Monday 22 October 2012

ये दूरियाँ क्यूँ ,,,,,,

 ये दूरियाँ क्यूँ ,,,,,,
सारी उम्र वफादार बने रहने के वादे करने के बावजूद पति−पत्नी एकदूसरे के प्रति बेवफा क्यों हो जाते हैं यह समझना वाकई बहुत मुश्किल है। जब पति अपनी पत्नी की आत्मिक, व्यावहारिक एवं घर गृहस्थी संबंधी जरूरतों की पूर्ति करने में असमर्थ होते हैं, लापरवाही बरतते हैं या उसे मानसिक आघात पहुंचाते हैं तो कुछ पत्नियां मार्ग बदलने के लिए प्रेरित हो जाती हैं। बेवफाई एक मानसिक यातना है लेकिन वह सकारण होती है।
बहुत से घरों में पत्नियों को उतना महत्व और प्यार नहीं मिल पाता जिसकी अपेक्षा उन्हें होती है। ऐसे में कभी कभी उनके धैर्य का बांध टूट जाता है। कई बार वह पति के साथ कोई प्रोग्राम बनाती है। पति वादा भी करता है हजार मिन्नतों के बाद। वह संज संवर कर तैयार रहती है परंतु पति महोदय एक तो वादा करने के बावजूद देर से आते हैं ऊपर से सॉरी कहने की जरूरत भी नहीं समझते। आखिर ऐसा पत्नी कब तक सहन करेगी? यह दूरियों को जन्म देता है और इन्हीं दूरियों के बीच नई संभावनाएँ भी उभरने लगती हैं। 
यही घटनाक्रम दूसरी ओर भी हो सकता है। पत्नी को अपने पति व वैवाहिक संबंध में अटूट आस्था होती है, विश्वास होता है पर जब पति उसकी आस्था को चूर−चूर कर किसी दूसरी स्त्री से संबंध बना लेता है तब पत्नी के विश्वास को धक्का लगता है। साथ रहने−निभाने के लिए जिस विश्वास व प्रेम की जरूरत होती है वह ऐसी घटनाओं के बाद उठ जाता है। इसके बावजूद पत्नी सदैव संबंधों के नाम बिखरते रिश्तों को बांधने की कोशिश करती है पर उन्हें सहेज कर रखने वाला विश्वास उनके बीच से उठ चुका होता है।पति यदि उस सच को स्वीकारने से इनकार करता है तो वह टूट जाती है तब पति के प्रति उसकी लापरवाही बढ़ जाती है। पति जिसे वह दिलोजान से प्यार करती थी, किसी दूसरी औरत के मोहजाल में फंस जाए तो उसका धैर्य टूट जाता है, विश्वास बिखर जाता है और उसमें एक अलग भावना का जन्म होता है।
कभी−कभी अधिक आधुनिकता भी सब कुछ तबाह कर देती है। ऐसे पुरुष अपने खुले व्यवहार पर किसी की रोकटोक या टीका−टिप्पणी पर कतई ध्यान नहीं देते हैं। उन्हें अपने आचरण पर अंकुश लगाने को कहो तो इसे वह अपनी व्यक्तिगत स्वतंत्रता में हस्तक्षेप समझते हैं।
बेवफाई की शिकायत पति−पत्नी के बीच में न हो। इसलिए जरूरी है कि दांपत्य में समझौता करें। जीवनसाथी को महत्व दें और उसकी भावना की कद्र करें। केवल इतना कहने से काम नहीं चलेगा कि नारी को तो ब्रह्मा भी नहीं समझ पाए तो कोई क्या समझेगा। आपको अपनी पत्नी को स्वयं समझना होगा। उसके जज्बात की कद्र करनी होगी, उसके अरमानों की इज्जत करनी होगी और उसकी खुशियों का सहभागी बनने का गुर सीखना होगा।

 

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