Sunday 9 September 2012

वैवाहिक बलात्कार

वैवाहिक बलात्कार 

यह सुनने में बहुत अटपटा सा लगता है कि क्या वैवाहिक जीवन में भी बलात्कार हो सकता है। लेकिन यह सच है कि आज भी कुछ महिलाओं को अपने जीवन में इस त्रासदी से गुजरना पडता है। आज के इस आधुनिक दौर में भी कुछ पुरूष महिलाओं को मात्र मनोरंजन का साधन मानते हैं। इस प्रकार के पुरूष किसी न किसी हीनभावना से ग्रसित होते हैं और एक प्रकार के मानसिक रोगी होते हैं। इन्हें सिर्फ अपनी सेक्स संतुष्टि से मतलब होता है। अपने साथी की भावनाएं इनके लिए कोई मायने नहीं रखती।  

कई बार पुरूषों की ऎसी स्थिति के लिए महिलाएं खुद भी जिम्मेदार होती हैं। अक्सर सहवास के लिए मना कर देना कई महिलाओं की आदत होती है। ऎसे में पति क्षुब्ध होकर पत्नी पर अपना एकाधिकार समझ कर जबरदस्ती कर बैठते हैं। लेकिन अधिकतर परिस्थितियों में किसी मानसिक अवसाद के चलते पति-पत्नी का यह पवित्र रिश्ता, हवस के दलदल में फंस जाता है। पत्नियां शर्म के कारण विरोध नहीं कर पाती लेकिन उनके मन से धीरे-धीरे प्यार कम होने लगता है और सहवास के नाम से उनके मन में डर और नफरत जगह ले लेती है।

 हमारे हिंदु अधिनियम के तहत पत्नी की सहमती केे बिना पति द्वारा जबरदस्ती संबंध बनाना कानूनी तौर पर बलात्कार की श्रेणी में आता है। यहां तक की यदि पत्नी शराब या किसी अन्य वजह इसे अपने होशो-हवास में नहीं है और पति उसकी इस अवस्था को जानते हुए भी उसके साथ संबंध बनाता है तो भी यह बलात्कार की श्रेणी में आता है। 

कोई भी पति एक पत्नी के शरीर पर मात्र इसलिए हक नहीं जमा सकता कि उसने उससे विवाह किया है। पत्नी की भावनाऔं को समझना और उसका सम्मान करना एक खुशहाल परिवार की नींव के लिए बहुत जरूरी है। जबरदस्ती का शारीरिक संबंध न तो सुख देता है और न ही आपसी रिश्तों को मजबूती प्रदान करता है। पती-पत्नी दोनों को ही यह समझना चाहिए कि सेक्स एक ऎसी प्रक्रिया है, जो शारीरिक व मानसिक अभिव्यक्ति करने का कुदरती माध्यम है। इसकी उत्पत्ति मन व मस्तिष्क से होती है और इसकी पूर्ति शरीर से होती है। जिस व्यक्ति का मन-मस्तिष्क जितना स्वस्थ्य होगा, उसकी सेक्स अभिव्यक्ति भी उतनी ही आनंदमय होगी। सेक्स प्रक्रिया में पुरूष को आनंद और स्त्री को चरमसुख प्राप्त होना उनके सम्पूर्ण वैवाहिक जीवन का एक रोचक व जरूरी हिस्सा है। जिसे प्राप्त करने का हर व्यक्ति का अपना-अपना तरीका व अंदाज होता है। सेक्सोलोजिस्ट का मानना है कि यह आनंद प्राप्त करने के लिए सबसे महत्तवपूर्ण है कि सेक्स के प्रति मन में कोई रूढिवादी विचार या भ्रांति नहीं रखनी चाहिए ब्ल्कि यह जानने की कोशिश करनी चाहिए कि सेक्स सुख क्या है। क्योकि इसका सीधा संबंध व्यक्ति के मन-मस्तिष्क से होता है। यदि सेक्स सुख व आनंद की अनुभूति मन मस्तिष्क को अनुभव न हो तो सेक्स प्रक्रिया स्त्री-पुरूष दोनों के लिए ही कष्टप्रद व तनावपूर्ण बन जाती है। 

इसलिए हर पति-पत्नी को एक दूसरे की भावनाऔं का सम्मान करते हुए सहमति के साथ ही यौन संबंध बनाने चाहिए। एक डरे हुए माहौल में कभी भी सुखद सेक्स का आनंद नहीं लिया जा सकता। वैसे पति द्वारा पत्नी पर किए गए बलात्कार के लिए हमारे हिंदु विवाह अधिनियम की धारा 375 और 379 के तहत पत्नियों को कई अधिकार प्राप्त है। पत्नी को अपनी बात सिद्ध करने की भी जरूरत नहीं और वह कानूनी तौर पर पति से तलाक ले सकती है। अगर आप कभी इस तरह की घटना का शिकार हुई हो तो सबसे पहले प्यार और समझ से अपने पति को समझाएं और किसी मनोचिकित्सक से मिलकर समस्याओं को सुलझाने का प्रयास करें। अगर तब भी बात न बनें तो घबराएं नहीं आप कानून की मदद ले सकती हैं

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