निचोड़ा जाता है। लेकिन इस क्रिया को तीन-चार बार से ज्यादा न करें। इस क्रिया में पत्नी के अंगूठे और अंगुलियों के दबाव की वजह से पति के स्खलन होने की क्रिया रुक जाती है। इससे लिंग की उत्तेजना की स्थिति कुछ कम हो जाती है। इसके 10 से 15 मिनट के बाद फिर से इसी प्रकार से क्रिया करनी चाहिए। ठीक इसी प्रकार से इस सेक्स क्रिया को कई बार दोहराना चाहिए। इस क्रिया से पति-पत्नी को सेक्स का भरपूर आनन्द मिलता है तथा उनका प्रेम संबंध भी गहरा होता चला जाता है। इससे पुरुष शीघ्र स्खलित नहीं होता है तथा इसके साथ ही सेक्स के प्रति आत्म-विश्वास भी जाग जाता है। इस तरीके से पत्नी पति के लिंगमुण्ड को 10 से 15 बार दबाती है तो पति शीघ्र स्खलन के भय से भी मुक्त हो जाता है। जब भय से मुक्त हो जाए तो उसे चाहिए कि अपने उत्तेजित लिंग को योनि में प्रविष्ट करें। लेकिन इस समय किसी प्रकार का घर्षण न करे और अपना ध्यान किसी खेल, कोई मनोरंजक तस्वीर या अन्य चीजों की ओर रखे। कहने का अर्थ यह है कि अपना ध्यान संभोग क्रिया की कला में बिल्कुल न हो। इस स्थिति में पत्नी का भी सहयोग आवश्यक होता है। पत्नी को चाहिए कि वह भी शांत पड़ी रहे। किसी भी प्रकार का शारीरिक छेड़-छाड़ न करें जिससे पति उत्तेजित होकर स्खलित हो जाए। इस स्थिति में पति चाहे तो ढीली अवस्था में लेटा रह सकता है और पत्नी विपरीत आसन का प्रयोग कर सकती है। पत्नी चाहे तो इस स्थिति में पति के ऊपर अपनी योनि के अन्दर लिंग को लेकर शांत बैठी रह सकती है। इस स्थिति में लिंग उसकी योनि में पूरी तरह से समाया रहेगा, लेकिन दोनों में से कोई भी घर्षण की क्रिया न करें। इस क्रिया को करते समय जैसे ही पति को महसूस हो कि मैं स्खलित होने वाला हूं, वैसे ही उसे सनसनी महसूस होने लगेगी। ऐसा होते ही उसे अपनी पत्नी को संकेत दे देना चाहिए कि मैं स्खलित होने वाला हूं। इसके बाद पत्नी को चाहिए कि पति का संकेत पाकर तुरंत ही लिंग को योनि से बाहर निकालकर लिंगमुंड को अंगूठे तथा पहली दो अंगुलियों से पकड़कर दबाए, इससे स्खलन होना तुरंत ही रुक जाएगा। इस तरीके से सेक्स क्रिया करने से पति-पत्नी दोनों को भरपूर सेक्स का आनन्द मिलता है। इस तरीके से सेक्स क्रिया सप्ताह में एक बार ही करना चाहिए तथा इसका उपयोग लगभग 8 से 12 महीने तक कर सकते हैं। इस क्रिया को करने के लिए धैर्य और संयम की आवश्यकता होती है। इस क्रिया से किसी प्रकार का जादूई परिणाम या सफलता पाने की आशा नहीं करनी चाहिए, क्योंकि यह कोई मदारी का खेल नहीं कि पैसा फेकों और तमासा देखों। इस आसन को सामान्य भाषा में विपरीत आसन कहा जाता है। इस आसन में सबसे मुख्य जानने वाली बात यह है कि पति की उत्तेजना को भड़काने के लिए पत्नी उसके लिंग से छेड़छाड़ करती है। इस अवस्था में पत्नी बहुत अधिक कामोत्तेजित हो जाती है और पति के स्खलन होने के साथ ही स्खलित हो जाती है या फिर पति के स्खलन होने से पहले ही स्खलित होकर भरपूर आनन्द के केंद्र में डूब जाती है। इस क्रिया में पति-पत्नी दोनों को ही भरपूर आनन्द मिलता है तथा वे दोनों ही आलिंगन, चुम्बन और एक-दूसरे से छेड़-छाड़ का खेल खेलते रहते हैं। इस क्रिया में यदि पति का स्खलन समय तीन से चार बार टल जाए तो पत्नी स्वयं घर्षण के रफ्तार को बढ़ा सकती है और अन्तिम समय तक पूरे जोश तथा शक्ति के साथ घर्षण कर सकती है। इस प्रकार से स्खलित यदि पति-पत्नी एक साथ होते हैं तो उन्हें भरपूर चरम सुख मिलता है।
4. संभोग कला के समय को बढ़ाने के लिए गणना के तकनीक को अपनाने से शीघ्र स्खलन के समस्या से छुटकारा मिल सकता है। इस तरीके को करने के लिए पति को चाहिए कि पत्नी की योनि में लिंग को डालकर कुछ छणों तक किसी भी प्रकार की कोई हरकत और न घर्षण करें। इस स्थिति में जब भी पति को लगता है कि स्खलन की स्थिति टल चुकी हैं तब उसे धीरे-धीरे लिंग का घर्षण योनि में करना चाहिए। इस क्रिया में स्ट्रोक लगाकर घर्षण करने के क्रम को गिनते जाए, जैसेकि one...two...three...four....five.. आदि। गिनती का क्रम तब तक चलते रहने दे जब तक की स्खलन होने का महसूस न हो। जैसे ही स्खलन की आशंका होने लगे, वैसे ही स्ट्रोक लगाना बंद कर दें और स्खलन होने की आशंका टल जाए तो फिर से गिनती गिनते हुए स्ट्रोक लगा-लगाकर घर्षण करना शुरू कर दें। इस प्रकार से प्रतिदिन सेक्स क्रिया करने से सेक्स करने के समय को बढ़ाया जा सकता है।
5. सेक्स क्रिया के समय को बढ़ने के लिए उल्टी गिनती गिनकर सेक्स करने के तरीके को अपनाने से लाभ मिलेगा। इस क्रिया के द्वारा सेक्स करने के लिए लिंग को योनि में प्रवेश कराके धीरे-धीरे घर्षण करें तथा घर्षण की गिनती 10 तक गिने और फिर उल्टी गिनती गिने। पहले गिनती इस प्रकार गिने-10, 9, 8, 7, 6, 5, 4, 3, 2, 1 तथा इसके बाद 11, 12, 13, 14, 15, 16, 17, 18, 19, 20 फिर इसके बाद 20, 19, 18, 17, 16, 15, 14, 13, 12, 11, 10, 9, 8, 7, 6, ,5 ,4 ,3 , 2, 1 तक। इस क्रिया में चाहे तो 20 से 1 तक उल्टी गिनती गिन सकते हैं। इस प्रकार की सेक्स क्रिया में प्रत्येक दस बार घर्षण करने के बाद कुछ देर तक आराम करना चाहिए। इस क्रिया को कई दिनों तक करने से संभोग कला के समय को बढ़ाने में लाभ मिलता है। इस क्रिया को करने में यदि पहले दिन 40 या 50 घर्षण हो तो दूसरे दिन 60 तक ले जाएं तथा इस प्रकार से तीसरे, चौथे, पांचवे और इससे आगे के दिन घर्षण करने की संख्या को बढ़ाते चले जाएं। इस प्रकार से सेक्स करने से मस्तिष्क पर पड़ने वाला जोर हट जाता है जिसके परिणामस्वरूप वीर्य स्खलन के समय में वृद्धि होती है। इस क्रिया में यदि तीन से चार बार स्खलन होने का समय टल जाए तो संभोग करने के समय में वृद्धि हो जाती है और सेक्स करने का आनन्द हजार गुना बढ़ जाता है। इस क्रिया के द्वारा सेक्स क्रिया करने से यह लाभ मिलता है कि पत्नी एक से अधिक बार स्खलित होकर भरपूर आनन्द को प्राप्त करती है और स्वयं को भी अधिक आनन्द मिलता है।
6. वीर्य स्खलन होने के बाद दुबारा प्रयास- पति-पत्नी को सेक्स क्रिया करते समय यदि वीर्य स्खलन होने लगे तो बलपूर्वक वीर्य स्खलन रोकने का प्रयास नहीं करना चाहिए। संभोग के समय या योनि में लिंग प्रवेश करने के बाद तुरंत ही वीर्य स्खलन हो जाता है तो चिंता करने की कोई बात नहीं है और न ही घबराने की बात है। स्खलन हो जाए तो कुछ समय के लिए शरीर को ढीला छोड़ दें। लेकिन आराम पांच मिनट से अधिक न करें। इसके बाद दुबारा से पत्नी के जननेन्द्रिय अंगों से खेलते हुए मसलना, सहलाना, दबाना तथा चूमना चाहिए। इसके साथ ही पत्नी को कहे की लिंग को हाथ में लेकर दबाये, सहलाये तथा उछाले। ऐसा करने से दुबारा से लिंग उत्तेजना में आ जाता है और पुरुष सेक्स के लिए तैयार हो जाता है। लेकिन इस बार यह ध्यान रखना चाहिए कि जैसे ही वीर्य स्खलन होने लगे। वैसे ही अपने ध्यान से सेक्स को हटाकर किसी और चीज पर लगा लेना चाहिए। ऐसा करने से वीर्य स्खलन होना रुक जायेगा। इस क्रिया को दो से तीन बार अजमाने के बाद लिंग को उत्तेजना में लाकर उसे योनि में प्रवेश कराये और स्ट्रोक लगा-लगाकर घर्षण करना शुरू करें। इस प्रकार से सेक्स करने से संभोग का समय लम्बा हो जाता है और सेक्स का भरपूर आनन्द मिलता है तथा पत्नी को सम्पूर्ण आनन्द मिलता है।
सेक्स क्रिया करने के दौरान कुछ आत्म-संकेत-
आत्म-संकेत एक ऐसा सूचना निर्देश है जो आज तक मनोवैज्ञानिक रहस्य बना हुआ है और इसे शिक्षित लोग भी ठीक प्रकार से समझ नहीं पाये हैं। मन के रहस्य को समझना बहुत अधिक कठिन होता है। मन की शक्ति सभी प्रकार की शक्तियों का भंडार होता है। वैसे देखा जाए तो मन के तीन स्तर होते हैं- मन, चेतन तथा उपचेतन।
चेतन मन-
इसको मन का ऊपरी भाग कहते हैं। यदि मन को एक महासागर मान लिया जाए तो चेतन मन उसमें तैरते हुए बर्फ के पहाड़ के समान है और यदि बर्फ का पहाड़ मन है तो पानी के ऊपर दिखाई देने वाला भाग ही चेतन मन होगा तथा पहाड़ को जो भाग पानी के अन्दर डूबा हुआ है, वह अचेतन है। मनुष्य की जागी हुई अवस्था में उसका सभी कार्य, चिन्तन-मनन या क्रिया-कलाप चेतन मन द्वारा ही होता है। आज इस संसार में ज्ञान-विज्ञान के क्षेत्र में जो उन्नति हुई है या जो आश्चर्यजनक सफलताएं प्राप्त हुई है, वह चेतन मन की ही देन हैं।
उपचेतन मन-
यह चेतन और अचेतन के जड़ पर स्थित होता है और यह दोनों को जोड़ने वाली एक कड़ी होती है, जो स्मृतियों का भण्डार है। मनुष्य जो कुछ भी याद करता है वह इसी में संचित (जमा) होता है। यह स्वयंचालित होता है। बात-चीत करते समय या कुछ लिखते समय अचानक से कोई शब्द भूल जाते हैं लेकिन कुछ प्रयास करने के बाद वह शब्द याद आ जाता है। इस क्रिया में भूला हुआ शब्द तुरंत याद आ जाता है। कोई भी कार्य करते समय अचानक कोई चीज, घटना, पिक्चर या कोई व्यक्ति याद आ जाना ही उपचेतन का कार्य कहलाता है। बैठे-बैठे किसी की कल्पनाओं में खो जाना या किसी कार्य में खो जाना उपचेतन की एक लीला कहलाती है। वैसे देखा जाए तो यह पानी में डूबे उस पानी के समान होता है जो पानी की ऊपरी सतह को छूते (स्पर्श) रहते हैं।
अचेतन मन –
यह मन का वह जादुई भाग होता है जो एक रहस्यमय है। यह अनंत शक्ति का भण्डार होता है लेकिन अचेतन मन की शक्ति निष्क्रिय पड़ी रहती है। इसके क्रियाशील या जाग्रति हो जाने पर मनुष्य में अदभुत शक्तियां उत्पन्न हो जाती हैं और वह बहुत से ऐसे अदभुत कार्य को करने में सक्षम हो जाता है जिन्हें चमत्कार कहा जाता है। इसी अचेतन मन को प्रभावित करने के कई तरीको में से एक तरीका वह है जो आत्म संकेत या स्वयं संकेत कहलाता है। जिस व्यक्ति में इस प्रकार की इच्छा शक्ति उत्पन्न हो जाती है, वह किसी भी कार्य को करने में हिम्मत नहीं हारता है। वह जिस किसी कार्य में अपने हाथ को अजमाता है उसमें ही सफलता प्राप्त करता है।
वैसे आत्म-संकेत प्राप्त करना कोई कठिन कार्य नहीं होता है। इसके प्रभाव से आत्म-विश्वास में मजबूती आती है। इसके प्रभाव से घनघोर अन्धकार में भी उजाला उत्पन्न हो जाता है अर्थात आत्मविश्वास के कारण साहस उत्पन्न होता है। यदि किसी व्यक्ति में आत्म-संकेत की प्राप्ति हो जाए तो वह अकेला ही कब्रिस्तान में सो सकता है। ठीक इसी प्रकार सेक्स क्रिया करते समय पुरुष को अपने मन में यह आत्म-विश्वास रखना चाहिए कि मेरा वीर्य शीघ्र स्खलित नहीं होगा और मैं अपनी पत्नी को पूरी तरह से संतुष्ट करने में सक्षम हूं, हम दोनों पति-पत्नी का संभोग करने का समय लम्बा होगा तथा स्खलन पर मेरा पूरी तरह से नियंत्रण रहेगा। इस प्रकार की भावना अपने मन में कई बार करते रहे, चाहे आप बैठे हो, चल रहे हो या सोने के लिए बिस्तर पर लेटे हो। इस भावना को दोहराते रहे लेकिन माला न जपें। सोते समय भी इस भावना को तब तक दोहराते रहें जब तक की नींद न आ जाये।
आत्म-संकेत के लिए बार-बार प्रयास करने से आपकी भावना अचेतन मन में प्रवेश कर जाएगी और आत्म-विश्वास भी उत्पन्न हो जाएगा। लेकिन यह कार्य दो-चार दिनों का नहीं करना चाहिए। यह भावना स्वयं अपने मन को ही देना चाहिए। ध्यान को केन्द्रित करके इस भावना को दोहराते रहिये, इसके फलस्वरूप तीन से छः महीने के अन्दर आपकी समस्या समाप्त हो जाएगी। इसके फलस्वरूप शीघ्रपतन भी दूर हो जाएगा। इसके प्रयोग से पति-पत्नी का सेक्स क्रिया लम्बे समय तक चलता है और पति-पत्नी को भरपूर सेक्स का आनन्द मिलता है।
पत्नी द्वारा सेक्स क्रिया में सकारात्मक संकेत-
इस प्रकार के संकेत को करने के लिए पत्नी को चाहिए कि जब पति गहरी नींद में सो रहा हो तब उसके कान में धीरे-धीरे फुस-फुसाते हुए कहें कि आप में पूर्ण पौरुष शक्ति विद्यमान है, आप देर तक संभोग क्रिया कर सकते हैं, आप जल्दी स्खलित नहीं होंगे, आप मुझे पूरी तरह से सेक्स का आनन्द दे सकते हैं। इस प्रकार की बातें पत्नी को प्रत्येक रात में कम से कम तीन-चार बार पति को अवश्य कहनी चाहिए।
इसके लिए मैं आपको एक बात यह भी बताना चाहूंगा कि जब भी पुरुष सो जाता है तब उसका चेतन मन तो निष्क्रिय हो जाता है, लेकिन अवचेतन मन पूर्ण रूप से क्रियाशील बना रहता है। अचेतन मन में दबी हुई इच्छाएं ही स्वप्न में बदलकर प्रकट होती हैं और दबी हुई इच्छाएं ही पूर्ण हो जाती हैं। इसलिए आपके द्वारा दी गई भावना ही पति के अचेतन मन में प्रवेश करेगी और बार-बार कई दिनों तथा कुछ महीनों तक यदि आप धैर्य तथा संयमपूर्वक भावना देती रहेंगी तो उनका अचेतन मन क्रियाशील हो जाएगा और आपके पति में सेक्स के प्रति आत्म-विश्वास जाग उठेगा। इससे पति को शीघ्रपतन से छुटकारा भी मिल जाएगा तथा उनमें सेक्स क्रिया करने की क्षमता में भी वृद्धि हो जाएगी। इसके प्रयोग से आपके दाम्पत्य जीवन में रंगीन उमंग, उल्लास तथा आनन्द का संचार होने लगेगा।
लिंग मुण्ड का संवेदनशील हो जाना-
बहुत से ऐसे पुरुष होते हैं जिनका लिंग बहुत अधिक संवेदनशील होता है और जब स्त्री की गर्म, गीली तथा उत्तेजित योनि से उसका सम्पर्क होता है तो वे बहुत अधिक कामोत्तेजक होकर स्खलित हो जाते हैं। इस स्थिति से बचने के लिए सबसे अच्छा उपाय यह है कि आप अपने लिंगमुण्ड की त्वचा को नीचे की ओर खिसका करके खुला रखें। यदि लिंगमुण्ड अधिक ढीला हो और छल्ले से फिसलकर लिंगमुण्ड को बार-बार ढक लेता हो तो खतना कर लेना अच्छा होता है। खतना करा लेने से लिंगमुण्ड स्थायी रूप से खुला रहेगा और कपड़ों को लगातार घर्षण से उसकी अतिसंवेदनशीलता कुछ दिनों में खत्म हो जायेगी और संभोग भी अधिक समय तक चलेगा। खतना कर लेना लिंग की सफाई रखने की दृष्टि से भी आवश्यक है। लिंगमुण्ड को सभी समय ढके रहने से छल्ले के पीछे एक श्वेत रंग का मैल जमने लगता है जो बदबू उत्पन्न करने के अतिरिक्त कभी-कभी खुजली भी उत्पन्न कर देता है। इससे संक्रमण की भी आशंका बनी रहती है। इसलिए खतना करायें या न करायें लेकिन लिंग-मुण्ड को हमेशा खुला रखें।
लिंग की अतिसंवेदनशीलता को दूर करने के लिए एक यह तरीका है कि एक कटोरे में गर्म पानी लें और दूसरे कटोरे में ठंडा पानी लें। ध्यान रखे कि पानी इतना गर्म हो जितना लिंग की त्वचा सह सके, ज्यादा गर्म पानी से लिंग में जलन हो सकती है। दूसरे कटोरों में भी पानी ज्यादा ठंडा न लें। इस क्रिया को करने के लिए शुरू में पानी उतना ही गर्म तथा ठंडा रखें कि आसानी से सहन हो जाये। बाद में धीरे-धीरे पानी की उष्णता एवं शीतलता बढ़ाई जा सकती है। लेकिन हर स्थिति में सहनशीलता का ध्यान रखें अन्यथा लाभ के बजाय हानि हो सकती है। क्रिया को करने के लिए पहले अपने लिंग को गर्म पानी में डुबायें और लगभग 30 सेकण्ड तक डुबाकर रखें। इसके बाद लिंग को पानी से निकालकर ठंडे पानी के कटोरे में डुबा दें। इस बार भी लगभग 30 सेकण्ड तक लिंग को पानी में डुबाकर रखे। इस क्रिया को पहले दिन कम से कम पांच बार करें। इस क्रिया में यह ध्यान रखें कि अण्डकोष न तो पानी से स्पर्श करें और न ही कटोरी को। पानी में केवल लिंग को ही डुबायें और इस क्रिया को प्रतिदिन बढ़ाते जाए। धीरे-धीरे इस क्रिया का अभ्यास हो जाने तथा सहनशीलता बढ़ जाने पर लिंग को लगभग दो मिनट तक पानी में डुबाए रखें।
आप कभी भी इस बात से भयभीत न हो कि पानी में इस तरह से लिंग डुबाने से हानिकारक प्रभाव हो सकता है। यह क्रिया पूर्ण रूप से वैज्ञानिक है। क्योंकि ठंडे पानी से रक्त का प्रवाह त्वचा की ओर तेज गति से होता है और गर्म पानी से रक्त का प्रवाह पीछे की ओर हटता है। अतः कहा जा सकता है कि ठंडे पानी और गर्म पानी के प्रयोग से लिंग की रक्तवाहिनियों तथा शिराओं में रक्त संचार की गति तेज हो जायेगी और लिंग में एक प्रकार की नई शक्ति तथा चेतना का संचार होगा तथा इसके साथ ही लिंग-मुण्ड की संवेदनशीलता भी खत्म हो जाती है। इस क्रिया को करने के फलस्वरुप संभोग को देर तक बनाए रखना तथा योनि में लिंग से तेज गति से घर्षण करने की शक्ति में वृद्धि भी हो जाती है।
सूर्य स्नान क्रिया से सेक्स शक्ति को बढ़ाना-
सूर्य स्नान की क्रिया को अपनाने से यौन-शक्ति में वृद्धि होती है। इस क्रिया को करने के लिए सूर्य के किरणों को लिंग पर पड़ने देना चाहिए। सूर्य की किरणों में विटामिन डी होता है। जब सूर्य की किरणों को लिंग पर डाला जाता है तो इसके साथ ही मुक्त हवा का प्रभाव पड़ता है जिसमें उसमें रक्तंचार की क्रिया को तेज हो जाती है तथा इससे नई शक्ति भी जाग जाती है। यदि लिंग को नंगा रखना संभव न हो तो एक पतले कपड़े से ढ़ककर रखा जा सकता है। इस क्रिया को 5 मिनट से लेकर 30 मिनट तक कर सकते हैं।
सिट्ज बाथ द्वारा यौन-शक्ति में वृद्धि करना-
सिट्ज बाथ करने के लिए ठंडे तथा गर्म पानी का उपयोग किया जा सकता है। इस बाथ को करने से संभोग क्रिया के समय में वृद्धि होती है तथा पौरुष शक्ति का भी विकास होता है। यह क्रिया एक प्रकार की जल चिकित्सा की क्रिया है जो वीर्य तथा पौरुष शक्ति की वृद्धि के लिए उपयोग में ली जाती है। इस बाथ की क्रिया को कम से कम पांच मिनट तक पानी के तापमान के अनुसार करना चाहिए। यह एक प्रकार की स्नान करने की क्रिया होती है।
इस स्नान को करने के लिए सुबह का समय अच्छा होता है लेकिन इसे करने के लिए समय का कोई बंधन नहीं होता है। वैसे सुविधा के अनुसार इस क्रिया का प्रयोग किसी भी समय किया जा सकता है। इस स्नान की क्रिया में गर्म और ठंडे पानी का स्नान एक के बाद एक करते रहना चाहिए। गर्म पानी का तापमान 110 डिग्री से लेकर 115 डिग्री फारेनहाइट तक होना चाहिए।
सिट्ज बाथ को करने के लिए एक टब में पानी भर ले, ध्यान रहे कि टब का पानी इतना रहे कि पेट तक का भाग उसमें डूब जाये। सिट्ज बाथ करने के लिए उस तरीके का इस्तेमाल करें, जिसमें पेट तो पानी में रहे लेकिन टांगे टब के बाहर ही रखे। यह क्रिया 8 से 10 मिनट तक करते रहना चाहिए। ठंडे तथा गर्म पानी का टब एक-दूसरे के पास ही रखे ताकि एक से निकालकर दूसरे में आसानी से बैठना सम्भव हो। प्रत्येक टब में 8 से 10 मिनट तक सिट्ज बाथ करने से सेक्स क्रिया के समय तथा पौरुष शक्ति में वृद्धि हो होती है। इसके प्रयोग से अंडकोष, कब्ज, मूत्र से सम्बंधित रोग तथा अंडकोष की वृद्धि आदि रोग ठीक हो जाते हैं।

Monday 17 December 2012

चूसन - विधि

  चूसन - विधि



इस धरती पर शायद ही ऐसा कोई पुरुष होगा जिसे अपना  चुसवाना अच्छा नहीं लगता होगा। ज़्यादातर लोग इसकी कामना ही करके रह जाते हैं क्योंकि उनकी पत्नी या प्रेमिका इस क्रिया में दिलचस्पी नहीं रखतीं। कुछ लड़कियां इसे गन्दा समझती हैं और कई ऐसी हैं जिन्हें पता नहीं कि क्या करना होता है।
सबसे ज़रूरी जानने योग्य बात तो यह है कि लंड चूसना एक सुरक्षित क्रिया है जिससे लड़की को कोई भय नहीं होना चाहिए। लंड चूसने से वह गर्भ धारण नहीं कर सकती और अगर वह कुंवारी है तो अपने कुंवारेपन को कायम रखते हुए अपने प्रेमी को अद्भुत आनंद प्रदान कर सकती है। पुरुष के लिए यह सम्भोग के समान आनंद-दायक क्रिया होती है। अगर उसकी प्रेमिका प्यार से उसका लंड चूसती रहे तो उसे सम्भोग की कमी महसूस नहीं होगी। उधर लड़की को भी इसक्रिया में बहुत आनंद आ सकता है बशर्ते उसे सही तरीका आता हो और उसके मन में इस क्रिया के प्रति कोई गलत धारणाएँ ना हों।

इस लेख के द्वारा मैं लड़कियों के लिए लंड चूसने और लड़कों के लिए लंड चुसवाने की सही विधि बताऊँगा जिससे आप इस अति-सुखदायक क्रिया का पूरा आनंद उठा सकेंगे। इस क्रिया में ज्यादा सक्रिय भूमिका लड़की की होती है और लड़के को आनंद उठाने के अलावा कुछ ज्यादा नहीं करना होता। ठीक इसी प्रकार चूत चुसवाने की क्रिया भी होती है जिसमे लड़का क्रियाशील होता है और लड़की सिर्फ आनंद उठाती है। चूत चुसवाने और चूसने की विधि अगले लेख में प्रस्तुत करूंगा।
तैयारी- पुरुष की
लंड चुसवाने के लिए यह अत्यंत ज़रूरी है कि लंड और उसके आस-पास का इलाका एकदम साफ़-सुथरा होना चाहिए। यह हर पुरुष की ज़िम्मेदारी है कि अपने लिंग को हर समय साफ़ रखे, ख़ास तौर से यौन-संसर्ग के समय। यह उस समय और भी ज़रूरी हो जाता है जब अपने लिंग को किसी के मुँह में डालने की उम्मीद रखते हों। लंड सफाई को एक मजेदार रूप दिया जा सकता है अगर आप के पास बाथरूम की सहूलियत है या तो अपने लिंग को आप खुद पानी से धो कर साफ़ कर सकते हो या आपकी प्रेमिका यह कर सकती है। वैसे भी मैथुन से पहले साथ-साथ स्नान करना बहुत अच्छा रहता है। स्नान के दौरान एक दूसरे के शरीर के साथ खिलवाड़ कर सकते हैं और सम्भोग के लिए उत्तेजना पैदा कर सकते हैं। साथ-साथ स्नान एक बहुत ही मज़ेदार रति-क्रिया हो सकती है। लिंग साफ़ करते वक़्त लंड के सुपारे की ऊपरी परत को अच्छे से खोल कर साफ़ करें और नाभि से नीचे तथा जाँघों से ऊपर के सभी हिस्से साफ़ कर लें। ख़ास तौर से चूतड़ और गांड के छेद को भी धो लें। लड़की को लंड चूसते वक़्त तुम्हारी निम्न शरीर की कोई दुर्गंध नहीं आनी चाहिए। अगर पहली बार में दुर्गंध आएगी तो वह दुबारा कभी लंड चूसने के लिए राज़ी नहीं होगी।

बेहतर होगा अगर लड़के अपने जघन के बालों (अंडकोष के आस-पास के बाल) को क़तर के थोड़ा छोटा कर लें। यह ज़रूरी नहीं है लेकिन ऐसा करने से लड़की को सहूलियत होगी। ध्यान रखें कि बाल ज्यादा छोटे नहीं काटें नहीं तो लड़की के मुँह में चुभेंगे।
तैयारी- लड़की की
पहली बार लंड चूसने के लिए सबसे महत्वपूर्ण तैयारी मानसिक होती है जिसमें लंड के प्रति गलत धारणाओं को मन से निकालना होगा। लंड अगर साफ़ सुथरा हो तो एक अत्यंत प्यारा और रोचक अंग होता है। किसी भी आदमी के लंड के कई रूप होते हैं और यह अलग-अलग अवस्थाओं में अपना रूप, आकार और माप बदलता रहता है। यह छोटा और बड़ा हो सकता है, सख्त या मुलायम हो सकता है और लचीला या कठोर हो सकता है। लंड अपना रूप अपने आप बदलता है और इसमें पुरुष की मर्ज़ी नहीं चलती। अच्छा ही है क्योंकि अगर पुरुष अपनी मर्ज़ी से अपने लंड को खडा कर पाता तो लड़कियों के लिए जीवन दूभर हो जाता।
साफ़ सुथरे लंड में कोई दुर्गंध नहीं होती और चूत के मुक़ाबले इसमें से कोई द्रव्य नहीं रिसता जब तक वह वीर्य नहीं उगलता।

लड़कियों को यह भी पता होना चाहिए कि जब एक लंड उत्तेजित हो जाता है (यानि खड़ा हो जाता है) तो उसकी पेशाब की नली बंद हो जाती है और वह मूत्र नहीं कर सकता। कहने का मतलब कि वह तुम्हारे मुँह में पेशाब नहीं कर सकता। उत्तेजना के बाद जब लंड शिथिल पड़ जाता है तो भी पेशाब करने के लिए कुछ समय लगता है। तो यह डर भी लड़कियों को नहीं होना चाहिए।
 मानसिक तौर से लड़कियों को लंड से प्यार करना चाहिए क्योंकि शरीर के दूसरे अंगों की माफ़िक़ इसको भी चूमा और चूसा जा सकता है। बहुत सी लड़कियां तो लंड चूसने में बहुत मज़ा लेती हैं। मानसिक तैयारी के अलावा कोई ख़ास तैयारी लड़कियों को नहीं करनी होती। अगर तुम चाहो तो एक अभ्यास कर सकती हो जिससे उत्तेजित लंड को पूरा चूसने में कठिनाई नहीं होगी।
मुँह का अभ्यास
इस अभ्यास का उद्देश्य धीरे धीरे अपने मुँह के आकार को बड़ा करना है जिससे एक पूरा मर्दाना लंड तुम्हारे मुँह में समा जाये और तुम्हें दम घुटने या सांस रुकने की समस्या ना हो। इसके लिए तुम्हें कुछ समय तक अभ्यास करना होगा क्योंकि यह योग्यता अचानक नहीं आ सकती। 
 लेकिन इसका मतलब यह नहीं है कि तुम अभी से लंड नहीं चूस सकती हो। लंड तो चूस सकती हो लेकिन इसमें महारत हासिल करने के लिए मुँह और गले को इस काबिल बनाना होगा कि 5-7 इंच का तना हुआ लंड मुँह में निगल सको। यह लंड चूसने की उन्नत स्थिति है और हर लड़की को इसे पाने की कोशिश करनी चाहिए क्योंकि इस कला को पाने के बाद तुम किसी भी मर्द को अपने वश में आसानी से कर सकती हो।
इसके लिए तुम्हें क्रमशः बढ़ते हुए आकार के ऐसे फल या सब्जियाँ चाहिएँ जिन्हें तुम मुँह में ले सकती हो। इनमें केला, खीरा, ककड़ी, लम्बे बैंगन इत्यादि उचित हैं। शुरू में छोटे आकार के फल इस्तेमाल करें और धीरे धीरे एक विकसित लंड के आकार से थोड़े बड़े आकार के फल के साथ अभ्यास करें।

अभ्यास करने के लिए जीभ को बाहर रखते हुए फल को मुँह के जितना अन्दर डाल सकती हो डाल कर अन्दर-बाहर करो। जब एक आकार के फल के साथ मुँह की क्षमता हासिल हो जाए तो उससे थोड़े बड़े आकार के फल के साथ अभ्यास करो। शुरू में मुश्किल होगी लेकिन धीरे-धीरे मुँह आदि हो जायेगा और 6-7 इंच लम्बे और 2-3 इंच चौड़े आकार के केले या खीरे अपने मुँह में ले पाओगी। जब ऐसा हो जाये तो तुम्हारा अभ्यास पूरा हो गया है और तुम अपने आदमी को अपने अधीन करने के लिए तैयार हो। ध्यान में रखने वाली बात यह है कि हमारी जीभ हमारे मुँह में काफी जगह ले लेती है।इसे जितना बाहर रखा जाये तो मुँह में लंड के लिए उतनी ज्यादा जगह बनेगी और लंड उतना ज्यादा अन्दर लिया जा सकता है।
लंड चूसने के लिए आसन
लण्ड चूसने के लिए कुछ सामान्य आसन इस प्रकार हैं। जब थोड़ा सामर्थ्य आ जाये तो अपनी मर्ज़ी से नए नए आसन बना सकते हो।
1- लड़का खड़ा हो और लड़की घुटने के बल बैठ कर लंड मुँह में ले।
2- लड़का बिस्तर पर लेटा हो और लड़की उसके पाँव की तरफ बैठी हो और आगे झुक कर लंड मुँह में ले।
3- लड़का बिस्तर पर लेटा हो और लड़की उसके सीने पर उसकी तरफ पीठ करके बैठी हो।
4- लड़की बिस्तर पर लेटी हो और लड़का ऊपर से आ कर उसके मुँह को लंड से चोदने की स्थिति में हो।
5- लड़का लड़की दोनों लेटे हों और दोनों के गुप्तांग परस्पर एक-दूसरे के मुँह के पास हों। (69 अवस्था)
पहली पहली बार लंड चूसने के लिए बताया गया दूसरा या तीसरा आसन बेहतर रहेगा क्योंकि इसमें लड़की अपनी मर्ज़ी के मुताबिक़ कार्यवाही कर सकती है। पहले और चौथे आसनों में लड़का आक्रामक हो सकता है। अतः इसे थोड़े अभ्यास के बाद और भरोसे वाले लड़के के साथ ही करना चाहिए। पाँचवा आसन तब ग्रहण करना चाहिए जब दोनों परस्पर एक-दूसरे के गुप्तांग चूसना चाहते हों।

लंड से जान-पहचान
अगर तुम लंड को पहली बार इतना नज़दीक से देख रही हो या पहली बार छू रही हो तो इसे बेझिझक हाथ में लेकर इसका निरीक्षण करो। उसको हर तरफ से उठा कर और घुमा कर देखो। अगर लंड खता हुआ नहीं है (कई पुरुषों की शिश्न-मुण्ड के ऊपर की त्वचा कटी होती है, इसे ही खता हुआ कहते हैं) तो उसके सुपारे के ऊपर की चमड़ी पीछे खींच कर सुपारे को उघाड़ कर देखो। सुपारे के शीर्ष पर एक छेद होगा जिसमें से वीर्य और पेशाब दोनों निकलते हैं पर एक समय पर सिर्फ एक ही निकल सकता है। जब लंड खड़ा होता है तो पेशाब नहीं निकल सकता और जब शिथिल होता है तो आम तौर पर वीर्य नहीं निकलता।
लंड का सुपारा सबसे संवेदनशील हिस्सा होता है ख़ास तौर से अगर वह खता हुआ नहीं है तो। खते हुए लंड तुलना में कम संवेदनशील होते हैं। लंड के छड़ की त्वचा मुलायम होती है और सुपारे के मुक़ाबले में कम नाज़ुक होती है। लंड की जड़ के पास दो अंडकोष होते हैं जिनकी त्वचा खुरदुरी होती है और वे पूरी तरह बालों से ढके होते हैं। अंडकोष में वीर्य रहता है और वे ठण्ड में सिकुड़ कर और गर्मी में फैल कर वीर्य को सही तापमान पर रखते हैं। अंडकोष भी बहुत संवेदनशील होते हैं। हालाँकि लंड के मुक़ाबले इनमें स्पर्श-बोध कम होता है लेकिन ज़ोर से दबाने से या चोट लगने से इनमें बहुत दर्द होता है। लंड चूसते समय अंडकोष को भी चूसा जा सकता है लेकिन इनको मुँह में लेते वक़्त सावधानी बरतनी चाहिए।

Sunday 16 December 2012

स्त्रियों की कामोत्तेजना कम होना


संभोग क्रिया के समय पति-पत्नी जब एक-दूसरे को पूर्ण रूप से सहयोग देकर भरपूर आनन्द प्राप्त करते हैं तो उनका संबंध एक-दूसरे के प्रति बहुत अधिक गहरा होता है। इस क्रिया में पुरुष को मुख्य रूप से सेक्स का कर्ता माना गया है। इसलिए इस क्रिया में पुरुष का तो पूरा सहयोग होता ही है लेकिन इसके साथ-साथ इसमें स्त्री का भी सहयोग होना बहुत आवश्यक है। आज भी भारत जैसे देश में यह देखा गया है कि स्त्रियों में सेक्स को लेकर अभी तक खुलापन नहीं आ पाया है। आज सेक्स क्रिया में पुरुष जैसा तरीका अपनाता है, ठीक वैसा तरीका बहुत सी स्त्रियां नहीं कर पाती हैं। इस प्रकार के व्यवहार के बावजूद भी वे सुख देती और लेती हैं। इसके अतिरिक्त कुछ स्त्रियां ऐसी भी होती हैं जो संभोग क्रिया के समय में एकदम खमोश पड़ी रहती हैं। ऐसा लगता है कि उसके शरीर में प्राण ही नहीं है। उनका हृदय तो धड़कता रहता है लेकिन उसमें सेक्स के प्रति भावनाएं महसूस नहीं होती हैं और न ही अनुभूति होती है। ऐसी स्त्रियां बेजान मूर्ति की तरह पड़ी रहती हैं। ऐसी स्त्रियों के साथ संभोग क्रिया करते समय पुरुष को ऐसा लगता है कि मानो वह किसी निर्जीव शरीर से संभोग कर रहा है। ऐसी स्त्रियों को कम उत्तेजना वाली स्त्री कहते हैं।

कुछ स्त्रियां ऐसी भी होती हैं जोकि सेक्स के समय में किसी प्रकार का सहयोग नहीं देती हैं। ऐसी स्त्रियों का विवाह हो जाता है तो वह अपने पति से भी सेक्स संबंध बनाना नहीं चाहती लेकिन वह अपने पति को मना भी नहीं कर पाती। वह सेक्स संबंध बनाने से अपने पति को इसलिए मना नहीं कर पाती क्योंकि पहली रात के दिन अपने तन को पति को सौंपना एक मजबूरी हो जाती है लेकिन संभोग क्रिया के समय वह अपनी ओर से न तो कोई सहयोग देती है, न ही रुचि लेती है और न ही किसी प्रकार से उत्साह दिखाती है। उस रात अगर पति उससे कोई बात भी करना चाहता है तो वह उसे भी ठीक प्रकार से सुनना नहीं चाहती। उस समय तो उसकी यह इच्छा तथा कामना होती है कि उसका पति उसे छोड़ दे तथा एक तरफ जाकर लेट जाए। वह मन ही मन सोचती है कि जितना जल्दी हो सके पति जी मुझे छोड़कर, अपना काम करके एक तरफ होकर लेट जाए। बहुत से विद्वानों का मानना यह है कि ऐसी स्त्रियां सेक्स क्रिया करते समय पति को कुछ भी सहयोग नहीं देती लेकिन जैसे-जैसे सेक्स क्रियाएं बढ़ने लगती हैं, उसके शरीर से पति छेड़खानी करने लगता है वैसे-वैसे संभोग क्रिया में वह अपने आप को शामिल करने लगती है। 

ऐसी स्त्रियां जब सेक्स का आनन्द लेने लगती हैं तो पति को कसकर सीने से लगा लेती हैं, सीने से भींचने तथा कंठ से मदहोशी भरी सिसकियां लेने लगती हैं। जब वह पूरी तरह से चरम सुख की ओर बढ़ने लगती हैं तो अधिक से अधिक सेक्स का आनन्द लेने लगती हैं। उसकी शरीर की उत्तेजना इस समय और भी तेज हो जाती है तथा अंत में फिर मूर्ति के समान निर्जीव हो जाती है। लेकिन इस समय उसका चेहरा शांत और आनन्द से भरा हुआ लगता है। सेक्स चिकित्सकों का यह भी मानना है कि जो स्त्रियां संभोग क्रिया के समय अधिक आनन्द और उत्तेजना प्राप्त करती हैं, पति के प्रति उसका लगाव उतना ही अधिक और प्यार भरा होता है। संभोग क्रिया शुरू करते समय या भरपूर आनन्द लेने के बाद भी ऐसी स्त्रियों के शरीर में किसी प्रकार की कोई भी हलचल दिखाई नहीं देती है। जब पति संभोग क्रिया को समाप्त करता है तो वह चैन की सांस लेती है और मन ही मन सोचती है कि आज रात तो बच गई या बला टली।
 ऐसी स्त्रियों के संभोग क्रिया करने से पुरुष को किसी प्रकार का सेक्स का आनन्द नहीं मिलता है। कई बार तो ऐसी स्थिति पैदा हो जाती है कि स्त्री के साथ पुरुष को संभोग क्रिया करने का मन नहीं करता। पति को ऐसी स्त्रियों से बहुत अधिक नाराजगी होती है और दोनों में एक-दूसरे के प्रति बहुत अधिक अनबन भी होने लगती है। अक्सर ऐसे पति-पत्नी एक-दूसरे से बहुत अधिक नाखुश होते हैं।
संभोग क्रिया वह प्रक्रिया होती है जिसमें शरीर और मन दोनों को ही ऊर्जा प्राप्त होती है। इस क्रिया में वह सुख और आनन्द मिलता है जिसमें व्यक्ति को ऊर्जावान बनाये रखने की शक्ति होती है। यदि संभोग क्रिया के दौरान इस प्रकार का सुख नहीं मिलता है तो पति-पत्नी दोनों के ही जीवन में इसका कोई महत्व नहीं रह जाता है। ऐसे दम्पतियों में कई अवसरों पर तो यह भी देखा गया है कि पति किसी दूसरी स्त्री से संबंध बनाने पर मजबूर हो जाता है और अपनी पत्नी को तलाक देने के लिए सोचने लगता है।

आज के समय में इस तरह की स्त्रियों की संख्यां बढ़ने लगी है। सेक्स क्रिया से संबंधित कई प्रकार के रोग स्त्रियों को होने के अलावा पुरुषों को भी अधिक हो रहे हैं। कुछ पतियों की पत्नी तो सेक्स क्रिया के समय में उत्तेजना भरी व्यवाहार करती हैं। ऐसे संबंध पतियों को अच्छे नहीं लगते हैं क्योंकि इस संबंध से उन्हें सेक्स का पूरा सुख नहीं मिलता है। कई बार तो बहुत से ऐसे पुरुष भी देखे गये हैं जो स्त्रियों में उत्तेजना लाने की औषधि लेने के लिए चिकित्सक से बातें करते हैं। वे चिकित्सक से यह भी पूछते हैं कि मेरी पत्नी में सेक्स उत्तेजना क्यों नहीं है। ऐसा होने का क्या कारण है?
वैसे देखा जाए तो पति-पत्नी दोनों में से किसी को भी सेक्स समस्या है तो इससे दोनों ही पक्ष प्रभावित होते हैं। क्योंकि सेक्स क्रिया में पति-पत्नी दोनों का ही योगदान बराबर होना चाहिए, चाहे वह स्त्री हो या पुरुष। आपने बहुत से लोगों को यह कहते हुए सुना होगा कि ताली कभी एक हाथ से नहीं बजती है, इसके लिए दोनों हाथ का होना जरूरी होता है। अतः इस उदाहारण से यह स्पष्ट हो जाता है कि सेक्स क्रिया में भी पति-पत्नी दोनों का बराबर भागीदारी होनी जरूरी है तभी वे भरपूर सेक्स का आनन्द ले पायेंगे।

सेक्स क्रिया में यदि किसी भी दम्पति को संभोग क्रिया का पूरा आनन्द न मिले तो इसके लिए किसी एक को जिम्मेदार मानना उचित न होगा। वैसे हम यहां पर केवल स्त्रियों की कामोत्तेजना कम होने की चर्चा कर रहे हैं। वैसे स्त्रियों की कामोत्तेजना कम होने का जिम्मेवार कुछ रूप से पुरुष भी होता है क्योंकि यदि किसी की पत्नी को कामोत्तेजना कम होने की समस्या हो तो उसे अपनी पत्नी से नाराज न होकर उससे खुलकर बात करनी चाहिए कि आखिर किस कारण से तुम्हें सेक्स से डर लगता है, क्या कारण है या कोई समस्या है तो मुझे बताओं, मैं उसका समाधान निकाल सकता हूं। किसी भी समस्या का हल तभी हो सकता है जब आपको समस्या का कारण, लक्षण या होने का समय ठीक तरह से पता लग जाये। पत्नी से आपको उसके रोग के बारे में पता लगाने से यह मालूम हो जायेगा कि उसकी कामोत्तेजना कम होने का क्या कारण है और इन कारणों का पता लग जाने पर ही आप उनका ठीक ढंग से इलाज करा सकते हैं।
वैसे देखा जाए तो स्त्रियां अचानक से कामोत्तेजना कम होने का शिकार नहीं होती है, बल्कि इसके होने के पीछे कई कारण हो सकते हैं जो एक लम्बे समय बाद स्त्री को कामोत्तेजना कम होने की ओर धकेल देती है। जब स्त्री-पुरुष के सेक्स संबंध में स्त्री किसी प्रकार की प्रतिक्रिया व्यक्त नहीं करती है तो उसे ही कामोत्तेजना कम होना कहा जाता है।

स्त्रियों की कामोत्तेजना कम होने के कुछ कारण -
1. बहुत सी स्त्रियां जब यौवनावस्था में प्रवेश करती हैं तो उनके मन में यह धारणा बैठ जाती है कि सेक्स करना पाप है, यह एक गंदा कार्य है, इसके बारे में बात नहीं करनी चाहिए, इसको करते हुए मुझे कोई देख लेगा तो क्या कहेगा आदि। इस प्रकार की भावना सगे संबंधियों के द्वारा बचपन से ही बच्चों के दिमाग में बिठानी शुरू कर देते हैं। ये भावना ही समय के साथ-साथ लड़कियों के मन में बैठनी शुरू हो जाती है। ऐसी लड़कियों की जब शादी होती है तो वे अपने पति के साथ सेक्स क्रिया करने से कतराती हैं और इसका प्रभाव साफ से दिखाई पड़ता है। देखा जाए को इस प्रकार मन की भावना उस समय और भी तेज हो जाती है जब उसका पति सेक्स क्रिया करने के लिए छेड़-छाड़ करता है। वैसे देखा जाए तो आज के समय में इस प्रकार के कारण ठीक ढंग से दिखाई नहीं देते हैं क्योंकि समय तेजी के साथ बदल रहा है लेकिन आज भी बहुते से ऐसे परिवार हैं जो अपने बच्चे को सेक्स के बारे में इस प्रकार की शिक्षा देते हैं कि बेटा ये गंदी बात है, ऐसा मत करो, सेक्स गंदी बात होती है, इसे न करें आदि।


2. विवाह के बाद जब स्त्रियां पहली रात पति के साथ सेज पर होती हैं और आने वाले पल के बारे में सोचती हैं तो वह मन ही मन अधिक परेशानी महसूस करती हैं। उसके न कहने के बावजूद भी जब पति सेक्स क्रिया करने के लिए जबर्दस्ती करता है तो स्त्री को लगता है कि वह कोई पाप कर रही है, ऐसा करना नहीं चाहिए, यह गलत बात है। इस प्रकार की भावना मन में आते ही उसको काफी डर लगने लगता है जिसके कारण उसके शरीर की सारी गर्मी जो सेक्स क्रिया करने के लिए होनी चाहिए, वह कम होने लगती है और बिना किसी कारण से उसका सारा शरीर पुतले के समान हो जाता है और अपने शरीर को पति को समर्पण कर देती है। लेकिन सेक्स क्रिया में वह किसी प्रकार का सहयोग नहीं देती है। ऐसी स्त्रियों को न ही सेक्स का आनन्द और न ही उत्तेजना महसूस होती है। इस स्थिति में पति को पता चल जाता है कि उसकी पत्नी को यह समस्या है। इस समय यदि उसका पति उसका हल सही से निकाल देता है तो वह कुछ दिनों में ठीक हो जाती है नहीं तो उसकी यह समस्या बढ़ती जाती है।

3. बचपन के समय में ही कुछ लड़कियां ऐसी होती हैं जो किसी पुरुष को पसंद कर लेती हैं और यदि किसी कारण से उसका विवाह उस लड़के के साथ नहीं हो पाता, अर्थात मनचाहा पुरुष न मिल पाने के कारण से उसकी कामोत्तेजना कम होने लगती है। यह रोग उसे इसलिए होता है कि वह जिस पुरुष को दिलोजान से प्यार करती है तथा उसके साथ सातों जन्म जीने मरने का कसम खाती है, उसके साथ अपने भविष्य के सपने बुनती हैं। उससे किसी कारणवश विवाह न हो पाने से वह दिल ही दिल दुःखी होती रहती है। जब उसका विवाह किसी अन्य पुरुष के साथ हो जाता है तो वह उसे अपनी जिंदगी में पसंद नहीं कर पाती। इसलिए ही वह पति के साथ सेक्स क्रिया के समय एकदम ठंडी पड़ी रहती है। इस स्थिति में वह अपना शरीर तो पति को सौंप देती है लेकिन मन उसका अपने पुराने प्रेमी के पास ही रहता है। बहुत से लोगों का यह विचार है कि शादी के बाद स्त्रियों की ऐसी समस्या खत्म हो जाती है और अपने पुराने प्रेमी को भुला देती है लेकिन कुछ स्थिति में ऐसा भी देखा गया है कि समस्या ठीक न होकर बढ़ जाती है। कुछ मामले में तो ऐसा भी देखा गया है कि लड़कियां आत्महत्या कर लेती हैं या अपने प्रेमी के साथ अवसर पाकर शर्मों हया को छोड़कर भाग जाती हैं। बहुत सी स्त्रियां तो ऐसी भी होती हैं जो मानसिक रूप से कभी भी अपने पति को स्वीकार नहीं कर पाती हैं। इस समस्या के बारे में बहुत से चिकित्सकों का यह भी कहना है कि बहुत सी स्त्रियां तो ऐसी भी हैं जो अपने प्रेमी से इतना अधिक प्यार करती हैं कि किसी अन्य पुरुष के साथ शादी होने के बाद पहली रात को पति द्वारा सेक्स करने को बलात्कार समझती हैं और वह उसका विरोध करती हैं। जो इस तरह की स्थिति से समझौता नहीं कर पाती वह हालात से समझौता कर लेती हैं लेकिन फिर भी सेक्स के बारे में कामोत्तेजना कम होने का शिकार हो जाती हैं।

4. बहुत सी स्त्रियों को शादी होने पर यह पता चलता है कि उसका पति अनाड़ी है, उसे सेक्स के बारे में कुछ भी नहीं पता। इस कारण से जब वह अपने पति से सेक्स क्रिया करना चाहती है तो उसका पति ठीक ढंग से उससे सेक्स नहीं कर पाता और वह सेक्स के सुख से अतृप्त रह जाती है। जब पति को उसके द्वारा कई बार समझाने के बाद भी कोई परिणाम नहीं निकलता तो उसके मन में धीरे-धीरे सेक्स क्रिया के प्रति अरुचि उत्पन्न होने लगती है। यहां तक कि उनके दम्पति जीवन में क्लेश होना भी शुरू हो जाता है। जिसके कारण कभी-कभी तो यह देखा गया है कि वे तलाक लेने के लिए मजबूर हो जाते हैं या एक-दूसरे से अलग-अलग रहने लगते हैं। वैसे यह भी देखा गया है कि बहुत सी स्त्रियां सेक्स के बारे में कुछ बोल नहीं पाती हैं। इस स्थिति में पति भी उसे सेक्स सुख दे नहीं पाता जिसके कारण से उसके मन में सेक्स के प्रति अरुचि उत्पन्न होने लगती है और वह कामोत्तेजना कम होने का शिकार हो जाती हैं।
5. बहुत सी स्त्रियों को जब यह पता चलता है कि उसका पति नपुंसक है तो उन्हें बहुत अधिक दुःख होता है। इस कारण से जब उसे सेक्स का सुख नहीं मिल पाता तो वह चोरी-छिपे किसी अन्य पुरुष को ढूढ़ती है जो उसे सेक्स का सुख दे सकें लेकिन जब उसे कोई अन्य पुरूष भी नहीं मिलता तो अपने पति को बहुत अधिक कोसती है और उनके दम्पति जीवन में भी कलह होने लगता है। इन सब करणों से उसके मन में सेक्स के प्रति नाराजगी उत्पन्न होने लगती है और अंत में वह हालात से समझौता कर लेती है तथा कामोत्तेजना का शिकार हो जाती है।
6. बहुत सी स्त्रियां ऐसी होती हैं जो गर्भधारण नहीं करना चाहती हैं, वे गर्भधारण करने से डरती हैं, जिसके कारण से वे कामशीलता का शिकार हो जाती हैं। इन स्त्रियों को गर्भधारण से इसलिए डर लगता है कि उससे शरीर तथा चेहरा खराब हो जाता है। उनके मन में यह विचार होता है कि गर्भधारण होने के बाद स्त्री का शरीर बेडौल हो जाता है तथा बच्चे को स्तनपान कराने से स्तन में ढीलापन आ जाता है। इसी भय के कारण से वह पति के साथ भी सेक्स करने से डरती है तथा इस रोग से पीड़ित हो जाती है। उनका यह विचार पूरी तरह से गलत है क्योंकि शादी के बाद सेक्स क्रिया का आनन्द लेकर भी यदि वह अपने खान-पान तथा व्यायाम के द्वारा शरीर को स्वस्थ्य तथा सुन्दर रख सकती है।
7. स्त्रियों की कमशीतलता होने के लिए कुछ ऐसी भी परिस्थितियां उत्तरदायी हो सकती हैं जिसमें पति तथा परिवार के सदस्य उसे दुःखी और प्रताड़ित करते हैं। कई बार तो ऐसा भी देखा गया है कि पुरुष अपनी इच्छा के खिलाफ और परिवार वालों के दबाव के कारण से शादी कर लेता है। लेकिन वह अपनी पत्नी के साथ सेक्स क्रिया नहीं करता या उससे सेक्स क्रिया तो करता है पर मन से उसे स्वीकार नहीं करता है। संभोग क्रिया के समय में वह अपनी मन की नफरत को इतनी बेरहमी से उजागर करता है कि उससे पत्नी नफरत करने लगती है। इस कारण से उसके मन में सेक्स के प्रति अरुचि उत्पन्न होने लगती है।
8. कई बार तो परिवार वाले ठीक प्रकार से रिश्ता देखे बिना शादी कर देते हैं। लेकिन यदि लड़के के परिवार वाले दहेज के लालची होते हैं तो वे लड़की को सताने लगते हैं, जिसके कारण से भी स्त्री में सेक्स के प्रति उत्तेजना में कमी होने लगती है। कभी-कभी तो स्त्री के सामने ऐसी स्थिति भी आ जाती है कि लड़के घर वाले उसे ताने तथा जली-कटी बातें सुनाने लगते हैं। इस स्थिति में पति भी अपने घर वालों का साथ देता है तथा पत्नी को प्रताड़ित करता है, कई बार तो स्थिति ऐसी भी उत्पन्न हो जाती है कि या तो परिवार वाले उसकी हत्या कर देते हैं या वह खुद आत्महत्या कर लेती हैं या हालात से समझौता कर लेती हैं। आमतौर पर यह देखा गया कि जो स्त्रियां ऐसी स्थिति में हालात से समझौता कर लेती हैं तथा उनके साथ लगातार ऐसा व्यवाहार होते रहते हैं जिसके कारण से उनका दिल बुझा-बुझा सा रहता है। इन सब कारणों का सबसे ज्यादा प्रभाव उसके सेक्स जीवन पर पड़ता है। वैसे देखा जाए तो मन और तन जब उमंग तथा प्रसन्न चित्त होता है तो ही सभी प्रकार का सुख अच्छा लगता है। इसलिए जब स्त्री के तन और मन पर इस प्रकार के तानों का घाव तथा पति, परिवार वाले के सतायें जाने का दुःख हो जाता है तो उसका मन सेक्स के प्रति बिल्कुल उदास रहने लगता है।
9. कई बार तो यह भी स्थिति देखने को मिलती है कि किसी-किसी स्त्री का पति शराबी होता है जिसके कारण से वह अपनी पत्नी को सेक्स का आनन्द नहीं दे पाता और इस कारण से उसकी पत्नी को कामशीतलता का रोग हो जाता है। कई पुरुष तो ऐसे होते हैं जो कई प्रकार के नशा करते हैं जिनसे उनके शरीर में सेक्स के प्रति उत्तेजना कम हो जाती है और अपनी पत्नी को इसका सुख नहीं दे पाते। बहुत से तो ऐसे पुरुष भी होते हैं जो तम्बाकू, गुटखा, शराब पीना, चरस, भांग तथा हेरोइन का सेवन करते हैं। इस कारण से उनके मुंह से बदबू आती रहती है और जब वे अपनी पत्नी से संभोग क्रिया करना चाहते हैं तो इससे स्त्री को बहुत अधिक परेशानी होती है । इसे रोकने तथा विरोध करने और समझाने बुझाने से भी जब यह सब ठीक नहीं होता या स्थिति में कोई परिवर्तन नहीं होता तो उसे सेक्स क्रिया से नफरत होने लगती है। उसके शरीर के अन्दर से सेक्स की उत्तेजना खत्म हो जाती है।
10. जब किसी स्त्री को सेक्स संबंधों के प्रति अरुचि उत्पन्न होने लगती है तो स्त्री में शीतलता आ जाती है। लेकिन शादी के बाद जैसे-जैसे दिन बीतने लगते हैं और सेक्स क्रिया का आनन्द लेने के बाद जब दम्पति बच्चेदार हो जाते हैं तो इन दम्पतियों पर घर की जिम्मेदारियां इतनी अधिक बढ़ जाती हैं कि उन्हें आपस में सेक्स करने का समय ही नहीं मिलता। ऐसी स्थिति में पुरुष अधिकतर सेक्स को विशेष महत्व नहीं देते तथा अपने शरीर का बिल्कुल भी ध्यान नहीं देते हैं, शरीर की साफ-सफाई भी ठीक ढंग से नहीं करते, दाढ़ी भी बढ़ा लेते हैं और उन्हें जब भी इच्छा होती है वैसे ही हालत में अपनी पत्नी से सेक्स करने के लिए चालू हो जाते हैं। वह न ही स्थान, न ही पंलग, न ही स्थितियां, किसी का भी ख्याल नहीं करते और अपनी पत्नी से सेक्स करने लगते हैं, जिसके कारण से पत्नी सेक्स के प्रति बोरियत महसूस करने लगती है। उसमें सेक्स क्रिया के प्रति कम उत्तेजना होने लगती है।
11. स्त्रियों के सामने कभी-कभी ऐसी परिस्थितियां उत्पन्न हो जाती हैं कि उनका पति उनसे यौन संबंध न करके गुदामैथुन या मुखमैथुन ही करता है। बहुत सी स्त्रियों को इससे घृणा महसूस होती है जिसके कारण से वे किसी प्रकार की उत्तेजना भी महसूस नहीं करती है। इसके अलावा उनका पुरुष जब उनसे जबर्दस्ती मनमानी करता है या जबरदस्ती गुदामैथुन करता है या मुखमैथुन करता है जिसके कारण से स्त्री के मन में अपने पति के प्रति बहुत अधिक घृणा महसूस होने लगती है। इसके अतिरिक्त उसके अंदर सेक्स की इच्छा भी खत्म होने लगती है जिसके कारण से उसे शीतलता का रोग हो जाता है।
12. कई बार तो परिवार में अधिक धार्मिक माहौल तथा अंधविश्वास होने के कारण से भी स्त्री में शीतलता का रोग हो सकता है। उनके इस रोग के होने का सबसे ज्यादा जिम्मेदार उसके परिवार वाले ही होते हैं क्योंकि उस परिवार में वह अधिक पूजा-पाठ में लीन रहती है, सप्ताह में एक-दो दिन व्रत रखती है और सेक्स से दूर रहना ही पसंद करती है। यदि उसका पति उससे सेक्स क्रिया करने के लिए जोर जबर्दस्ती करता है तो वह तैयार नहीं होती, जिस दिन वह व्रत रखती है, उस दिन तो वह बिल्कुल ही तैयार नहीं रहती। स्त्री इसे पाप समझकर इससे नफरत करने लगती है और उसके मन में सेक्स के प्रति धीरे-धीरे भावना कम होने लगती है। इस समय यदि कोई विशेष घटना हो जाती है तो वह इसे इस पाप का ही फल समझ बैठती है जिसके कारण वह सेक्स से पूरी तरह नफरत करने लगती है। इस कारण से उसके शरीर में सेक्स उत्तेजना भी खत्म हो जाती है और वह शीतलता का शिकार हो जाती है।
13. कुछ स्त्रियां तो ऐसी भी होती हैं जिनमें सेक्स के प्रति उत्तेजना ही नहीं होती है और उनके मन में सेक्स के प्रति उमंग और उत्साह की कमी हो जाती है। वह सेक्स क्रिया को केवल बच्चा पैदा करने की क्रिया ही मानती हैं तथा वह यह समझती हैं कि जब बच्चा पैदा हो जाए तो इसे करना बेकार है। उसे सेक्स के चरमसुख के बारे में कुछ भी ज्ञान नहीं होता है और न ही किसी प्रकार की इस क्रिया में जोश दिखाती है तथा इसके बारे में जानने का कुछ भी प्रयास करती है। ऐसी स्त्री के साथ यदि पुरुष जबर्दस्ती सेक्स करता रहता है तो वह इस क्रिया से इस कदर नफरत करने लगती है कि उसके शरीर से कामशीलता पूरी तरह से खत्म हो जाती है।
14. बहुत से स्त्रियों में सेक्स की उत्तेजना बिल्कुल भी नहीं होती है लेकिन उसके शरीर में पति-धर्म कूट-कूटकर भरा रहता है, इसलिए उसमें सेक्स उत्तेजना न होने के बावजूद भी वह पति से इस क्रिया के विषय में विरोध नहीं करती है। जैसा उसका पति चाहता है वैसा ही उसके साथ करता है, जिसके कारण से उसमें सेक्स के प्रति बची-खूची उत्तेजना भी खत्म हो जाती है।
15. कुछ स्त्रियों को सेक्स के प्रति बिल्कुल भी ज्ञान नहीं होता है, वे अपने मन में कई भम्र पाल के रखती हैं। ऐसी स्त्रियां कभी-कभी यह सोचती रहती हैं कि अधिक सेक्स करने से पुरुष के शरीर में कमजोरी आ जाती है। इसलिए वह अपने पति को सेक्स करने से मना करती हैं। ऐसा करते-करते जब उसे कई दिन हो जाता है तो उसके मन में सेक्स के प्रति क्रोध पनपने लगता है जिसके कारण उसके शरीर में सेक्स की उत्तेजना कम होने लगती है। ऐसी स्त्री से जब सेक्स किया जाता है तो वह उस समय किसी प्रकार की प्रतिक्रिया व्यक्त नहीं करती और चुप-चाप पुतले के समान बिस्तर पर पड़ी रहती है।
16. बहुत-सी स्त्रियां तो ऐसी होती हैं जो ममता और घर के कामों के बोझ के कारण से इतना अधिक दब जाती हैं कि उनमें सेक्स के प्रति इच्छा ही समाप्त हो जाती है। वह घर के काम-काज और मानसिक बोझ से इतनी अधिक थक जाती है कि पति उसके साथ सेक्स क्रिया करता है तो थकावट के कारण से सेक्स क्रिया में बिल्कुल भी भाग नहीं लेती। जब यही प्रक्रिया कुछ दिनों तक लगातार चलता रहता है तो उसके मन से सेक्स के प्रति उत्साह नहीं रहता है जिस कारण से उसके शरीर में सेक्स शीतलता आ जाती है।
17. कुछ स्त्रियों को छोटी उम्र में बलात्कार होने का कारण से सेक्स क्रिया से डर लगने लगता है। जिस समय उनके साथ बलात्कर होता है उस समय तो उनके शरीर का बिल्कुल भी विकास नहीं हो पाता और ऐसी स्थिति में बलात्कार का डर तथा वह मंजर उसके मन में बैठ जाता है। इस बलात्कार की तस्वीर उसके मन में बैठ जाती है। धीरे-धीरे जब वह बालिग हो जाती है तो उसकी शादी होने का बाद जब उसका पति उससे सेक्स क्रिया करने का प्रयास करता है तो बलात्कार की तस्वीर उसे याद आने लगती है जिसके कारण से उसके शरीर में कम्पन पैदा होने लगता है तथा शरीर पूरा ठंडा पड़ा रहता है।
18. कुछ स्त्रियां तो छोटी उम्र में इतनी नादान होती हैं कि सेक्स उत्तेजना की भावनाओं में बहकर सेक्स संबंध बनाने की भूल कर बैठती हैं। यह सेक्स संबंध वह इसलिए बना लेती हैं कि उसका साथी मित्र उसे यह आश्वासन देता है कि मैं तुमसे शादी कर लूंगा, मैं तुम्हें मरते जन्म तक साथ दूंगा, हमें कोई भी जुदा नहीं कर सकता है क्योंकि हम एक-दूसरे के लिए ही बने हैं। इसी कारण से वह स्त्री बहकावे में आकर उस पुरुष से सेक्स संबंध बना लेती है और गर्भवती हो जाती है। जब ऐसी स्थिति आ जाती है तो पुरुष उससे विवाह करने से मना कर देता है। जब यह बात लड़की के माता-पिता को पता चलता है तो वे अपनी लड़की को बहुत अधिक मारते-पीटते तथा डाटते हैं और यह भी कहते हैं कि तूने तो हमारे खानदान की नाक कटवा दी। इस स्थिति में लड़की को इतना अधिक मानसिक आघात होता है कि वह पुरुषों से नफरत करने लगती है। इतना ही नहीं उसके माता-पिता जल्दी-जल्दी में उसकी शादी किसी और लड़के से तय कर देते हैं। इस स्थिति में लड़की जो पुरुष से नफरत करती है, उससे उसका पति जब सेक्स क्रिया करता है तो वह पुतले के समान चुप-चाप पड़ी रहती है क्योंकि इस समय उसके अन्दर की सेक्स भावाना मर चुकी होती है।
19. कई बार तो यह भी देखा गया है कि कई स्त्रियां शादी करके सुखपूर्वक जीवन व्यतीत करती हैं लेकिन जब उसका पति उससे दूर होता है या कुछ समय के लिए उसे छोड़कर चला जाता है तो उस समय यदि कोई उसका बलात्कार कर देता है तो इस स्थिति में उसे गहरी चोट पहुंचती है और सदमे में खो जाती है। उसके अन्दर की सेक्स भावना खो जाती है तथा कमशीतलता का दोष उसके अन्दर विकसित हो जाता है।
20. पति-पत्नी यदि सुखपूर्वक जीवन व्यतीत कर रहे हों और किसी कारण से उसके पति को यौन दुर्बलता हो जाए या किसी दुर्घटना के कारण से वह अपनी पत्नी को सेक्स सुख देने में असमर्थ हो गया हो तो इस स्थिति में उसकी पत्नी कभी भी चरमानन्द प्राप्त नहीं कर पाती है। इतना होने के बावजूद अपनी दुर्बलता का इलाज करवाने को प्रेरित करती हैं लेकिन कई बार उसका पति यह मानने के लिए तैयार नहीं होता है क्योंकि यौन कमजोरी से वह ग्रस्त होता है। ऐसी स्थिति में जब वे दोनों एक-दूसरे के साथ सेक्स संबंध बनाते हैं तो पति की उत्तेजना तुरंत ही शांत हो जाती है। स्त्री बिस्तर पर इस प्रकार से छटपटाती रहती है जैसे पानी के बिन मछली छटपटाती रहती है। जब यह स्थिति स्त्री के साथ प्रतिदिन होने लगती है तो उसे सेक्स से नाराजगी होने लगती है। कई बार तो यह भी देखा गया है कि वह पुरुष को ज्यादा जोर देकर इलाज करने को कहती है तो वह उस पर उल्टा गुस्से में चिल्लाने लगता है और उल्टा उस पर कई आरोप लगा देता है। वह अपनी कमजोरी को छिपाने के लिए कई बार तो यह भी कह देता है कि तुझमें कोई दोष है। इस प्रकार की बातों को सुनकर वह शारीरिक तथा मानसिक दोनों रूप से सेक्स से नाराज रहती है। वह मन में यह भी सोचती है कि उनको मेरा कुछ भी ख्याल नहीं, वे केवल मुझे उपभोग का केवल एक वस्तु समझते हैं, उन्हें मेरी सुख से कोई मतलब नहीं है और न ही मेरी कोई चिंता करते हैं। इस सबको देखते हुए वह अपने आप को स्थितियों के अनुसार ढा़ल लेती है जिसके कारण से उसकी इच्छाएं और संवेदनाएं समाप्त हो जाती हैं।
21. स्त्रियों में कामोत्तेजना कम होने के कारण यदि उसे मानसिक रोग हो गया हो तो इस मानसिक रोग होने के पीछे पुरुष भी जिम्मेदार होता है क्योंकि कभी-कभी वह अपनी गलतियों को पत्नी पर ही थोपता है, अपनी गलतियों को स्वीकार तक नहीं करता। बहुत से पुरुष तो यह सोचते हैं कि सेक्स क्रिया के द्वारा आनन्द लेने में स्त्रियों का कोई लेना देना नहीं है। यह केवल पुरुषों के लिए होता है। इस कारण से वे अपनी स्त्रियों का कुछ भी ख्याल नहीं करते हैं जिसकी वजह से उनकी स्त्रियां इस रोग का शिकार हो जाती हैं।
22. पारिवारिक तथा सामाजिक संस्कारों के कारण से बहुत-सी स्त्रियां सेक्स के बारे में अपने विचारों का खुलासा नहीं कर पाती और न ही विचारों को व्यक्त ही कर पाती हैं। इसके बावजूद जब उनकी शारीरिक आवश्यकताओं की पूर्ति नहीं होती है तब इसका असर सेक्स क्रिया के दौरान दिखाई पड़ता है। इन सभी करणों की वजह से ही उनमें कामशीतलता की कमी आ जाती है।
स्त्रियों की कामशीतलता को दूर करने के उपाय-
1. वैसे देखा जाए तो स्त्रियों की कामशीतलता को दूर करने के लिए पति को ही मुख्य रूप से उपाय अपनाना चाहिए क्योंकि पति ही अपनी पत्नी को अच्छी तरह से समझ सकता है। पति को पहले पत्नी से खुलकर बातें करनी चाहिए कि तुम किस कारण से सेक्स क्रिया से डरती हो और तुम्हें कौन सा दुःख है। यह सब जानकर उसे प्रयास करना चाहिए कि इसका समाधान क्या है। इसके बाद किसी सेक्स विशेषज्ञ से सलाह लेकर उपचार करना चाहिए तथा उसके इस रोग के होने के कारणों को दूर करना चाहिए। पत्नी को जितना हो सके उतना उस पर प्यार न्यौछावर करना चाहिए। ऐसा करने से ही उसकी पत्नी का यह रोग ठीक हो सकता है।
2. यदि पुरुष को यह पता लग जाए की मेरी ही कुछ गलतियों के कारण से मेरी पत्नी को कामशीतलता का रोग हो गया है तो उसे अपनी गलती के लिए पत्नी से माफी मांगना चाहिए और कहना चाहिए कि आगे से इस प्राकर की गलती नहीं होगी।

3. कुछ स्थिति ऐसी भी होती है जिसमें स्त्री स्वयं ही इस रोग की दोषी होती है। इसके लिए स्त्री को चाहिए कि वह अपने दोष को दूर करे क्योंकि दोष को दूर करने से यह रोग भी स्वयं अपने आप मिट जायेगा।
4. हमें यह जान लेना चाहिए कि पति-पत्नी का संबंध जन्म जन्मांतर का होता है। इसलिए पत्नी के किसी भी प्रकार के कष्ट को दूर करने के लिए पति का पूरा दायित्व बनता है। यदि पति को यह पता चल जाए की मेरी पत्नी को किसी प्रकार के मानसिक कष्ट के कारण से ही कामशीतलता रोग हुआ है तो उसे उसके कष्ट के कारणों को दूर करने का प्रयास करना चाहिए। उसे प्रेम और प्यार से अपनी पत्नी का ख्याल रखना चाहिए। कभी-कभी तो यह भी देखा गया है कि पत्नी की समस्या से पति परेशान होकर उससे अपना पीछा छुड़ाना चाहता है। जबकि ऐसा नहीं होना चाहिए क्योंकि पत्नी उसका जन्म-जन्मांतर का साथी होती है। पत्नी के इस रोग की किसी भी स्थिति में पति को अपनी जिम्मेदारियों से दूर नहीं भागना चाहिए क्योंकि कामशीतलता कोई ऐसा रोग नहीं है जो पूरी तरह से ठीक नहीं हो सकता है। आज बहुत से ऐसे चिकित्सा क्षेत्र है जिनका उपयोग करके स्त्रियों की कामशीतलता का उपचार किया जा सकता है जैसे- आधुनिक अंगमर्दक चिकित्सा, होम्योपैथिक चिकित्सा, आर्युर्वैदिक चिकित्सा, ऐक्यूप्रेशर चिकित्सा, मसाज चिकित्सा आदि।
5. स्त्रियों की कामशीतलता रोग को दूर करने के लिए यह जान लेना आवश्यक है कि पुरुष व स्त्री दोनों में सेक्स की इच्छा को उत्पन्न करने के लिए हार्मोन टेस्टोस्टोरोन मुख्य रूप से कार्य करता है और स्त्रियों में यह हार्मोन अधिवृक्क ग्रंथियों के द्वारा स्रावित होता है। जब स्त्रियों में इस हार्मोन की कमी हो जाती है तो इसके साथ ही कामशीतलता की भी कमी आ जाती है। ऐसी स्थिति में पति को चाहिए कि अपनी पत्नी का उपचार किसी अच्छे चिकित्सक से कराना चाहिए जिसे स्त्रियों के इस रोग को ठीक करने का विशेष रूप से अनुभव हो। इसके साथ-साथ पति को चाहिए कि अपनी पत्नी का विशेष रूप से ख्याल रखे तथा इस रोग के होने के कारणों को भी दूर करना चाहिए।



6. स्त्रियों की कामशीतलता को दूर करने के लिए आज इसका सफल उपचार ढूंढ लिया गया है। जरूरत तो बस इतना है कि पति अपनी पत्नी का विशेष रूप से ख्याल रखे तथा चिकित्सा में पूरा साथ दे। कुशल चिकित्सक अपने अनुभवों के द्वारा स्त्रियों की मानसिक तथा शारीरिक कारणों को दूर कर सकता है और औषधीय चिकित्सा के द्वारा पूर्ण रूप से ठीक कर सकता है। इसके साथ ही पति को यह भी ध्यान रखना चाहिए कि चिकित्सक को अपनी पत्नी के रोग के बारे में खुलकर बताए। क्योंकि कामशीतलता रोग होने का सबसे मुख्य कारण मनोवैज्ञानिक होता है और जब तक चिकित्सक को ठीक रूप से रोग का कारण पता नहीं चलेगा तब तक वह ठीक तरह से उपचार नहीं कर पायेगा।